उन्नीसवीं शताब्दी के कुछ ज्वलंत प्रश्न इस इक्कीसवीं सदी में बराबर हमारे साथ चल रहे हैं। ये प्रश्न अब भी अनुत्तरित हैं। विज्ञान और अंतरिक्ष अनुसंधानों में उत्तरोत्तर प्रगति के बाद भी उन प्रश्नों का न हमारे पास कोई जवाब है, न हमने उनका जवाब खोजने के व्यापक प्रयास किये हैं। कोरोना की इस महाआपदा के समय में मीडिया की ओर से ये समाचार लगातार आ रहे हैं कि विश्वभर में यूएफओ देखे जाने की घटनाओं में तेज़ी आई है। शायद ये पहली बार हुआ है कि अमेरिका ने अपने इतिहास में पहली बार सार्वजनिक रुप से यूएफओ देखे जाने की बात स्वीकार की है। अब तक तो अमेरिका व अन्य देश यूएफओ को कल्पनाएं बताया करते थे लेकिन उनकी स्वीकारोक्ति संकेत दे रही है कि यूएफओ और एलियंस का अस्तित्व है और संभव है कि आगे कुछ और देश इस वास्तविकता को प्रकट करने वाले हैं।
इसी माह अमेरिका के नेवल सेफ्टी सेंटर ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए बताया कि सन 2013 और 2014 के बीच उनके नेवी फाइटर जेट का आठ बार यूएफओ से सामना हुआ था। इनमे से एक बार तो फाइटर को यूएफओ पर मिसाइल दागनी पड़ी थी। आठवीं मुठभेड़ सन 2019 में हुई थी, जिसमे मैरीलैंड के तटीय प्रदेश में यूएफओ देखा गया था। इसी माह की शुरुआत में नेवाडा के पूर्व सीनेट और ड्रेमोक्रेटिक पार्टी के नेता हैरी रीड ने एक वीडियो ट्विटर पर शेयर किया था। आसमान में दिखाई दिए यूएफओ का वीडियो एक महिला ने शूट किया था। पता चला कि वह वीडियो पिछले माह का ही था।
अमेरिकी नौ सेना द्वारा यूएफओ के वीडियो जारी करना कोई साधारण घटना नहीं है। ऐसा पिछले तीस साल में कभी नहीं हुआ। हर वर्ष विश्व में यूएफओ देखे जाने की तीन हज़ार से अधिक घटनाएं रिपोर्ट होती हैं लेकिन सरकारों की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता। इसे लेकर सैकड़ों तथ्यपरक खोजें हुई लेकिन उन सबको कपोल-कल्पना कहकर खारिज कर दिया गया था। अब जाकर अमेरिका जैसे देश ने ये स्वीकार लिया है कि यूएफओ होते हैं। इस देश की स्वीकारोक्ति संदेह की दृष्टी से देखी जानी चाहिए क्योंकि वह इस बारे में बहुत पहले से जानता है। क्या हम ‘रोजवेल’ भूल सकते हैं? यहां अमेरिका की टाइमिंग पर संदेह है कि उसने कोरोना काल में ही ये घोषणा क्यों की, जबकि वह इसे सन सैंतालिस के पहले से छुपाता आ रहा है।
इंग्लैंड का लिंकनशायर क्षेत्र अमेरिका के बाद सबसे अधिक यूएफओ देखे जाने वाला क्षेत्र बन गया है। इस साल में ही यहाँ लगभग तेरह मामले सामने आ चुके हैं। कोरोना आपदा के समय यहाँ पर यूएफओ के कुछ वीडियो बहुत वायरल हो रहे हैं। इसके अलावा पेरू में भी कुछ घटनाएं सामने आई हैं। दरअसल एलियंस और यूएफओ संबंधित मामलों पर सरकारों की गैर जिम्मेदाराना नीतियों के चलते आम नागरिकों में इसे लेकर भय फ़ैल रहा है। अब तक किसी सरकार ने इसे लेकर कोई वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं दिया है। यूएफओ बिलिवर्स मानते हैं कि जब पृथ्वी किसी संकट में घिरी होती है तो यूएफओ देखने की घटनाएं बढ़ने लगती हैं।
ये भी एक भ्रान्ति है कि भारत में यूएफओ दिखाई देने की घटनाएं नहीं होती। 15 मार्च 1951 को दिल्ली में यूएफओ दिखाई देने की पहली घटना दर्ज हो चुकी है। इसके बाद देश के विभिन्न भागों में लगभग बीस घटनाएं प्रकाश में आ चुकी है। मध्यप्रदेश के कई क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं दर्ज की गई थी। खास बात ये कि मध्यप्रदेश में अधिकांश यूएफओ की घटनाएं नर्मदीय क्षेत्र में घटी हैं। हमारे यहाँ इन घटनाओं को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता और न ही इन पर शोध आदि की कोई व्यवस्था की गई है। इन घटनाओं पर तो सरकार का आधिकारिक बयान भी आज तक देखने को नहीं मिला।
अमेरिका के पोलिटिकल साइंटिस्ट अलेक्जेंडर वेंड से हाल ही में एक इंटरव्यू में बात की गई। अलेक्जेंडर का ये इंटरव्यू केवल यूएफओ और एलियंस को लेकर किया गया। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा ‘यूएफओ पर विश्वास करने का सवाल ऐसा ही है, जैसे भगवान के अस्तित्व पर सवाल करना। मैं विश्वास करता हूँ कि एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल लाइफ इस ब्रम्हांड में अवश्य है और अब कई वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हो गए हैं। अब सवाल ये नहीं है कि एलियंस होते हैं या नहीं, अब सवाल होना चाहिए कि क्या वे हम लोगों के बीच पहुँच गए हैं।’ वेंड का ये इंटरव्यू यूएफओ बिलिवर्स में काफी लोकप्रिय हो गया है। अमेरिका की स्वीकारोक्ति से ये संभावनाएं बन गई हैं कि अगले कुछ साल में इस विषय से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण खुलासे अवश्य होने जा रहे हैं।
Ab to maan lo yaar, kabhi kahi Pappu & Pinki ko utha na le jaye,