विनय झा। कहा जाता है कि पहले की सरकार ने अमरीका के दवाब में सन्धि की थी कि भारतीय सेना का आकार नहीं बढ़ाया जायगा । बहुत ढूँढने पर भी मुझे इसका कोई प्रमाण नहीं मिला। अनेक देश मनमाने तौर पर अपनी सेनाओं को बढ़ा रहे हैं। जर्मनी पर विश्वयुद्ध के कारण प्रतिबन्ध लगे थे किन्तु अब अमरीका के कहने पर वह अपनी सेना और खर्चे में वृद्धि कर रहा है। क्या केवल भारत के लिये सेना नहीं बढ़ाने की अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि है?सच्चाई यह है कि भारतीय सेना का आकार घटाने के लिए इस तरह के मनगढ़न्त तर्क प्रचारित किये जाते हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि तो भारत को अणुबम रखने से भी रोकता है,किन्तु जब इसी अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि ने चीन को अणुबम रखने की अनुमति दी तो भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि की परवाह नहीं की और अपनी सुरक्षा को महत्व दिया।हाल में एक कुतर्क का प्रचार हुआ है कि उपरोक्त अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि के कारण भारत अपनी सेना का आकार नहीं बढ़ा सकता जिस कारण अग्निपथ योजना के बहाने आकार बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। पता नहीं अन्धभक्तों के उर्वर मस्तिष्कों में ऐसी झूठी बातें कौन डालता है।
सेना ने स्पष्ट कर दिया है कि अब केवल अग्निपथ योजना द्वारा ही नयी भर्तियाँ होंगी। अग्निपथ योजना द्वारा ४६००० नयी बहालियाँ एक वर्ष में होंगी। उनमें से एक चौथाई भाग को रखा जायगा,तीन चौथाई को पैसे देकर निकाला जायगा जो “सेना से रिजेक्टेड” का स्वर्णिम मेडल लेकर अच्छी नौकरियाँ ढूँढ लेंगे। पहले जितने सैनिक सेना से अवकाश लेकर ३६ वर्ष की आयु में निकले उनमें से कितनों को सरकार ने नौकरियाँ दी?
खैर,उनको भूलिये,४६००० में से केवल ११५०० को हर वर्ष सेना में स्थायी तौर पर रखा जायगा,जबकि हर वर्ष ६०००० सैनिक अवकाश लेते हैं। अतः सेना का आकार हर वर्ष ४८५०० घटेगा। भारत की तीनों सेनाओं में कुल १३ लाख कार्यरत हैं जिनमें लगभग आधे सैनिक हैं,शेष अधिकारी हैं। दो वर्षों से नयी भर्ती बन्द होने के कारण पहले ही सेना में १२०००० की कमी आ चुकी है,अब ४८५०० की नयी कमी हर वर्ष आयेगी। इस गति से दस वर्षों के पश्चात सेना में केवल अफसर बचेंगे जो टेक्नालॉजी द्वारा लड़ेंगे,सैनिक एक भी नहीं बचेगा । अतः अग्निपथ योजना भारतीय सेना के सफाये की योजना है।
भारतीय सेना में कोविड के कारण दो वर्षों से नयी भर्ती बन्द है। अर्धसैनिक बलों में नयी भर्ती बन्द नहीं हुई। केवल सेना में कोविड का खतरा है?कोविड जाँच करके नयी भर्ती सम्भव नहीं थी?अथवा कोई अन्य कारण है,कोविड बहाना है?सेना में सुधार पर मोदी जी ने स्वयं कहा — “need for forces that are agile, mobile and driven by technology, not just human valour” अर्थात केवल मानवीय वीरता के बूते नहीं,बल्कि टेक्नालॉजी द्वारा सञ्चालित द्रुत एवं चलायमान सेना की हमें आवश्यकता है।
अवकाशप्राप्त लेफ्टिनेण्ट−जनरल HS Panag ने खुलासा किया कि दो वर्षों से नयी भर्ती बन्द होने के कारण हर वर्ष ६०००० अवकाश लेने वाले सैनिको के कारण अभी १२०००० सैनिकों की कमी सेना में है,जो “रिफॉर्म” के लिए एक अवसर है। अर्थात् मानवीय वीरता के बूते नहीं,बल्कि टेक्नालॉजी द्वारा सञ्चालित छोटी सेना चाहिये जो द्रुत हो,बड़ी सेना धीमी होती है। जनरल के शब्द हैं “The forces of the 21st Century require quick response by agile armed forces backed by state-of-the-art military technology – more so in the subcontinental context, where nuclear weapons preclude large-scale conventional wars”
मतलब २१वीं शती के सशस्त्र बलों को टेक्नालॉजी द्वारा समर्थित द्रुत सेनाओं की आवश्यकता है,विशेषतया उपमहाद्वीप में जहाँ आणविक आयुधों के कारण बड़े स्तर के पारम्परिक युद्ध नहीं लड़े जा सकते। (लेफ्टिनेण्ट−जनरल को पता है कि अणुबम का प्रथम प्रयोग हम युद्ध में नहीं कर सकते,केवल शत्रु के अणुबम की काट में रख सकते हैं। अतः सारे युद्ध पारम्परिक तरीके से ही लड़े जायेंगे। सैनिकों को हटाने के लिए गलत तर्क क्यों दे रहे हैं?
