अमित सिंघल। एक मित्र ने मेरी पहली सितम्बर की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि “बुरा ना मानियेगा लेकिन समर्थक हूँ, अंधभक्त नही” और मोदी सरकार की कई मुद्दों पे आलोचना की। यद्यपि मैं लिखना किसी अन्य विषय पे चाहता था, लेकिन मेरा मानना है कि मित्रो की शंकाओ और प्रश्नो का जवाब दिया जाना चाहिए। कई बार मुझे लगता है कि कई प्रश्नो के उत्तर हमारे उपस्थित है, और पहले भी कई बार जवाब अपने लेखो पे दे चूका हूँ। लेकिन हो सकता है मित्रो को स्थिति स्पष्ट नहीं दिखाई दे रही हो। अतः उन मित्र के उठाये गए विभिन्न मुद्दे को कई पोस्ट के द्वारा एक्सप्लेन करने का प्रयास करूँगा क्योकि एक पोस्ट पर उन मुद्दों के साथ न्याय संभव नहीं है।
मित्र ने लिखा कि मोदी सरकार “आतंकवाद रोकने के नाम पर वही काम जो कांग्रेस करती थी और कुछ नहीं। आतंकवाद पर मध्यम मार्ग कांग्रेस भी अपनाती थी और ये भी, अंतर कहाँ रहा? चाणक्य ने कहा था कि शत्रु को केवल हराओ नहीं उसका समूल नाश कर दो ताकि वो या उसके जैसे सोच रखने वाले कभी आप के सामने खड़े ना हो सके।” यह तो सभी मानते है कि मोदी सरकार के समय में जम्मू-कश्मीर के बाहर आतंकवाद की एक भी प्रमुख घटना नहीं हुई। यह भी सभी मानते है विश्व के सबसे शक्तिशाली देशो में भी आतंवादी घटनाएं होती रहती है। आखिरकार ऐसा क्या जादू हो गया कि मोदी सरकार के आने के बाद जम्मू-कश्मीर के बाहर आतंकवादी घटनाओ लगभग समाप्त हो गयी। यहाँ तक की प्रधानमंत्री मोदी खुली गाड़ी में कई जिलों में घूम चुके है जो विश्व का कोई भी नेता नहीं कर पाता।
क्या आतंकवादियों का हृदय परिवर्तन हो गया है और उन्होंने सनातन धर्म अपना लिया है? या फिर, आतंवादियो की सलवार मोदी नाम सुनते ही गीली और पीली हो जाती है? या फिर, मोदी सरकार के आने के बाद उनके द्वारा आतंकी घटना करने के पहले ही उनका “समूल नाश” किया जा रहा है?
याद कीजिये, पहले किसी भी आतंकवादी को मुठभेड़ में मारने के बाद सुरक्षा बल प्रेस कांफ्रेंस करता था, मरे आतंकवादियों की तथा उनके साथ फोटो रिलीज़ करता था। और, सरकार सुरक्षा बल के लिए पुरुष्कार की घोषणा करती थी।
और उसके बाद शुरू होता था राजमाता पोषित NGOs का नंगा नाच। आतंकियों के समर्थक मानवाधिकार के मुद्दे पे कोर्ट पहुंच जाते थे, सुरक्षा बलों को ससपेंड करने की मांग होती थे। मुख्य मंत्री को जेल में भेजने की मांग होती थी। न्यायिक जांच बैठा दी जाती थी। राजमाता की आँखों से आंसू निकल आते थे और उन्हें रात को नींद नहीं आती थी।
क्या अब आतंकियों को मुठभेड़ में मारा नहीं जा रहा है? क्या सुरक्षा बल अब आतंकियों को बिरयानी खिलाकर, अगर विदेशी हुए तो पासपोर्ट में भारत का वीसा लगाकर, सादर सीमा पार भेज दे रहे है? या फिर देशी आतंकियों कान उमेठ कर उनकी शिकायत उनके माता-पिता, पड़ोसियों और धर्म गुरुओं से कर देते है?
नगण्य आतंकी घटनाएं और आतंकियों को मुठभेड़ में ना मारे जाने का “सन्नाटा” कुछ कह तो नहीं रहा है?
साभार: अमित सिंघल के फेसबुक वाल से
URL: Acche Din- No big terror attack during the tenure of Modi Government
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