विपुल रेगे। अब हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि ‘पुष्पा -द राइज’ एक कल्ट फिल्म बन चुकी है। जब किसी फिल्म के दृश्य लोग सोशल मीडिया पर दोहराने लगे, उसके डायलॉग पर मीम बनाए जाने लगे। उसके गीत हर घर में बजते सुनाई दे तो समझ लीजिये कि अब वह एक कल्ट फिल्म बन चुकी है।
हिन्दी पट्टी में अब कोई फिल्म कल्ट फिल्म नहीं बन पा रही है। संभवतः कबीर सिंह आखिरी कल्ट फिल्म थी, जो हमने देखी थी। फिर 2020 के वर्ष में ‘तान्हा जी’ ने बड़ी सफलता प्राप्त की किन्तु ये कल्ट श्रेणी में अपनी जगह न बना सकी। सुशांत सिंह राजपूत की ‘एमएस धोनी’ भी एक कल्ट फिल्म मानी जाती है। मुझे स्मृति में है कि जब सूरज बड़जात्या की ‘मैंने प्यार किया’ प्रदर्शित हुई, तो उसे लोगों ने कल्ट बनाकर रख दिया था।
कलाकारों द्वारा पहने जाने वाले कपड़े, टोपी आदि बाजार में उपलब्ध हो गई थी। ऐसा ही क्रेज हम इस समय पुष्पा का देख पा रहे हैं। दाएं हाथ से अपनी उलझी दाढ़ी को सेट करने वाला दृश्य तो इतना प्रसिद्ध हो गया कि महिलाएँ तक उसकी नकल कर रही है। ऐसे ही नाचते हुए चप्पल निकल जाने की अदा भी दर्शकों को बहुत पसंद आई है।
अपितु ये अनुमान नहीं था कि अल्लू अर्जुन की ये सारी स्टाइल रजनीकांत के स्टंट्स की तरह लोगों के सिर पर चढ़कर बोलेगी। निःसंदेह दिसंबर के बाद से बस एक ही फिल्म लोगों के मन में बसी हुई है। पुष्पा के साथ एक नयापन और था। और वह था उसकी नयाभिराम दृश्यावली। दक्षिण भारत के ग्राम्य जीवन फिल्म में बहुत सुंदरता के साथ दिखाया गया है।
पहाड़ियों पर बने मंदिर, चौड़े खेत और जंगल फिल्म को एक अलग ही कैनवास प्रदान करते हैं। पुष्पा के सिनेमेटोग्राफ़र मिरोस्ला ब्रौजेक पोलैंडवासी हैं और बहुत वर्षों से वे तेलुगु फिल्म उद्योग को अपनी सेवाएं प्रदान करते आ रहे हैं। उनका कैमरा संचालन मन को छू जाने वाला होता है। इस बड़ी सफलता में हम ‘श्रीवल्ली’ को कैसे भूल सकते हैं। याद कीजिये वह दृश्य जब गांव में दूध का टैंकर आया है।
श्रीवल्ली की बॉडी लैंग्वेज और उनके भाव दर्शक को छू लेते हैं। गांव में दूध आने पर जो प्रसन्नता होती है, वह श्रीवल्ली के मुख पर सहज ही दिखाई देती है। हम जिस ओर से भी देखे, पुष्पा हमें एक कल्ट फिल्म दिखाई देती है। दक्षिण भारत का एक अभिनेता बॉलीवुड के दरवाजे तोड़ जिस अंदाज़ में अंदर घुसा है, ऐसा करिश्मा तो रजनीकांत नहीं कर सके थे, न नागार्जुन और न मम्मूटी। इस लिहाज से अल्लू अर्जुन के जीवन में ‘पुष्पा’ को मील का पत्थर मान लेना चाहिए।