विपुल रेगे। अल्लू अर्जुन की नई फिल्म ‘पुष्पा -द राइज़’ ने बॉक्स ऑफिस की खिड़कियां तोड़ डाली है। पहले सप्ताह के तीन दिन के भीतर ही इसने वर्ल्ड वाइड सौ करोड़ बटोर लिए हैं। हिन्दी बॉक्स ऑफिस पर न केवल अल्लू अर्जुन बल्कि दक्षिण भारतीय सिनेमा का नवीन उदय देखने को मिल रहा है। पहले दिन हिन्दी बॉक्स ऑफिस पर तीन करोड़ से अधिक का कलेक्शन कर इस फिल्म ने ‘केजीएफ’ द्वारा स्थापित कीर्तिमान तोड़ दिया है।
250 करोड़ के भव्य बजट से पुष्पा के दो भाग बनाए गए हैं। पहला भाग शुक्रवार को रिलीज होते ही दर्शक सिनेमाघरों पर टूट पड़े। मेगास्टार अल्लू अर्जुन के लिए ऐसी ही दीवानगी हिन्दी पट्टी में भी देखी जा रही है। पुष्पा राज एक श्रमिक है। उसके पिता ने उसकी माँ से विवाह किया था लेकिन बच्चे को अपना नाम नहीं दिया। पुष्पा एक दिन बहुत मूल्यवान लाल चंदन की तस्करी करने वाले तस्करों से जा मिलता है।
पैसे और वर्चस्व की भूख उसे बहुत आगे ले जाती है। वह एक साधारण लड़की शिवल्ली से भी बहुत प्रेम करता है लेकिन उसके नाम के आगे पिता का नाम न होने के कारण उसे अपमानित किया जाता है। पुष्पा कभी झुकता नहीं है। उसकी ये आदत उसके कई दुश्मन बना देती है। निर्देशक सुकुमार की इस फिल्म की कहानी साधारण है किन्तु उसे ट्रीटमेंट उच्च स्तर का दिया गया है। ये कहानी कई बार दोहराई जा चुकी है।
मुख्यतः ऐसी कथाएं ‘गॉडफादर’ की मूल कथा से जन्मी है इसलिए अपराध उनमे स्थायी तत्व होता आया है। हम बॉलीवुड की अपराध कथाओं को देखे तो उनमे भी नायक गरीब और समाज द्वारा प्रताड़ित होकर अपराध की ओर मुड़ जाता है। पुष्पा का चरित्र एक बहुत ही सामने व्यक्ति का है, जिसे कपड़े तक पहनते नहीं आता। इस फिल्म की सबसे बड़ी यूएसपी निःसंदेह अल्लू अर्जुन की शक्तिशाली प्रेजेंस है।
इधर हिन्दी पट्टी में विगत कुछ वर्षों में उनकी लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी है। पुष्पा के किरदार में उनका संपूर्ण रुपांतरण देखने को मिलता है। बिखरे, उलझे बाल, साधारण पैंट-शर्ट, पैरों में चप्पल और एक सस्ती सी बाइक। यदि ये गेटअप सलमान खान जैसे स्टार को करने को कहा जाए तो शायद वे पहली बार में ना बोल देंगे। अल्लू अर्जुन की यही विशेषता है कि वे अपने पात्र की आत्मा में प्रवेश कर जाते हैं।
फिल्म में वे कहीं से भी अल्लू अर्जुन का टच नहीं देते। पूरी फिल्म में अपने किरदार में बने रहना सिद्धहस्त कलाकारों के ही बस की बात होती है। रश्मिका मनदन्ना अभी हिन्दी के दर्शकों के लिए नई हैं। उनका किरदार भी बड़ा ही सुंदर है। एक ग्रामीण महिला के किरदार को उन्होंने जतन से संवारा है। उनका गेटअप फिल्म की कथा और उसकी पृष्ठभूमि पर सटीक बैठता है।
फिल्म में ढेर सारे खलनायक है किन्तु एक ऐसा है जो थियेटर से निकलने के बाद भी याद रहता है। ये किरदार है चंदन तस्कर मंगलम श्रीनू का। उन्होंने अधिकांश फिल्मों में कॉमेडियन के रोल किये हैं और हम इस फिल्म में उनका नया ही रुप देखते हैं। पुलिस अधिकारी भंवर सिंह शेखावत का किरदार करने वाले फहाद को भी नहीं भुलाया जा सकता। फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अल्लू अर्जुन के करिश्मे से दौड़ रही है।
इसमें किये गए उनके एक्शन सीक्वेंस अकेले ही फिल्म को चलाने की क्षमता रखते हैं। फिल्म के अगले भाग का नाम ‘पुष्पा – द रुल’ होगा। अगला भाग रक्तपात से सना हुआ होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। पहले भाग में भी हिंसा के दृश्य बड़े ही भयानक ढंग से फिल्माए गए हैं। यदि आप अल्लू अर्जुन के प्रशंसक हैं और रक्तपात वाली फ़िल्में पसंद करते हैं तो ये आपको निराश नहीं करेगी।
बच्चे और गर्भवती महिलाओं को ये फिल्म नहीं देखनी चाहिए। अंत में एक महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा। लगातार अपनी फिल्मों के कंटेंट बॉलीवुड द्वारा कॉपी किये जाने के बाद दक्षिण भारतीय सिनेमा ने इसका इलाज खोज निकाला है। अब उनकी बड़ी फ़िल्में इसी तरह डब कर प्रदर्शित की जाएगी। पहले तो बड़े निर्देशक ही हिन्दी बेल्ट की ओर आते थे लेकिन अब अधिक से अधिक तमिल और तेलगु फ़िल्में हिन्दी पट्टी में प्रदर्शित की जाएगी।