देश के सबसे बड़े प्रदेश में सपा और बसपा ने महागठबंधन का समीकरण तैयार कर लिया था। कांग्रेस के लिए उसके दो पारंपरिक लोकसभा सीट, रायबरेली और अमेठी को छोड़कर बांकी के 78 सीटों पर सपा और बसपा ने 37 और 38 सीट अपने लिए और तीन सीट अजीत सिंह के लोकदल के लिए छोड़ा था। सपा और कांग्रेस का समझौता हो या न हो रायबरेली और अमेठी में लगभग दो दशक से सपा, कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारती। यह एक तरह का सपा व कांग्रेस का अघोषित समझौता है।
मायने ये कि सपा – बसपा ने मोदी के खिलाफ एकजुटता का जो गठबंधन किया, सबसे बड़े राज्य में, महागठबंधन के लिए कांग्रेस की कोई जगह नहीं थी। सपा और बसपा ने कांग्रेस को दान के रूप में महज दो पारंपरिक सीट देकर कांग्रेस से किनारा कर लिया था। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकता से संदेश दिया कि प्रदेशों मे क्षेत्रीय दल कांग्रेस के बिना चुनाव लड़े और बाद में काग्रेस संग गठबंधन कर सरकार बनाए। लेकिन पुलवामा के बाद पाकिस्तान पर हुए एयर स्ट्राईक के बाद देश का राजनीतिक मिजाज बदलने लगा। मोदी सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ जो रुख अख्तियार किया भारता की जनता दशकों वही चाहती थी।
चार दशक से आतंकबाद में अपने जवानो की शहादत झेल रहे भारत ने पाकिस्तान को घर में घुस के क्या मारा प्रधानमंत्री मोदी का कद और तेजी से बढ़ने लगा। विपक्ष के लिए यह परेशानी और बौखलाहट का कारण बन गया। परिणाम यह कि कांग्रेत समेत विपक्ष देश की सेना के शौर्य पर सवाल करने लगे। भारतीय विपक्ष पाकिस्तान के चहेते बन गए। वहां की मीडिया की सुर्खियों में आ गए। देश के अंदर अपनी पक्की हार को देखने लगे। फिर उस कांग्रेस की तरफ हाथ बढाया जिससे दुरी बनी ली थी।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन के लिए हाथ बढ़ाया। उस आम आदमी पार्टी ने जिसकी पैदाइस ही महज पांच वर्ष पहले कांग्रेस के भ्रष्टाचारी स्वरुप के खिलाफ हुआ था। बदले हालात में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों को लगता था कि दिल्ली में मुस्लिम वोट के बटने से उनकी हार तय है। कांग्रेस ने भी लाज बचाने के लिए उस पार्टी के गंठबंधन की चाह पा ली जिसने उसके मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ झूठ फैला कर सत्ता हासिल की। उस शीला के खिलाफ चार साल में कोई बयान तक नहीं दिया।
सख्ति तो दूर की बात।पाकस्तान पर एअर स्ट्राइक के बाद अरविंद केजरीवाल ने गिरगिट की तरह रंग बदला। जिस अरविंद ने दो दिन पहले आज तक से इंटरव्यू में कहा कि हमारे चालीस जवान मारे गए। हमे कार्रवाई करनी चाहिए। चालीस के बदले चार सौ पाकिस्तानी चाहिए। सरकार कार्रवाई क्यों नहीं कर रही। सेना को खुला क्यों नहीं छोड़ रही। उस अरविंद ने एअर स्ट्राईक के बाद कहा। मोदी जी युद्ध का माहौल क्यों बना रहे हो। तीन सौ सीट के लिए लाशो की राजनीति क्यों कर रहे हो। अरविंद के प्रधानमंत्री पर किए इस सवाल से वो पाकिस्तान में हीरो बन गए। लेकिन हिंदुस्तान में खुद को जीरो महसूस करते अरविंद ने कांग्रेस के हाथ के साथ के बिना दिल्ली में वजूद बचाने के भय से कांपने लगे। यह माहौल बनाकर कि हम कांग्रेस के साथ समझौता चाहते हैं, आदमी पार्टी ने दिल्ली के सात में से 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी।
इसी बीच पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक ने देश का माहौल बदल दिया। वह तमाम राजनीतिक दल जो कर्नाटक में कांग्रेस -जेडीएस के सरकार बनने पर एकजुटता दिखाने के बंग्लुरु में एक साथ पूरे विपक्ष के साथ होने की तस्वीर पेश की थी, लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर अलग-थलग पड़ने लगी। एक दूसरे पर छींटाकशी करने लगे । लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक के बाद गठबंधन की मजबूरी को महसूस करने लगे। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकत्ता में मोदी विरोधी नेताओं को एक मंच पर बुला कर राजनीतिक नेतृत्व की चालाकी शुरू की।
