मक्का मस्जिद पर आए निर्णय ने साबित कर दिया कि कांग्रेस की योजना पूरे हिंदू समुदाय को आतंकवादी बनाने की थी, जो परवान नहीं चढ़ सकी। कांग्रेस ने हिंदू आतंकवाद को स्थापित करने के लिए अपनी विचारधारा के मीडिया हाउसों और पत्रकारों को जरिया बनाया, और उनसे खबर प्लांट कराई।
सोनिया की ‘मनमोहनी सरकार’ के दो मंत्री-सुशील कुमार शिंदे और पी. चिदंबरम के अलावा स्वयं वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और दिग्विजय सिंह ने मिलकर हिंदू आतंवाद की अवधारणा गढ़ी और बिना जांच के यह घोषित कर दिया कि 2007 का समझौता एक्सप्रेस धमाका, मक्का मसजिद धमाका, अजमेर दरगाह धमाका और 2006 के मालेगांव धमाके में हिंदू आतंकवादियों का हाथ था। जबकि उस समय के जांच में इन धमाकों में प्रतिबंधित इस्लामी संगठन सिम्मी, जमात-उल-दावा और लश्कर-ए-तोइबा जैसे आतंकी गुट का हाथ सामने आया था।
‘दक्षिण एशिया टेरिरिस्ट पोर्टल’, ‘द इंस्टीटयूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस’ एवं ‘नेशनल काउंटर टेरिजिज्म सेंटर’ ने उसी वक्त बताया था कि मक्का मसजिद में ब्लास्ट किसी हिंदू आतंकवादी ने नहीं, बल्कि इस्लामी चरमपंथी संगठन हरकत-उल-जेहाद-अल इस्लामी के आतंकियों ने किया था। लेकिन लाल किले से देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का बताने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार मुसलिम तुष्टिकरण में इतनी अंधी हो चुकी थी कि उसने यह तय कर लिया कि वह देश में हिंदुओं को आतंकवादी घोषित और स्थापित करके रहेगी! वही उसने करने का प्रयास किया!
यूपीए सरकार ने स्थानीय पुलिस की जांच में मुसलिम संगठनों को फंसता देख, इन धमाकों की जांच में अपने अधिकार वाली एजेंसी-एनआईए, सीबीआई और एंटी टेरेरिस्ट क्वायड इंडिया जैसी एजेंसियों को लगा दिया और एक तरह से इन्हें ठेका दे दिया कि इन धमाकों में हिंदू आतंकवाद की भूमिका को स्थापित और प्रमाणित करे। अपनी इन जांच एजेंसियों के अलावा कांग्रेस ने अपने मीडिया संगठनों और पत्रकारों को भी इस काम पर लगा दिया ताकि हिंदुओं को आतंकवादी स्थापित करने का विमर्श देश सहित पूरी दुनिया में स्थापित किया जा सके।
सोनिया गांधी के लिए शुरु से काम कर रहे और अपने ही सहकर्मी का यौन शोषण करने के आरोपी तरुण तेजपाल अपनी ‘तहलका’ पत्रिका, राजदीप सरदेसाई व राघव बहल अपने ‘सीएनएन-आईबीएन’ ग्रुप और वामपंथी पत्रिका ‘कारवां’ ने यह मोर्चा संभाला और हिंदुओं को आतंकवादी ठहराने का अभियान शुरु कर दिया! 15 जनवरी को तरुण तेजपाल के ‘तहलका’ ने और फिर राजदीप सरदेसाई व राघव बहल के ‘सीएनएन-आईबीएन’ ने कथित रूप से असीमानंद का बयान छापा और दिखाया, जिसके जरिए यह स्थापित करने का प्रयास किया गया कि अजमेर, मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस आदि में हिंदू आतंकवादियों का हाथ है, जबकि उस समय तक चार्जशीट भी दाखिल नहीं किया गया था!
बाद में असीमानंद ने अप्रैल 2010 में अदालत को एक पत्र लिखा कि ‘वह मेरा बयान नहीं है। जांच एजेंसियों ने मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताडि़त किया और कहा कि मैं सारे गुनाह में अपनी संलिप्तता बताउं।’ स्वामी असीमानंद ने यह भी कहा कि ‘उन्हें धमकाया जा रहा है कि मैं सरकार गवाह बन जाउ।’ असीमानंद के कथित बयान को छापने व दिखाने वाले और कई दिनों तक इस पर बहस कर हिंदू आतंवाद का विमर्श स्थापित करने का प्रयास करने वाले पत्रकारों व मीडिया हाउस ने इस पूरे मामले को ठंढ़ा करने और दबाने का कुचक्र रचा और वो सफल रहे।
इसके बाद एक वामपंथी पत्रिका ‘कारवां’ ने जेल में बंद असीमानंद का साक्षात्कार छाप कर यह दावा किया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत व इंद्रेश कुमार को बम धमाके की जानकारी थी। कैसे किसी पत्रकार को जेल में बंद असीमानंद तक पहुंचने दिया गया और उसका साक्षात्कार लेने दिया गया? इससे यह पूरा मामला ही कांग्रेस प्लांटेड लग रहा था! सारी एजेंसियों ने उस समय तक चार्जशीट तक दाखिल नहीं किया था, इसलिए फिर से कांग्रेस ने अपनी विचारधारा के पत्रकारों व मीडिया हाउस को यह ‘सुपारी’ दी कि हिंदू आतंकवाद को स्थापित करने के लिए असीमानंद को फिर से टारगेट करे और बहस छोड़े।
आज जब अदालत ने असीमानंद को सारे आरोपों से बरी कर दिया है तो क्या असीमानंद के कथित बयानों को छापने वाले ‘तहलका’, ‘कारवां’ और दिखाने वाले ‘सीएनएन-आईबीएन’ देश की हिंदु जनता से माफी मांगेंगे, जिनको इन लोगों ने आतंकवादी साबित करने के लिए कांग्रेस की अवधारणा को बिना जांच किए ही आगे बढ़ाया था?
आपको बता दूं कि 2009 में कांग्रेस की सरकार को बचाने के लिए ‘कैश-फॉर-वोट’ की सीडी दबाने का आरोप इसी राजदीप सरदेसाई और उसके ‘सीएनएन-आईबीएन’ पर है! इसी तरह कपिल सिब्बल के पैसे से खड़ा ‘तहलका’ और तरुण तेजपाल ने आज तक कभी भी गांधी परिवार या कांग्रेस के खिलाफ एक भी स्टिंग नहीं किया था। उसका सारा स्टिंग केवल और केवल भाजपा के खिलाफ रहा है, जो बाद में अदालत में फेक भी साबित होता रहा! लेकिन इन्हें तो गलत विमर्श को स्थापित करना था, जो इन्होंने किया। इसी तरह ‘कारवां’ आज भी जज लोया मामले में एक तरफा और एक तरह से फर्जी खबर चलाकर 2019 के लिए कांग्रेस की राह आसान करने में जुटा है! भारत की पूरी पत्रकारिता में कुछ चेहरे हमेशा से कांग्रेस के इशारे पर ‘सांप्रदायिकता’ फैलाने की कोशिश में जुटे रहे हैं! क्योंकि कांग्रेस की ‘बांटों और राज करो’ की नीति इन्हें भी सूट करता है! सांप्रदायिकता, जातिवाद और नफरत फैलाने में भारतीय मीडिया का दुनिया में कोई सानी नहीं है!
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