विपुल रेगे। भाजपा सांसद और भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी ने एक लेख द्वारा अपने मन की बात कही है। द इंडियन एक्सप्रेस में छापे गए इस लेख में मनोज तिवारी ने भोजपुरी सिनेमा के राष्ट्रवाद, उनके राजनीतिक जीवन और प्रधानमंत्री और राजनेता नरेंद्र मोदी के बारे में लेखनी चलाई है। अपने लेख में मनोज तिवारी ने अतीत की स्मृतियों से लेकर वर्तमान राजनीतिक संघर्ष के बारे में बताया है।
भाजपा सांसद मनोज तिवारी अपने लेख की शुरुआत सन 2009 से करते हैं। वे मुंबई में एक भोजपुरी फिल्म ‘गंगोत्री’ की शूटिंग कर रहे थे। इस फिल्म में अभिनेता अमिताभ बच्चन भी एक भूमिका निभा रहे थे। एक दिन समाजवादी पार्टी के नेता दिवंगत अमर सिंह शूटिंग के सेट पर आए। अमर सिंह अमिताभ के बहुत नजदीकी हुआ करते थे। अमर सिंह ने सेट पर आकर मनोज तिवारी से भेंट की और प्रस्ताव दिया कि उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए।
मनोज लिखते हैं ‘चार्टर्ड विमानों और हैलीकॉप्टर में घूमना और दिग्गज राजनीतिज्ञों से मिलना मेरे लिए बहुत चकित कर देने वाला था।’ अमर सिंह के प्रस्ताव पर मनोज ने गोरखपुर सीट से भाजपा प्रत्याशी योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध लोकसभा का पर्चा भरा। मनोज पराजित हो गए। वे लिखते हैं कि ये सब बड़ी तेज़ी के साथ मात्र तीन माह में घटित हो गया। लेख में सन 2010 की दूसरी घटना का उल्लेख किया गया है। मनोज बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के करीबी थे।
वे लिखते हैं ‘हमारी भोजपुरी बिरादरी ने नितीश का समर्थन किया था क्योंकि वे बिहार में परिवर्तन लेकर आए थे। इसी वर्ष नितीश ने अपने लहजे में आक्रामक परिवर्तन लाते हुए भाजपा नेताओं के साथ अपना रात्रि भोज रद्द कर दिया। जबकि उन्होंने स्वयं ही रात्रि भोज का आयोजन किया था। मनोज लिखते हैं कि ‘कथित रुप से नितीश इस बात से नाराज थे कि पार्टी के एक विज्ञापन में उनका फोटो नरेंद्र मोदी के साथ क्यों लगाया गया।
नितीश की नाराजगी का कारण ये था कि वे सन 2002 में गुजरात में हुए दंगों के कारण मोदी विरोध में थे। इस बात से मुझे और हमारी भोजपुरी बिरादरी को बड़ा दुःख पहुंचा था।’ लेख में मनोज सन 2012 का उल्लेख करते हैं। इस वर्ष नरेंद्र मोदी ने गुजरात के सूरत में बिहार शताब्दी महोत्सव को संबोधित किया। मनोज लिखते हैं ‘वहां एक बैठक में मोदी ने बिहारियों की प्रशंसा करते हुए बिहार के लिए एक विज़न दिया था। उनके विज़न से मैं अत्याधिक प्रभावित हुआ था।
इसके बाद मैंने उनके लिए समर्थन जुटाना शुरु कर दिया था। मैं उनका समर्थन बीएचयू कॉलेज में भी किया, जब मैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लिए कार्य करता था। मनोज ने लिखा है कि बिहार का फिल्म उद्योग राष्ट्रवाद से ही संचालित होता आया है। भोजपुरी फिल्म उद्योग प्रारंभ से ही मोदी जी के विचारों से प्रभावित रहा है। हम उस समय दृढ़ आश्वस्त थे कि देश का अगला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही होना चाहिए। मनोज के मुताबिक उस दौर में सोशल मीडिया नहीं हुआ करता था।
वे सार्वजनिक आयोजनों और शोज में जाते थे और लोगों को समझाने की कोशिश करते थे कि भारत को अब मोदी जी की आवश्यकता है। अगले पैरा में वे भोजपुरी फिल्म उद्योग से राजनीति में आने वाले मित्र अभिनेताओं पर अपनी बात लिखते हैं। वे लिखते हैं ‘सन 2014 आया। अब मैं भाजपा में था और नार्थ ईस्ट दिल्ली से मुझे टिकट दिया गया। इसी वर्ष भोजपुरी अभिनेता रवि किशन ने जौनपुर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा।
भोजपुरी फिल्म उद्योग से रील लाइफ की प्रतिद्वंद्विता अब राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बन गई है। उस दौर में अखबारों के नियमित कॉलम इन्हीं चर्चाओं से भरे होते थे कि किसको कौनसी फिल्म मिली, किसने किसकी जगह कब्जा जमाया।’ इस समय तक मनोज तिवारी फिल्मों में अभिनय करना लगभग छोड़ चुके थे। एक दिन ऐसा आया जब मनोज और रवि किशन स्टार न्यूज़ पर होने वाली डिबेट में मिले। मनोज लिखते हैं ‘मैंने रवि किशन को कहा कि शो के बाद उन्हें मेरी पार्टी में शामिल हो जाना चाहिए।
