
ज़ायरोपैथी चिकित्सा अपनाइये , 90 प्रतिशत ऑपरेशन से छुटकारा पाइये!
स्वास्थ्य के इतिहास में मौजूदा समय का उल्लेख काले अक्षरों में किया जायेगा और मानवता के साथ सबसे बड़ा धोखाधड़ी वाला युग कहा जायेगा। आज स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे घृणित कार्य हो रहे हैं। दवा, जांच, डायग्नोसिस, भर्ती, इलाज सभी में भयंकर धोखाधड़ी। ऐसा लगता है कि इस पेशे से जुड़े लोगों का धर्म परिवर्तन हो गया है। दूर-दूर तक नेकनियती, लोक कल्याण, सेवा भावना, सहृदयता छू नहीं गई है। चंद पैसों के लिये, मुर्दों को कई दिनों तक दाह संस्कार से वंचित, वेन्टीलेटर व आई सी यू में रखना तो आम बात हो गई है, परन्तु कल के वाकिये नें तो गजब ही ढा दिया। एक हास्पिटल में मृत घोषित करने के बाद भी मृत शरीर को पुनः भर्ती कर चार घंटे तक जीवित करने का प्रयास किया गया, क्योंकि मृतक का संबंधी कितना भी पैसा देने को तैयार था।
आजकल जो भी बीमारी ना समझ आये तो उसे आटोइम्यून घोषित कर इम्यूनोसप्रेसेंट तथा स्टेरॉयड का प्रयोग एक आम बात हो गई है। विडंबना यह है कि मौजूदा स्वास्थ्य प्रणाली, ईश्वर द्वारा बनाई गई सुरक्षा प्रणाली पर ही इल्जाम लगा रही है, यानि कि प्रकृति के विरोध में काम कर रही है। पूरी दुनिया प्रकृति को बचाने में लगी है और हमारा स्वास्थ्य विज्ञान उसके विरोध में हल ढूंढ रहा है। शायद ठीक ही कहा गया है, “विनाश काले बिपरीत बुद्धि”।
इसके अलावा, ऐसा लगता है कि मौजूदा स्वास्थ्य प्रणाली में हर समस्या का सिर्फ एक ही इलाज है -“अॉपरेशन”। मुझे याद है कि कुछ साल पहले यदि किसी के अॉपरेशन की बात पता चलती थी तो सभी सहम जाते थे और इंजेक्शन से लोग डरते थे। परन्तु आजकल अॉपरेशन एक आम बात हो गई है और इंजेक्शन से तो अब बच्चे भी नहीं डरते। अॉपरेशन अब विशेष नहींं रहा। वास्तविकता तो यह है कि छींक का भी इलाज अॉपरेशन ही है।
कुछ दिनों पहले अॉपरेशन को लेकर यही बात एक बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्ति ने एक प्रेस विज्ञप्ति में दी थी, जो आज भी आग की तरह सोशल मीडिया में फैल रही है। दूसरी तरफ कनाडा से आई एक बेटी ने अपने पिता के लीवर ट्रांसप्लांट का विवरण देते हुए मेदांता मेडिसिटी को मेदांता मर्डरसिटी संबोधित कर अपने पिता कि निर्मम हत्या के इल्जाम की कहानी भी सोशल मीडिया में वायरल की। समझ नहीं आता कि इस प्रकार का दोहरा मापदंड अपनाने वालों पर कब विचार होगा।
सवाल उठता है कि क्या हर समस्या का इलाज आप्रेशन ही है?
इसके लिये अॉपरेशन से उत्पन्न स्थिति का अवलोकन करना आवश्यक है। अॉपरेशन होते ही पेशेन्ट हास्पिटल के मातहत हो जाता है और जो भी डॉक्टर या हास्पिटल आदेश देते हैं, उसे मानना पडता है। अॉपरेशन मनमाना पैसा हड़पने का षडयंत्र है, ना कि पेशेन्ट को ठीक करने का उपाय। मेरा मानना है कि हमारे देश में 80% अॉपरेशन तथा जांच सिर्फ़ पैसे के लिये हो रहे हैं, उनका बीमारी से कोई संबंध नहीं है और उसे बिना अॉपरेशन के ठीक किया जा सकता है। किसी को भी बिना कारण के काटना कसाई से भी घिनौना काम है, क्योंकि कसाई किसी को अकारण नहीं काटता!
अधिकतर केस में अॉपरेशन सफल होने के बाद भी पेशेन्ट की कुछ समय में मौत हो जाती है। लोग मौत से बचने के लिये अॉपरेशन करवाते हैं, जबकि यह सभी जानते हैं कि मौत सुनिश्चित है और उसे एक पल से भी आगे-पीछे नहीं किया जा सकता। सवाल यह उठता है कि यदि हम अॉपरेशन से मरने वाले को बचा नहीं रहे, तो आखिर क्या कर रहे हैं? अॉपरेशन से हम मरने वाले का कष्ट बढ़ा रहे हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि इसके लिए हम अपने जीवन की पूरी कमाई लगा देते हैं। यहाँ तक कि कुछ तो जीवन भर के लिए बेघर और कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं। कब होगा इस जघन्य अपराध का अंत?
लोगों का विश्वास उठता जा रहा है, लोग अन्य विकल्पों की खोज में लगें हैं। ज़ायरोपैथी में आने से 90% लोंगों को अॉपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती। हमारा सभी से अनुरोध है कि मौजूदा प्रचलित स्वास्थ्य प्रणाली से हटकर, एक बार ज़ायरोपैथी अवश्य आजमायें।
नोट: जायरोपैथी के बारे में ज्यादा जानने के लिए क्लीक करें!
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