ऐ ! राष्ट्र तू है मेरा , मैं अग्निपुत्र तेरा ;
तेरे लिये जियूँगा , तेरे लिए मरूँगा ।
जलता रहूंँगा हरदम , रोशन मेरा वतन हो ;
काँटों को नोंच डालूँ , गुलजार ये चमन हो ।
मैं बन गया हूँ शोला , मैं बिजली बन गिरूँगा ;
दुश्मन हैं जो वतन के , उनको दफन करूँगा ।
मैं बन गया हूँ शंकर , हरदम जहर पियूँगा ;
कुछ भी जतन करूँगा , अमृत न मरने दूँगा ।
मुझको नहीं है चाहत ,पद , कीर्ति और धन की ;
मैं आगे बढ़ गया हूं , मुझको वतन पुकारे ।
मैं आगे बढ़ गया हूं , मुझको वतन पुकारे ।
मैं आगे बढ़ गया हूं , मुझको वतन पुकारे ।
“वंदे मातरम -जय हिंद”
रचयिता :ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”