अर्चना कुमारी । आफताब अमीन पूनावाला बेहद शातिर है और उसने पुलिस को बेवकूफ बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी है । सूत्रों का दावा है कि वह जांच टीमों को परस्पर विरोधी बयानों से उलझा रखा है और पुलिस टीमें भी उसके जाल में उलझ कर परेशान महसूस कर रही है । अब उसका नार्को टेस्ट होना था। इससे पहले उसका पॉलीग्राफ टेस्ट होना है। इस टेस्ट को लाई डिटेक्टर मशीन यानी झूठ पकड़ने वाली मशीन से किया जाता है। इस टेस्ट से गुजरने के बाद आफताब से जरूरी जानकारी पुलिस के हाथ लग सकती है।
ये एक ऐसा परीक्षण है, जो सच जानने के लिए इंसान की फिजिकल और मेंटल एक्टिविटी को नापता है। टेस्ट के दौरान कुछ सवाल किए जाते हैं। इस सवालों के जवाब देते वक्त मशीन इंसान की सभी तरह की एक्टिविटी चार्ट तैयार करती है। पॉलीग्राफ टेस्ट या लाइ डिटेक्टर टेस्ट में आरोपी की फिजिकल एक्टिविटी जैसे, हार्टबीट, नाड़ी, श्वसन दर और पसीना को नोट किया जाता है। वहीं नार्को टेस्ट में आरोपी को इंजेक्शन द्वारा सोडियम पेंटोथल दवा दी जाती है।
इससे वो बेहोश होता है लेकिन उसका दिमाग सक्रिय रहता है। इसके बाद आरोपी से सवाल किए जाते हैं। इस टेस्ट के बाद ज्यादातर अपराधी सच कबूल कर लेते हैं। पॉलीग्राफ टेस्ट करने के लिए खास तरह की मशीनों और एक्सपर्ट्स की मदद ली जाती है। टेस्ट के दौरान मशीन और एक्सपर्ट्स बारीकी से आरोपी के हर मूवमेंट पर नजर रखते हैं। टेस्ट करने से पहले लाइ डिटेक्टर मशीन से आरोपी के 4 से 6 प्वाइंट को जोड़ा जाता है। आरोपी के सीने पर एक बेल्ट बांधी जिसे न्यूमोग्राफ कहते हैं।
इससे उसकी हार्ट बीट को मापती है, वहीं उंगलियों पर लोमब्रोसो ग्लव्स बांधे जाते हैं। इसके साथ ही बाजू पल्स कफ बांधते हैं, जो ब्लड प्रेशर नापते हैं। एक स्क्रीन पर ये सभी चीजें दिखती रहती हैं। इसके बाद एक्सपर्ट्स आरोपी से सवाल पूछता है। जब वो सवालों के जवाब देता है तो उसकी हार्टबीट, ब्लड प्रेशर, श्वसन दर, फिंगर मूवमेंट और पसीने को देखा जाता है। साथ ही एक्सपर्ट्स आरोपी के आंखों के इशारों को भी नोट करते हैं। इस तरह से आरोपी के सच का पता लगाया जाता है। जिस प्रवृत्ति का आफताब है वह इससे बच भी सकता है