कांग्रेस ने इसे भांप लिया। कांग्रेस को एहसास था कि ममता महागठबंधन की अगुवाई कर खुद को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार पेश कर सकती है। इसलिए राहुल गांधी ने कोलकाता में विपक्षी पार्टियों की महारैली में खुद को दूर कर लिया। ममता ने कोलकाता से संदेश दिया कि तमाम क्षेत्रीय पार्टियों को अपने अपने राज्य में अपने बूते चुनाव लड़ना चाहिए और केंद्र में सरकार बनाने की बारी आई तो फिर कांग्रेस के साथ मिलकर आगे बढ़ना चाहिए।
सवाल यह उत्पन्न होने लगा यदि हर राज्य में क्षेत्रीय दल कांग्रेस से खुद को दूर कर लेगी तो आखिर कैसे कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में सामने आएगी! कैसे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश किया जा सकेगा! तमाम कवायद महागठबंधन की समीकरण को तोड़ता जा रहा था। यह नरेंद्र मोदी के लिए शुभ संकेत थे। लेकिन पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान पर हुए एयर स्ट्राइक ने देश का मिजाज बदल दिया।
विरोधी दलों को यह लगने लगा मोदी ताकतवर बन कर सामने आ रहे हैं। उन्हें हराना अब असंभव सा हो रहा है । ऐसे में ममता बनर्जी ने बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा नेता अखिलेश यादव से बात कर कांग्रेस ,बसपा और सपा को उत्तर प्रदेश में सीटों की गठबंधन को लेकर एकजुट होने के लिए तैयार किया। सपा और बसपा ने कांग्रेस को किनारा कर दिया था। शनिवार की शाम और पूरे दिन रविवार और सोमवार को लखनऊ और दिल्ली में महागठबंधन की कवायद में जुट गए। लगातार मैराथन बातचीत तीनो दलों के राजनीतिक नीतिनियंताओं के बीच चलने लगी। राजनीति में प्रियंका की आधिकारिक एंट्री के बाद कांग्रेस खुद को ताकतवर महसूस कर रही थी लेकिन एयर स्ट्राइक के बाद एकाएक प्रियंका की चमक भी धूमिल होने लगी।
कांग्रेस की परेशानी इस लिहाज से बढ़ रही थी उसका ब्रह्मास्त्र भी कहीं धूल के गर्त में न समा जाए। ऐसे में कांग्रेस की मजबूरी हो रही थी कि वह सपा और बसपा के साथ उत्तर प्रदेश में गठबंधन करें। सपा और बसपा ने कमोबेश उत्तर प्रदेश में 37 और 38 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला कर लिया, लेकिन पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक के मोदी सरकार के साहसिक फैसले ने उनकी बेचैनी बढ़ा दी। देश के सबसे बड़े प्रदेश,, जहां से दिल्ली की सत्ता की सीढ़ी जाने की बात हमेशा की जाती है, उस प्रदेश में हासिए पर खड़े कांग्रेस को लगा प्रियंका का दांव भी अब बेकार जा सकता है । इस मजबूरी ने सपा और बसपा से नजदीकी बढ़ाने को कांग्रेस को मजबूर किया।
वहीं वोट बंटने के भय और मोदी के बढते डर ने सपा – बसपा व कांग्रेस को एक टेबल पर आने को मजबूर किया । भय में प्रीत बढ़ाने के स्वार्थ में बातचीत शुरु हुई लेकिन बसपा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 9 सीट से ज्यादा देने को तैयार नहीं हुई। कांग्रेस खुद को कम से कम सपा और बसपा के समक्ष रखना चाहती है । उत्तर प्रदेश और बिहार में क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर अपने वजूद के लिए लड़ रही कांग्रेस ने यह तो तय कर लिया कि आम आदमी पार्टी से हाथ नहीं मिलाएगी। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में अपनी हैसियत को समझते हुए कांग्रेस सपा और बसपा के पास सीटों के लिए लगातार विनती कर रही है। स्थिति कमोबेस सपा और बसपा के लिए भी है।
अपनी शर्त पर कांग्रेस से समझौता करने के लिए सपा बसपा उसे यह कह कर भी डरा रही है कि वो बदले हालात में अमेठी और रायबरेली में भी उम्मीदवार खड़ा कर सकती है। यह सब इसलिए ताकि मोदी के बढते कद से कांग्रेस को डरा कर यूपी में कम से कम सीटों पर कांग्रेस को समझौते के लिए तैयार किया जा सके। इसके लिए कवायद खुद ममता कर रही है। वो चाहती है मोदी का भय दिखाकर तमाम राजनीतिक दलों को महागठबंधन में लाया जा सके। यह महागठबंधन की नेत्री के रूप में खुद को पेश करने की ममता की चालाकी भी है जिसे कांग्रेस भांप रही है। महागठबंधन की यही मजबूरी है कि कोई किसी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं । लेकिन मोदी और अब भारत का पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक इन तमाम राजनीतिक दलों की मजबूरी हो गई है। इस लिहाज से महागठबंधन का कवायद फिर शुरू हो गई है।
URL : airstrike on pakistan became political fear for opposition to make mahagathbandhan
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