विपुल रेगे। जैसे ही भारत की पहली क्रिकेट विश्व कप विजय पर बनी फिल्म ’83’ को समीक्षाओं में अच्छा बताया जाने लगा, मीडिया का एक धड़ा ये प्रचारित करने लग पड़ा कि रणवीर सिंह की इस फिल्म का दर्शक बॉयकॉट कर रहे हैं। बॉयकॉट का नया एंगल अचानक से सामने आया है। मीडिया के एक समूह का अचानक से एक अच्छी फिल्म का नकारात्मक प्रचार करना संदेह जता रहा है। बॉलीवुड के कुछ सुपरस्टार इन दिनों अपनी फ़िल्में फ्लॉप होते देख और दूसरों की फ़िल्में सफल होते देख बौखला गए हैं। ये मीडिया की मूर्खता ही कही जाएगी कि लव जिहाद को बढ़ावा देती फिल्म ‘अतरंगी रे’ को वह सफल बता रहा है लेकिन 2021 के वर्ष में सबसे अच्छी ओपनिंग देने वाली बॉलीवुड फिल्म को वह नकारात्मक प्रचार से गिराने का प्रयास कर रहा है।
जब कोरोना का प्रभाव कम होते ही थियेटर शुरु हुए तो मैन स्ट्रीम मीडिया अपनी जिम्मेदारी समझते हुए दर्शकों को फ़िल्में देखने का आव्हान कर रहा था। क्या हम इतनी जल्दी भूल जाए कि अक्षय कुमार की ‘सूर्यवंशी’ के प्रमोशन के लिए मीडिया ने अपना भरपूर समर्थन दिया था। और जब ‘अंतिम’ और ‘तड़प’ प्रदर्शित हुई, तब भी मीडिया लगातार इन फिल्मों की प्रशंसा करता रहा, जबकि ये फ़िल्में अत्यंत साधारण विषय वस्तु की थी।
यहीं नहीं जब अंतिम और तड़प ने प्रथम सप्ताह में मामूली कलेक्शन किया तो इसी मीडिया ने इन फिल्मों को जबरदस्त ढंग से सफल बताया था। और वास्तविकता में ये दोनों फ़िल्में पहले सप्ताह के बाद ही दर्शक के मन से उतर गई थी। क्या बड़ी फिल्मों के प्रचार को लेकर मीडिया दोहरा रवैया रख रहा है। जैसे ही ये पता चला कि ’83’ में बॉक्स ऑफिस पर विजय प्राप्त करने का जबरदस्त पोटेंशियल है, मीडिया का एक धड़ा इसे गिराने के लिए सक्रिय हो गया।
वे जानते थे कि दर्शक को सिनेमाघरों तक जाने से कैसे रोकना है। अचानक से कुछ लोग प्रकट होते हैं और टुकड़े-टुकड़े गैंग के नाम पर फिल्म का विरोध करने लग जाते हैं। इसके बाद मीडिया लिखता है कि दीपिका पादुकोण के जेएनयू स्टैंड के कारण लोग फिल्म का बहिष्कार कर रहे हैं। स्पष्ट है कि एक पुराने मामले को केवल इसलिए उठाया गया, ताकि इस फिल्म पर बुरा प्रभाव पड़े।
और फिर मीडिया ये कैसे भूल गया कि लोगों ने संपूर्ण बॉलीवुड के बहिष्कार की बात कही थी। जब बात संपूर्ण बहिष्कार की आती है तो सलमान खान और अक्षय कुमार की फिल्म को कैसे और क्यों छोड़ दिया जाता है। विरोध करने वाले इनकी फिल्मों का विरोध करने के लिए खड़े नहीं होते लेकिन रणवीर सिंह की फिल्म के विरोध के लिए खड़े हो जाते हैं।
जहाँ तक मुझे याद है कि विगत एक वर्ष में किसी हिन्दी फिल्म ने ’83’ जैसी ओपनिंग नहीं ली थी। तेज़ी से डूब रहे सलमान खान के बारे में प्रसिद्ध है कि वे अपने प्रतियोगियों को गिराने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। जब रणवीर ने संजय लीला भंसाली की ‘बाजीराव मस्तानी’ में काम किया था तो सलमान का कहना था कि भंसाली केवल उनके नाम से जाने जा सकते हैं और किसी के नहीं। ’83’ ने प्रथम सप्ताह में सम्पूर्ण विश्व में सौ करोड़ का व्यापार कर लिया है।
इसमें से आधे तो फिल्म ने भारत में कमाए हैं। एक ओर मीडिया कह रहा है कि लोग रणवीर की फिल्म का बहिष्कार कर रहे हैं तो दूसरी ओर फिल्म बॉक्स ऑफिस और सरपट दौड़ी जा रही है । सलमान और उनके प्रचारित मीडिया का दुष्प्रचार एक स्तरीय फिल्म को आगे बढ़ने से रोक नहीं सकेंगे। फिल्म का कंटेंट ही असली सुपर स्टार होता है।
अवश्य ही दीपिका पादुकोण को फिल्म में लिए जाने से फिल्म के व्यवसाय पर फर्क पड़ा होगा। और ये फर्क चींटी बराबर ही होगा। मीडिया से पूछा जाना चाहिए कि दीपिका पादुकोण का किरदार तो फिल्म में महज दस मिनट का है। एक उत्कृष्ट फिल्म को उसके बुरे दस मिनट के लिए ख़ारिज नहीं किया जा सकता। मीडिया के दुष्प्रचार से विपरीत सिनेमाघरों को देखे तो वहां ऑडी स्टेडियम में बदल चुकी है।
लोग सपरिवार फिल्म देखने जा रहे हैं। सलमान द्वारा पोषित मीडिया एक प्रेरक फिल्म को डुबाने का प्रयास कर रहा है। कहीं इस फिल्म से सीमापार बैठा दाऊद इब्राहिम को तो तकलीफ नहीं हो गई। दाऊद इब्राहिम के पालतू स्टार युवाओं को प्रेरित करने वाली फिल्म को गिराने की कोशिश करते हैं और इस काम में हमारा माननीय मीडिया उनका साथ देता है।