विपुल रेगे। ‘आदिपुरुष’ पर दर्शकों की प्रतिक्रियाएं सुनने के बाद सेंसर बोर्ड, ओम राउत और निर्माता भूषण कुमार को अपने काम सदा के लिए छोड़ देना चाहिए क्योंकि ये लोग अपने-अपने काम करने लायक ही नहीं है। हिन्दुओं के महान पौराणिक ग्रन्थ ‘रामायण’ के साथ छेड़छाड़ और उस छेड़छाड़ की संवैधानिक इज़ाज़त के गंभीर अपराध के लिए क्या उत्तरदायी लोगों और संस्था को ‘रामद्रोही’ कहकर नहीं बुलाना चाहिए ? ‘आदिपुरुष’ को रामकथा के प्रस्तुतिकरण के लिए नहीं अपितु रामकथा बदलने के गंभीर अपराध के रुप में गिना जाएगा।
‘आदिपुरुष’ के प्रोमो और ट्रेलर्स को देखकर अनुमान हो चला था कि महंगे महकते सुंदर लिफाफे के अंदर ‘चवन्नी’ का माल हो सकता है। फिल्म रिलीज होने पर आशंकाएं सत्य सिद्ध हुई। निर्देशक ओम राउत ने हॉलीवुड का चश्मा लगाकर ‘रामायण’ बनाने का प्रयास किया है और औंधे मुंह गिरे हैं। हम पूरी फिल्म में रामायण और उसकी अनुभूतियों को खोजते रह गए लेकिन हाथ में आए मटमैले वीएफएक्स और फुटपाथी डायलॉग, जिन्होंने खून जलाने का ही काम किया।
टी सीरीज के भूषण कुमार और निर्देशक ओम राउत को थियेटर्स के बाहर खड़े होकर दर्शकों से सुनना चाहिए कि उन्होंने फिल्म बेचने के लिए क्या-क्या अपराध कर डाले हैं। फिल्म में संपूर्ण रामायण नहीं है। फिल्म राम सीता और लक्ष्मण के वनवास से शुरु होती है। यहाँ सीता हरण और उसके बाद श्री राम और वानर सेना का श्रीलंका जाना। श्रीलंका में रावण के साथ युद्ध और कथा समाप्त हो जाती है। माना कि आप सवा दो घंटे में संपूर्ण रामायण नहीं दिखा सकते लेकिन जिन प्रसंगों को उठाया है, उन्हें तो निष्ठा से बना सकते थे ।
राम, रावण, सीता और हनुमान की छवियों को जिस ढंग से हास्यापद बनाया गया, वह एक अक्षम्य अपराध है। ऐसा लगता है कि ऐसा ‘सुनियोजित’ ढंग से किया गया है। हनुमान जी के मुंह से छपरी संवाद बुलवाना एक उदाहरण है। संवाद लेखक मनोज मुंतशिर को मालूम था कि ऐसे संवादों पर विरोध हो सकता है, फिर भी उन्होंने ऐसा किया। ओम राउत के इन फ़िल्मी हनुमान को जब अमेरिकी प्रणाम करते देखा तो राउत के दिमागी दिवालियेपन की दाद देनी पड़ी। एवेंजर्स और लार्ड ऑफ़ द रिंग्स की तर्ज पर रामायण गढ़ दी गई है।
550 करोड़ का ये तमाशा कायदे से पचास करोड़ का भी नहीं लगता। सस्ते वीएफएक्स और निर्देशक की सस्ती सोच ने रामकथा के सम्मान को चोट पहुंचाई है। शुरुआत में बहुत लंबा स्पष्टीकरण दिया जाता है। इसमें एक जगह लिखा जाता है कि ‘हमने इसमें काल्पनिक तथ्यों का समावेश किया है।’ रामायण पर फिल्म बनाने चले हैं और ऐसे फैक्ट्स डाल रहे हैं, जिनका कोई आधार नहीं है। क्या स्पष्टीकरण देने से ओम राउत और उसकी टीम का अपराध कम हो जाता है ? निर्देशक पर संदेह इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि उन्होंने रावण के किरदार पर अधिक मेहनत की है।
उनकी ये मेहनत परदे पर झलकती है। रावण ने राम को कब उठाकर पटका था, ये ओम राउत को सामने आकर बताना चाहिए। ऐसे ही उटपटांग तथ्यों से फिल्म भरी पड़ी है। इस फ़िल्मी रामायण को देख मन भावनाओं से अभिभूत नहीं होता। प्रभास को राम बना देखकर श्रद्धा नहीं उमड़ती। कृति सेनन में सीता की पवित्रता ढूंढे से नहीं मिलती। रावण की काली कलूटी लंका में सोना ढूंढे से नहीं मिलता। फिल्म का समग्र प्रभाव निर्मल आनंद नहीं देता। फिल्म देखकर निकले दर्शकों के चेहरों पर ईश्वरीय आनंद नहीं दिखाई देता। प्रभास में राम की विनम्रता नहीं दिखाई देती। रावण के किरदार में शिव भक्ति नहीं दिखाई देती।
खिलजी लुक वाले शक्तिशाली रावण के सामने असहाय राम को दिखाकर ओम राउत ने किसका भला किया है, ये बताने की आवश्यकता नहीं है। एक पब्लिक ओपिनियन में एक पिता गुस्से में कह रहा था कि अपने बेटे के सवाल से परेशान हूँ। बेटा पूछ रहा था कि इस फिल्म में रावण ‘डबल डेकर’ क्यों बनाया है। एक युवा गुस्से में कह रहा था कि इस फिल्म को तुरंत बैन कर देना चाहिए, क्योंकि इससे गलत जानकारियां मिल रही हैं। शायद ओम राउत और भूषण कुमार ने ‘आदिपुरुष’ बच्चों और युवाओं को भ्रमित करने के लिए ही बनाई थी।
78 एपिसोड्स के ‘रामायण’ सीरियल को बनाने में रामानंद सागर को 7 करोड़ की लागत लगी थी। वह सीरियल ‘रामायण’ को सच्चे अर्थों में प्रस्तुत करने के लिए आज भी जाना जाता है। आज तक ऐसी कोई फिल्म नहीं बन सकी, जो रामानंद सागर की ‘रामायण’ की तरह कालजयी हो जाए। ओम राउत का ये सर्कस 550 करोड़ में बनाया गया है, जिसमे दुर्भाग्य से रामायण के पात्रों का इस्तेमाल किया गया है। 550 करोड़ का ये सर्कस रामायण की ख्याति धूमिल करने का मूर्खतापूर्ण प्रयास है। इस प्रयास को पहले दिन हाउसफुल दर्शक मिले हैं। भारत में राम के नाम से लोगों को आसानी से ठग सकते हैं। या तो आप फिल्म बनाइये या आप चुनाव लड़िये।