सारा कुमारी। पश्चिमी शक्तियों की लापरवाह युद्धोन्मादी महत्वाकांक्षाओं की कोई सीमा नहीं है। जिस तरह नाटो की धुरी में वाशिंगटन और उसके यूरोपीय सहभागी रूस के खिलाफ यूक्रेन में युद्ध को अत्यंत विक्षिप्त मूर्खता के साथ बढ़ाते ही जा रहे हैं, उसी तरह ये पश्चिमी देश उकसावे और धमकियों से चीन की ओर भी आगे बढ़ रहे हैं। सामूहिक पश्चिमी तथाकथित नेताओं का मनोरोगी व्यवहार संदेह से परे दिखाता है, इनके लिए यूक्रेन के नागरिकों की जान माल का कोई महत्व नहीं है, बल्कि यूक्रेन का संघर्ष , एक बड़े वैश्विक टकराव के लिए मात्र एक युद्धक्षेत्र हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
इस सप्ताह अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन को पूर्वी एशिया के दौरे पर देखा गया, जहां उन्होंने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ परमाणु बलों के समन्वय के बारे में शेखी बघारी और चीन के प्रति उत्तेजक और प्रचंड शक्ति प्रदर्शन किया (उत्तर कोरिया के खिलाफ खड़े होने की आड़ में)। ऑस्टिन ने चीन पर दक्षिण एशिया की सुरक्षा को खतरे में डालने का आरोप लगाते हुए बार-बार निराधार प्रचार किया। वास्तविकता अमेरिका के इस तथ्य को उल्टा साबित करती हुई प्रतीत होती हैं, कि चीन नहीं, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी हैं जो युद्धपोतों और मिसाइलों के साथ इस क्षेत्र का अत्यधिक सैन्यीकरण कर रहे हैं। इस सप्ताह, अमेरिका ने चीन पर भविष्य में युद्ध शुरू करने के स्पष्ट उद्देश्य के लिए फिलीपींस में चार नए सैन्य ठिकाने खोलने की घोषणा की।
पेंटागन प्रमुख के साथ, नाटो गठबंधन के प्रमुख जेन्स स्टोलटेनबर्ग भी पूर्वी एशिया का दौरा कर रहे थे जहां उन्होंने चेतावनी दी थी कि रूस और चीन अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा हैं।स्टोलटेनबर्ग ने दावा किया कि अगर यूक्रेन में रूस को नहीं हराया गया तो चीन अगली समस्या होगी। उन्होंने रूस और चीन का मुकाबला करने के लिए दक्षिण कोरिया और जापान से नाटो के साथ काम करने का आग्रह किया।
टोक्यो में एक संबोधन में, स्टोलटेनबर्ग ने आगे कहा: “आज यूरोप में जो हो रहा है वह कल पूर्वी एशिया में हो सकता है। नाटो चीन का विरोधी नहीं है, लेकिन इसकी बढ़ती मुखरता और इसकी दमनकारी नीतियों को हल्के में नहीं लिया जा सकता हैं। इंडो-पैसिफिक में आपकी और यूरो-अटलांटिक में हमारी सुरक्षा के लिए, हमें चीन को सावधान करने के लिए और आगे बढ़ने से रोकने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। बीजिंग बिना किसी पारदर्शिता के परमाणु हथियारों सहित अपने सैन्य बलों का पर्याप्त निर्माण कर रहा है। वह दक्षिण चीन सागर पर अपना नियंत्रण जताने की कोशिश कर रहा है और ताइवान को धमका रहा है।”
पूर्व ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन द्वारा वाशिंगटन में अटलांटिक काउंसिल को इस सप्ताह यही संदेश दिया गया था। जॉनसन, जो एक बहु प्रतिष्ठित झूठा और फ्रॉड व्यक्ती है, जिसने इस सप्ताह प्रसारित बीबीसी के एक वृत्तचित्र में बेतुका दावा किया था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें हत्या के लिए धमकाया था।हालाकि वो इस बात को साबित नहीं किया कर सकते। रूस को निर्णायक रूप से हराने के लिए यूक्रेन को अधिक हथियारों की आपूर्ति के लिए जाॅनसन ने सबसे अपील भी करी। जॉनसन, जिन्हें डाउनिंग स्ट्रीट में अपने अचूक झूठ और साज़िशों के कारण पिछली गर्मियों में प्रधान मंत्री के रूप में पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर भी तीखी टिप्पणी करते हुए कहां की जिनपिंग ताइवान पर आक्रमण करने की दृष्टि से यूक्रेन को बारीकी से देख रहे हैं।
इस सप्ताह इस प्रकार रूस और चीन को एक आम दुश्मन के रूप में देखा गया, इन दोनों देशों का संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके नाटो minions द्वारा सैन्य रूप से सामना करने की आवश्यकता है। पश्चिमी शक्तियों के अनुसार, रूस को हराना चीन को हराने की एक प्रस्तावना है। प्रथम पड़ाव है।
