श्वेताभ पाठक ( श्वेत प्रेम रस ) भोलेनाथ के अनेक नाम में एक नाम पशुपतिनाथ भी अति प्रसिद्ध है
पशुपतिनाथ :-
अब समझिये क्या है यह ।
तीन तत्त्व होते हैं ।
ब्रह्म
जीव
माया
ये माया जड़ है जिसे हम प्रकृति कहते हैं ।
ये जीव चेतन है ।
और इन दोनों का स्वामी या जो इनका अध्यक्ष है या जो इन पर शासन करता है या इनका नियंता है , वह है ब्रह्म ।
इन्हें ही कहते हैं –
माया – पाश ( अज्ञान का पाश , मोह माया का पाश )
जीव – पशु ( जो इस पाश में बंधकर सुख और दुःख भोगता है और कर्म करता है )
इस पाश में बंधने के कारण इसे पशु कहा जाता है ।
जैसे पशु को हम रस्सी से बाँधते हैं न ।
वह बन्धन में बंधा रहता है , वैसे ही ।
ब्रह्म – पशुपतिनाथ
जो इस सम्पूर्ण सृष्टि का नियामक है , सृष्टा है , इसका पति है , वही इन पशुओं को पाश से मुक्त करने वाला है । इसीलिए इन्हें पशुपति कहा जाता है ।
इसी हेतु भगवान पशुपति नाथ या भगवान के पास पाशुपत अस्त्र है ।।
इसी के द्वारा ही पाश से मुक्ति पाई जाती है ।
इन तीन तत्वों को
ब्रह्म , जीव , माया
या
पशुपतिनाथ , पशु और पाश को तत्त्वतः जान लेने पर जीव विभिन्न योनियों के आवागमन के बन्धन से मुक्त हो जाता है ।
इसलिए इन्हें पशुपति नाथ कहते हैं ।
लेकिन मूढ़ अज्ञानियों ने उल्टा अर्थ कर इनके नाम पर मन्दिर बनाकर लाखों गायों भैसों या पशुओं को काटकर प्रसन्न करते हैं ।
सब बुद्धि की महिमा है ।
कुमति कीन्ह सब विश्व दुःखारी ।
इसलिए हम सब पशु हैं , जितने भी मायाधीन हैं सब पशु हैं क्योंकि वह पाश अर्थात माया के बन्धनों में बंधकर पाशविक या पशुवत कर्म निरन्तर कर रहे हैं ।
हमें एकमात्र पशुपतिनाथ का आश्रय लेकर इस पाश के बन्धन से मुक्त होना है ।
इसीलिए बस एक ही उपाय –
भज शिवशंकर भज शिवशंकर शिवशंकर भज मूढ़मते ।
© Shwetabh Pathak (श्वेताभ पाठक)
Shwet Prem Ras