मंशा कुछ और है ।) उनके शब्द हैं कि “large military where we are forced to use quantity to compensate for quality” अर्थात भारत के पास बड़ी सेना है जिसमें हम गुणवत्ता के बदले संख्याबल से काम चलाते हैं । अर्थात् भारत के सैनिक घटिया होते हैं। उनके शब्द हैं कि भारत अपना रक्षा खर्च नहीं बढ़ा सकता “cannot increase exponentially” मैंने पिछले पोस्ट में दिखाया कि भारत का रक्षा बजट ४% से घटकर २% पर आ चुका है,जिसको जनरल साहब वृद्धि मान रहे हैं क्योंकि वे राष्ट्रीय आय के प्रतिशत में नहीं बल्कि चालू मूल्य पर देख रहे हैं।
कुल मूल्य पर ही देखना हो तो स्थिर मूल्य पर देखना चाहिये,न कि मुद्रास्फीति को भुलाकर चालू मूल्य पर। राष्ट्रीय आय का २% रक्षा पर वे देश खर्च करते हैं जिनपर कोई आक्रमण नहीं हुआ। संसार की सबसे बड़ी सेना रखने वाला चीन भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है,उसका पिट्ठू पाकिस्तान आतङ्की युद्ध लड़ रहा है,ऊपर से अफगानिस्तान में नया खतरा उभरा है। तो भारत ने ऐसी कौन सी टेक्नालॉजी ढूँढ ली है जो अब सैनिकों के बिना ही युद्ध लड़ लेगा?
अग्निपथ योजना द्वारा ४६००० के बदले २४०००० नयी बहालियाँ एक वर्ष में हों तभी सेना के आकार को स्थिर रखा जा सकेगा। यदि कोविड के बहाने जो १२०००० की कमी आयी है उसकी भी क्षतिपूर्ति करनी हो तो अगले पाँच वर्षों तक प्रतिवर्ष ३३६००० नयी भर्तियाँ अग्निपथ योजना द्वारा करनी पड़ेगी ताकि उसका एक चौथाई सेना में रहे। किन्तु ऐसा नहीं होगा। भारत का जोर अब सैनिकों पर नहीं बल्कि टेक्नालॉजी पर होगा।
टेक्नालॉजी कैसी है?समस्त उच्च टेक्नालॉजी आयातित है और जो कुछ देश में बनता भी है उसका उच्चतर अंश आयातित है। चिप बनाने का एक भी उद्यम भारत में नहीं है। तायवान जैसे देश में संसार के सबसे बड़ी दस चिप निर्माता कम्पनियों में से दो हैं,कोरिया में भी एक है। भारत में मुकेश अम्बानी ने हाल में दूसरे की सीमेंट कम्पनी खरीदने में लगभग अस्सी सहस्र करोड़ रूपये फूँके,उतने में विश्वस्तर का चिप निर्माता बन सकते थे।
किन्तु भारत के सेठों ने पहनावा तो इंग्लैण्ड का अपना लिया परन्तु मन में अभी तक तराजू वाली बनियागिरी भरी है। सरकार भी वैसी ही है,सबकुछ स्वदेशी चाहती है,उच्च तकनीक के सिवा। युद्धकाल में उच्च तकनीक से हम वञ्चित कर दिये जायें तो?आज रूस से बहुत अधिक भारत की राष्ट्रीय आय है,किन्तु रक्षाक्षेत्र में रूस आत्मनिर्भर तो है ही,निर्यातक भी है। परन्तु रूस से भी तेज विकास दर के बावजूद भारत के पास रक्षा बजट के लिए धन नहीं है?तो इतना तेज विकास होने पर भी सारा धन कहाँ चला जाता है?