पश्चिमी साम्राज्यवादियों के बीच युद्ध के लिए उन्मादी अभियान ने वैश्विक आयाम ले लिया है। अमेरिकी सैन्य कमांडर सार्वजनिक रूप से चेतावनी दे रहे हैं कि चीन के साथ युद्ध अभी से दो साल बाद ही हो सकता है, क्योंकि अभी नाटो शक्तियां वर्तमान में यूक्रेन में रूस के खिलाफ एक खतरनाक विस्फोटक युद्ध में अपना सारा ईंधन झोंक रहीं हैं।
अमेरिकी और यूरोपीय एलिट क्लास के बीच युद्ध के पागलपन का यह अविश्वसनीय प्रकोप दो कारणों से हैं, पहला, पश्चिमी पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में एक व्यवस्थित पतन है। सामाजिक मंदी और क्रांति से बचने के लिए शासक और अभिजात वर्ग को युद्ध ही एकमात्र हल दिखता है। जिससे पश्चिमी देशों की जनता का ध्यान डायवर्ट हो जाएं और वो सरकार से कोई सवाल ना पूछें।
दूसरे, पश्चिमी शक्तियाँ बहुध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को आगे बढ़ने से रोकने के लिए युद्ध को अत्यंत आवश्यक मानती हैं। उनके पूर्ववर्ती वैश्विक प्रभुत्व को बचाए रखने का एकमात्र यहीं उपाय है।रूस, चीन और वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों ने अंतरराष्ट्रीय कानून, समानता, सहयोग और आम सुरक्षा के आधार पर एक उभरती हुई बहुध्रुवीय व्यवस्था को आसानी से स्वीकार कर लेना, और उसको मान्यता देना, अमेरिकी वर्चस्ववादी दृष्टिकोण के लिए अभिशाप है। वो इसको कभी नहीं मानना चाहेंगी।
यूक्रेन में साल भर पुराने सैन्य संघर्ष में वास्तव में यही दांव पर लगा है। यह यूक्रेन के “लोकतंत्र और स्वतंत्रता की रक्षा” के लिए उठाया गया कोई कदम नहीं है , जैसा कि पश्चिमी मीडिया बेतुके तरीके से इसको साबित करने में लगा है। इस युद्ध की रूपरेखा बहुत पहले ही तैयार कर ली गई थी। जब 2014 में सीआईए समर्थित तख्तापलट के बाद से कीव में नाजी शासन वाली सरकार का गठन करना और फिर जानबूझकर डोनबास और क्रीमिया में लगातर आठ साल से वहां के लोगों पर नाजी द्वारा, तीव्रता पूर्ण आक्रामकता दिखाना, ये सब चक्रव्यूह रूस का सामना करने के रणनीतिक उद्देश्य के साथ बनाया गया था।
हालाँकि, रूस के बाद, यदि रूस पराजित हो गया तो, जिसके आसार बहुत कम नज़र आ रहे है। तो पश्चिमी शक्तियों द्वारा यूरेशियन गोलार्ध पर आधिपत्य नियंत्रण हासिल करने के लिए भू-रणनीतिक चाल में चीन अगला लक्ष्य है। अमेरिकी साम्राज्यवादी और नाटो मुखपत्र अपने स्वयं के अभिमानी शब्दों के साथ इस दांव को पहले से कहीं अधिक स्पष्ट कर रहे हैं।
दिवालिया बर्बाद पूंजीवादी पश्चिम साम्राज्य, रूस की विशाल प्राकृतिक संपदा पर विजय प्राप्त करने और अगली सदी के लिए चीन पर नव-औपनिवेशिक नियंत्रण हासिल करने की संभावनाओं पर केवल लार टपका सकता है। परंतु इन योजनाओं में सफलता प्राप्त करना बहुत मुश्किल है।
इसी सप्ताह स्टेलिनग्राद में नाजी Third Reich पर ऐतिहासिक सोवियत विजय की 80वीं वर्षगांठ देखी गई। फरवरी 1943 में उस निर्णायक जीत के कारण नाजी जर्मनी और उसकी आपराधिक साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं की हार हुई। यदि वह वीरतापूर्ण युद्ध नहीं जीता गया होता, तो दुनिया का इतिहास बहुत अलग रास्ते पर चलता।
इसी तरह आज 80 वर्ष के पश्चात फिर से यूक्रेन में एक और ऐतिहासिक लड़ाई चल रही है, जिसके परिणाम ने दुनिया को विस्तारित वैश्विक युद्ध और शायद परमाणु तबाही का भी खतरा पैदा कर दिया है, अगर नाटो साम्राज्यवादी मशीन को हराया नहीं जाता है। वाशिंगटन का रीच सिंड्रोम (जिसे “असाधारण संकीर्णता” के रूप में भी जाना जाता है) जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद से शासन किया है और जिसने दुनिया को अंतहीन युद्धों और अथक वित्तीय लूट के अधीन कर दिया है, उसे अंततः समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
यह वर्ष विश्व इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक साबित होने का दावा कर रहा है। या तो परमाणु आक्रमण से एक भयंकर विनाश देखने को मिलेगा या फिर अमेरिका और पश्चिमी देशों के वैश्विक प्रभुत्व को हरा कर, बहुध्रुवीय अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित होने की संभावना है।
जय हिन्द जय भारत