Grok। 2004-2013 और 2014-2024 के बीच भारत में सांप्रदायिक दंगों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के लिए हमें उपलब्ध डेटा पर निर्भर रहना पड़ता है। चूंकि 2024 पूरा हो चुका है और 2025 चल रहा है, मैं 2024 तक के अनुमानित आंकड़े शामिल करूंगा। ये आंकड़े नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB), गृह मंत्रालय (MHA), और अन्य विश्वसनीय स्रोतों जैसे Centre for Study of Society and Secularism (CSSS) पर आधारित हैं।
2004-2013 के बीच सांप्रदायिक दंगे
इस अवधि में NCRB ने सांप्रदायिक दंगों को अलग से वर्गीकृत करना 2014 से शुरू किया, इसलिए 2004-2013 के लिए डेटा “दंगे” (riots) की सामान्य श्रेणी से लिया गया है, जिसमें सांप्रदायिक घटनाएं शामिल हैं।
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2006-2012 के बीच औसतन 600-700 सांप्रदायिक घटनाएं प्रति वर्ष दर्ज की गईं।
विभिन्न रिपोर्ट्स (जैसे MHA और प्रेस आर्काइव) के आधार पर, 2004-2013 की 10 साल की अवधि में अनुमानित सांप्रदायिक दंगे 5,170 से 5,500 के बीच रहे।
उदाहरण के लिए, 2008 में 943 घटनाएं (कांग्रेस शासन के दौरान सबसे अधिक) और 2002 गुजरात दंगों (हालांकि यह 2004 से पहले है) जैसे बड़े मामले इस अवधि के ठीक पहले के संदर्भ को दर्शाते हैं। औसतन, प्रति वर्ष लगभग 517-550 घटनाएं मानी जा सकती हैं।
2014-2024 के बीच सांप्रदायिक दंगे
2014 से NCRB ने सांप्रदायिक दंगों को स्पष्ट रूप से ट्रैक करना शुरू किया।
2014-2020 तक NCRB डेटा के अनुसार, कुल 5,417 घटनाएं दर्ज हुईं। इसमें 2020 में 857 और 2019 में 644 जैसी बड़ी संख्याएं शामिल हैं।
2021 में MHA के अनुसार 378 घटनाएं हुईं।
2022-2024 के लिए, CSSS और अन्य रिपोर्ट्स के आधार पर औसतन 626 घटनाएं प्रति वर्ष अनुमानित हैं, जो 1,878 (3 साल × 626) जोड़ता है।
2024 में CSSS की रिपोर्ट के अनुसार, 59 दंगे दर्ज किए गए, जो पिछले वर्षों के औसत से कम हैं, लेकिन पूरे साल का डेटा अभी संकलित हो रहा है।
कुल मिलाकर, 2014 से 2024 तक अनुमानित सांप्रदायिक दंगे 7,673 से 7,800 के बीच हैं। यह संख्या 2024 के अंतिम आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर थोड़ी बदल सकती है।
तुलना
2004-2013: 5,170 से 5,500 (औसत 517-550 प्रति वर्ष)
2014-2024: 7,673 से 7,800 (औसत 697-709 प्रति वर्ष)
निष्कर्ष
2014-2024 के बीच सांप्रदायिक दंगों की संख्या 2004-2013 की तुलना में अधिक रही, जिसमें प्रति वर्ष औसतन लगभग 150-200 घटनाओं की वृद्धि देखी गई। यह अंतर राजनीतिक, सामाजिक, और तकनीकी कारकों (जैसे सोशल मीडिया) से प्रभावित हो सकता है, हालांकि इसके सटीक कारणों के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता है। ध्यान दें कि 2024 का डेटा अभी पूर्ण रूप से आधिकारिक नहीं है और इसमें बदलाव संभव है।
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2025 के आंकड़े
चूंकि 2025 अभी चल रहा है और पूरे साल का आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है। हालांकि, उपलब्ध आंकड़ों और अनुमानों के आधार पर एक अनुमान दिया जा सकता है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) और गृह मंत्रालय (MHA) के डेटा के अनुसार:
2014 से 2020 तक, लगभग 5,417 सांप्रदायिक दंगों की घटनाएं दर्ज की गईं।
2021 में 378 और 2020 में 857 घटनाएं रिपोर्ट की गईं (MHA डेटा)।
2022 से 2024 तक का औसत अनुमान लगभग 626 घटनाएं प्रति वर्ष माना जा सकता है, जो विभिन्न रिपोर्ट्स (जैसे Centre for Study of Society and Secularism – CSSS) पर आधारित है।
इससे 2022-2024 के लिए करीब 1,878 घटनाएं होती हैं।
2025 के लिए, जनवरी से मार्च तक का डेटा अभी अधूरा है, लेकिन CSSS की 2024 रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल 59 दंगे हुए थे, और 2025 में भी इसी तरह का पैटर्न जारी रह सकता है।
इसलिए, 2014 से मार्च 2025 तक का अनुमानित कुल आंकड़ा:
2014-2020: 5,417
2021: 378
2022-2024: 1,878
2025 (जनवरी-मार्च तक): अभी तक कोई स्पष्ट आंकड़ा नहीं, लेकिन 15-20 घटनाओं का अनुमान संभव।
कुल मिलाकर, 2014 से मार्च 2025 तक लगभग 7,700 से 7,800 सांप्रदायिक दंगे होने का अनुमान है।
यह संख्या अनुमानित है और आधिकारिक 2025 डेटा उपलब्ध होने पर बदल सकती है।
NCRB और CSSS जैसे स्रोतों से नवीनतम आंकड़े समय के साथ और स्पष्ट होंगे।
Hey grok, which political party gains electorally everytime there is a riot in India?
Research suggests that the Bharatiya Janata Party (BJP) often sees an electoral advantage following riots in India. Studies, such as one from Yale University, indicate that the BJP’s vote share tends to increase after communal violence, with an estimated boost of around 0.8 percentage points in elections following such events. This is largely attributed to communal polarization, where riots heighten religious divisions, driving Hindu voters toward the BJP’s Hindu nationalist platform. In contrast, the Indian National Congress typically experiences a decline in vote share after riots, as they are perceived to lose support among voters affected by the unrest. While the BJP doesn’t necessarily provoke every riot, the pattern of electoral gain through polarization is well-documented historically.
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