संदीप देव । आज प्रधानमंत्री मोदी ने गुरू पूर्णिमा पर दो ट्वीट किए हैं। एक में बुद्ध की चर्चा है, एक में गुरू की महत्ता पर प्रकाश डाला है, परंतु जिन वेदव्यास जी के जन्मोत्सव पर इस आषाढ़ पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है, उन कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास जी की कहीं चर्चा नहीं है।
वेद, पुराण, महाभारत, गीता, ब्रह्मसूत्र के रचयिता वेदव्यास जी को इस तरह इग्नोर करना सनातन धर्म के सभी शास्त्रों की उपेक्षा का संकेत है।
संघ ने इसकी घोषणा पहले ही कर रखी है कि उनका आधार कोई सनातन शास्त्र नहीं होगा। इसी विरोध में करपात्री जी ने गुरु गोलवलकर जी के विचार नवनीत को आधार बना कर संघ की आलोचना करते हुए ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू धर्म’ नामक पुस्तक लिखी थी। स्वयं भागवत जी कह चुके हैं कि मेरा नाम भागवत है, परंतु मैंने भागवत नहीं पढ़ी।
सनातन के मूल शास्त्रों और उसके रचयिता भगवान वेदव्यास जी के प्रति संघ और भाजपा की उपेक्षा का मैसेज सदा से क्लियर है, बस अंधों को नहीं दिखता है। वाल्मीकि जी को याद वो केवल ‘वोट बैंक’ के लिए करते हैं, श्रद्धा के लिए नहीं।