विपुल रेगे। अक्षय कुमार और इमरान हाश्मी की ‘सेल्फी’ मलयालम भाषा में बनी ‘ड्राइविंग लाइसेंस’ का हिन्दी रीमेक है। एक आरटीओ इंस्पेक्टर और एक सुपरस्टार के बीच का संघर्ष दिखाती ‘सेल्फी’ युवा दर्शकों का ध्यान अपनी ओर नहीं खींच पाई। ‘सेल्फी’ समाज को एक अच्छा संदेश देती है लेकिन मनोरंजन के पैमाने पर खरी नहीं उतरती। पहले दिन की ठंडी ओपनिंग दिखा रही है कि खिलाड़ी कुमार का क्रेज़ टिकट खिड़की पर कम हो चला है। ‘पठान’ की आसमानी सफलता के बाद ‘शहज़ादा’ और ‘सेल्फ़ी’ बॉलीवुड को फिर से जमीन पर उतार लाई है।
मलयालम फिल्म ‘ड्राइविंग लाइसेंस’ सन 2019 में रिलीज हुई थी। इसके अलहदा विषय ने दर्शकों को आकर्षित किया। फिल्म की सबसे अच्छी बात थी कि ये कम बजट में बनाई गई थी। मात्र चार करोड़ में बनाई गई ‘ड्राइविंग लाइसेंस’ ने लगभग तीस करोड़ का कलेक्शन किया था। बजट को देखते हुए ये हिट फिल्म का कलेक्शन कहा जाएगा। हालाँकि ये अच्छी बात अक्षय कुमार और इमरान हाश्मी की ‘सेल्फी’ के साथ नहीं है। फिल्म का बजट लगभग 150 करोड़ है।
फिल्म की कहानी इन्स्पेक्टर ओम प्रकाश अग्रवाल से शुरु होती है। ओम प्रकाश एक आरटीओ इन्स्पेक्टर है। वह फ़िल्मी सुपर स्टार विजय कुमार का बहुत बड़ा फैन है। उसका एक सपना है कि वह विजय कुमार के साथ एक सेल्फी ले। एक दिन विजय कुमार ओम प्रकाश के शहर भोपाल में शूटिंग के लिए आता है। परिस्तिथियाँ कुछ ऐसी बनती है कि विजय कुमार को ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आरटीओ ऑफिस जाना पड़ता है। यहाँ कुछ गलतफहमी के चलते ओम प्रकाश और विजय कुमार में लड़ाई की स्थिति बन जाती है। ओम प्रकाश इस लड़ाई को मीडिया में ले जाता है।
निर्देशक राज मेहता की ‘सेल्फी’ बहुत अच्छी बन सकती थी लेकिन कई गलतियों के कारण ये अधपकी डिश बनकर रह गई। कलाकारों के अभिनय में कोई कमी नहीं है। अक्षय कुमार, इमरान हाश्मी, नुसरत भरुचा और डायना पेंटी ने अच्छा अभिनय किया है। कलाकारों ने तो अपना काम ठीक से किया लेकिन निर्देशक की ओर से कमी रह गई। अक्षय कुमार के किरदार में निगेटिव एंगल है, जो दर्शक को पसंद नहीं आया। उनका किरदार वैसा नहीं संवारा गया, जैसा इमरान हाश्मी का। इमरान ने बहुत अच्छा अभिनय किया है। उनके किरदार में बहुत स्पार्क दिखाया गया है।
फिल्म पहले हॉफ में ठीक चलती है लेकिन दूसरे हॉफ में बिखर जाती है। इमोशनल सीन अधिक हैं और लंबे खींचे गए हैं। फिल्म में कोई ‘वॉव मूमेंट’ नहीं है। इसका कारण ये है कि दूसरे भाग में फिल्म प्रिडिक्टिव हो जाती है। दर्शक समझ जाता है कि अब आगे क्या होने जा रहा है। और जब ऐसा होता है तो फिल्म अपनी ग्रिप खो देती है। शाहरुख़ खान की ‘पठान’ से बॉलीवुड ने जो लय और ताल पकड़ी थी, वह फिर से खो दी है।
अक्षय कुमार के लिए फिल्म ढहना खतरे की घंटी है। एक समय था जब एक के बाद एक पंद्रह फ़िल्में पिट जाने के बाद अक्षय कुमार ने परेशान होकर कनाडा की नागरिकता ले ली थी। अब अक्षय कहाँ की नागरिकता लेंगे , ये एक बड़ा प्रश्न है। फिलहाल तो ‘सेल्फ़ी’ को दर्शकों की तलाश है। यदि आप अक्षय कुमार के फैन हैं तो ही इस फिल्म को देखे। बाकी दर्शकों के लिए ये एक उबाऊ फिल्म हो सकती है।