कोरोना वायरस की महामारी से जहां एक तरफ सारा विश जुझ रहा है, वहीं इस आपदा के चलते जिस प्रकार विश्व के तमाम देशों और उनके नागरिकों को अपनी जीवनशैली ममे मुलभूत परिवर्तन लाने पड़े हैं, उस सब से पर्यावरण पर बहुत सकरात्म्क प्रभाव पड़ा है. ब्रिटेन के गार्डियन सहित अनेकों प्रमुख अंतराष्ट्रीय अखबारों और विज्ञान से जुड़ी पत्रिकाओं में ऐसी कई रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं जिनके मुताबिक कोरोना वायरस को रोकने के लिये अर्थव्यवस्थाओं और लोगों की आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों के चलते विश्व के कई बड़े शहरों में वायु की गुणवत्ता के स्तर में खासा सुधार आया है.
पर्यावरण से जुड़े विषयों पर अपने शोध के लिये विश्व भर मे प्रख्यात भारत के संस्थान सेंटर फांर साइंस एंड इंवायर्मेंट ने भी इस विशय पर एक शोध रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस के प्रकोप को रोकने के लिये जो भारत में सख्त कदम शुरुआती दौर में भी उठाये गये थे, जैसे की रेस्तरां, सिनेमा हांल, मांल आदि को बंद करना, लोगों को घर से काम करने की ही सलाह देना और फिर उसके बाद जनता कर्फ्यू, इन सभी कदमों की वजह से सड़्क पर जो गाड़ियों की तादाद घटी, फक्ट्रियां आदि बंद हुईं और कंस्ट्र्क्शन के काम पर भी रोकथाम लगाई गई, उस सब के चलते दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगरों में वायु की गुण्वत्ता के स्तर में अचानक बहुत सुधार हुआ. मुम्बई और कलकत्ता जैसे महानगरों में तो जनता कर्फ्यू के कुछ दिनों पहले की वायु गुणवत्ता का आंकलन किया गया तो पाया कि यहां वायु में पी एम 2.5 पार्टिक्युलेट की मात्रा 60-61 प्रतिशत तक घटी. पी एम 2.5. पार्टिक्युलेट हवा में घुले सबसे ज़हरीले कण होते हैं. यदि इंसान लंबे समय तक ऐसी हवा को अंदर लेता रहे जिनमे इनकी मात्रा अधिक होती है, तो वह सांस से जुड़ी हुई बीमारियों का सीधा निशाना बन जाता है. जहां तक कोरोना वायरस की बात है, तो बहुत से अंतराष्ट्रीय शोध में यह भी पाया गया कि कोरोना संक्रमण के तार कहीं न कहीं वायु प्रदूषण से भी जुड़े हैं. यानि अत्यधिक वायु प्रदूषण के प्रभाव के कारण जिन लोगों का इम्यून सइस्टम काम्प्रमाइज़ हो चुका है या फिर जिनहे सांस से जुड़ी बीमारियां पहले से ही हैं, उनके कोरोना से संक्रमित होने का खतरा अधिक रहता है. यानि कि एक स्वस्थ इंसान जो कि ऐसे वातावरण में रहता है जहां कि वायु प्रदूषण की मात्रा बहुत कम, उसके कोरोना से संक्रमित होने का खतरा भी कम है.
सेंटर फांर साइंस एंड इंवायरन्मेंट की रिपोर्ट की लेखिका अनुमिता रांय चौधरी ने, जो कि वहां वरिष्ठ वैज्ञानिक है, इस बात पर बल दिया है कि इस रिपोर्ट का उद्देश्य ऐसा कहना कदापि नहीं है कि वायु प्रदूषण को कम करने के लिये हमें कोरोना जैसी आपदाओं का आश्रय लेना पड़ेगा. या फिर हम इस बात से प्रसन्न हों कि कोरोना की वैसे वायु प्रदूषण कम हो रहा है. ऐसा कदापि नहीं है. यह संपूर्ण मानव जाति के लिये बहुत ही दुख का समय है. लेकिन साथ की आत्म चिंतन का भी समय है . बढ़्ते वायु प्रदूषण का खतरा संपूर्ण देश के लिये एक बड़ा खतरा है जो कि हर समय बना रहता है. इस प्रदूषण के चलते भारत में हर साल लगभग 1.2. मिलियन लोगों की असमायिक मौत हो जाती है. लेकिन इसके बावजूद हम वायु प्रदूषण को रोकने के लिये कड़े कदम नहीं उठा पाते क्योंकि न तो इंडस्ट्री मानती है और न ही लोग, जो कि अपनी जीवनशैली में बिल्कुल परिवर्तन नहीं चाहते. लेकिन जब बात अचानक फैली एक वैश्विक महामारी के रूप में जान पर बन आती है, तो लोग अपनी सभी सुख सुविधायें, लाइफ्स्टाइल त्यागने को तैयार हो जाते हैं. और फिर वे अपने जीवन में वो सभी परिवर्तन लाते हैं, जिना यदि वो सामान्य समय में 30-40 प्रतिशत भी लायें, तो वायु प्रदूषण घटाने में बहुत मदद मिल सकती है.
ये कोरोना वायरस का संकट न सिर्फ भारत के लिये बल्कि विश्व भर की सरकारों के लिये एक आत्म-विवेचन का समय है कि जो विकास का ढांचा प्रकृति के साथ छेड़्छाड़ करके बनाया गया है, वह शाश्वत नहीं है, वह तो एक न एक दिन तहस नहस ही होगा. शाश्वत वही है जो प्रकृति को साथ लेकर चले यानि वापस एक स्वदेशी, कम्यूनिटी से जुड़े लाइफ्स्टाइल की तरफ लौटना. और भारत इस विषय में पूरे विश्व को बहुत कुछ सिखा सकता है.