वहां मेरे कहने का तात्पर्य था कि रवि को मेरे घर दावत पर आना चाहिए। जबकि रवि ने सोचा कि मैं भाजपा के बारे में बात कर रहा हूँ। इसके जवाब में उन्होंने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा ‘सच्ची’।’ इसके बाद मनोज मुलाकातों में अक्सर रवि को बताते रहते कि वे एक सही व्यक्ति हैं लेकिन गलत पार्टी में हैं। और एक दिन ऐसा आया कि रवि किशन ने मन ही मन मनोज के प्रस्ताव पर आगे बढ़ने का मन बना लिया।
मनोज तिवारी ने तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष के सामने रवि किशन को पार्टी में लाने का प्रस्ताव रखा और इस तरह उनकी पार्टी में एंट्री हो गई। मनोज लिखते हैं कि रवि ने एमसीडी व अन्य चुनावों में भाजपा के लिए बहुत मेहनत की। हालाँकि रवि बेचैन थे। वे कहते रहते थे कि यार मुझसे कुछ करवाओ। फिर रवि का इंतज़ार समाप्त हुआ। मनोज को पता चला कि गोरखपुर सीट के लिए एक योग्य उम्मीदवार की खोज की जा रही है।
योगी जी मुख्यमंत्री बन चुके थे और गोरखपुर सीट खाली हो गई थी। मनोज लिखते हैं ‘मैंने अपने अध्यक्ष से कहा क्या रवि किशन एक योग्य उम्मीदवार हो सकते हैं। उस समय मैंने उनकी आँखों में एक चिंगारी देखी। इसके बाद जल्द ही रवि किशन की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी गई।’ मनोज ने लिखा है ‘जीवन आश्चर्यों से भरा है। मैं गोरखपुर चुनाव हार गया और दस वर्ष बाद मेरी अनुशंसा पर किसी को टिकट दिया गया। वह लड़ा और जीत गया। मोदी जी और योगी जी को धन्यवाद कि उन्होंने रवि किशन को अवसर दिया।’
मनोज ने तीसरे भोजपुरी अभिनेता के तौर पर निरहुआ को याद किया है। वे लिखते हैं कि निरहुआ का मामला सबसे अलग है। वे एक ऐसे अभिनेता हैं जो वैचारिक रुप से भाजपा का समर्थन करते थे। वे अधिकांश उन मुद्दों का सशक्त समर्थन करते पाए जाते थे, जिनके लिए भाजपा खड़ी होती थी। वे सन 2019 में पार्टी में सम्मिलित हुए। ये एक स्वाभाविक कदम था। मनोज लिखते हैं ‘ निरहुआ की जीत के बाद आजमगढ़ से कई लोगों ने हमारी भोजपुरी पहचान की खिल्ली उड़ाई, हम पर मिम्स बनाकर शेयर किये गए।
हमारा मज़ाक बनाने के लिए हमारी फिल्मों के दृश्य और पोस्टर का इस्तेमाल किया गया। इतने सालों के बाद अब मैं समझ गया हूँ कि ये सब अभिजात्य मानसिकता से आता है। ये वही लोग हैं जो अंग्रेजी बोलने वाले भ्रष्ट सांसदों को स्वीकार कर लेते हैं लेकिन भोजपुरी अभिनेताओं का मज़ाक बनाते हैं।’ अपने लेख के अंत में मनोज तिवारी मार्मिकता से लिखते हैं ‘और हम यहाँ यहीं सब बदलने के लिए आए हैं। ऐसा इसलिए कि हमारी फिल्मों के पात्र साधारण जन हैं। हमारे दर्शक गरीब, साधारण लोग हैं।
ऐसा इसलिए कि हम उनके मुद्दों को, उनके मानस को समझते हैं। हम यहाँ उनके जीवन में बदलाव लाने के लिए हैं। हम इस अभिजात्य मानसिकता को चुनौती देने के लिए भी हैं, जहाँ आप एक चायवाले के प्रधानमंत्री बनने का मज़ाक बनाते हैं। जब भी भोजपुरी कलाकार मुझसे मिलते हैं तो वे फिल्मों से अधिक राजनीति की चर्चा करते हैं। उनको ऐसा लगता है कि मैं भाजपा का प्रवेश द्वार हूँ। भविष्य में आपको भाजपा में और भी राष्ट्रवादी विचारधार के भोजपुरी कलाकार देखने को मिलेंगे। भोजपुरी फिल्म उद्योग में राष्ट्रवादी विचारधारा वाले अभिनेताओं का बोलबाला है।’
अपने लेख में मनोज अंत में लिखते हैं कि कोविड लॉकडाउन के बाद जब प्रवासी संकट उत्पन्न हुआ तो उन्होंने लोगों की सहायता को कर्तव्य के रुप में देखा है। उन्होंने दिल्ली में छठ पर्व की लड़ाई और यमुना की सफाई के संघर्ष का उल्लेख भी किया है, जिसे दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने नज़रअंदाज़ किया है। आप सरकार ने ये ये सुनिश्चित कर दिया है कि वह किसी भी प्रवासी को पीड़ा देकर भाग नहीं सकेगी।
मनोज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान का उल्लेख कर लिखते हैं ‘ एक बार दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि 500 का टिकट ले के आ जाते हैं। हमने इसका कड़ा विरोध किया। दिल्ली की राजनीति में अब ऐसी बातें साहस के साथ कहने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता। इसलिए जब आप समुदाय के किसी व्यक्ति को सशक्त बनाते हैं, तो आप समुदाय को भी सशक्त बनाते हैं।