संदीप देव। बंगाली हिंदुओं ने विधानसभा के बाद उनका संहार करने वाले TMC और उनके संहार पर मौन रहने वाले BJP, दोनों को जोरदार थप्पड़ मारा है। बंगाल के सागरदिघी सीट पर हुए उपचुनाव में 51 साल बाद कांग्रेस जीती है।
इस सीट पर वोटिंग तक माना जा रहा था कि तृणमूल कांग्रेस की देबाशीष बनर्जी और भाजपा के दिलीप साहा के बीच कड़ा मुकाबला है, लेकिन पीड़ित हिंदुओं ने दोनों को ठुकरा दिया। वहां से कांग्रेस बायरन बिस्वास बाजी मार गये! यहां का मुस्लिम वोट भी इस बार तृणमूल की जगह कांग्रेस-वाम के संयुक्त उम्मीदवार बायरन को मिला है, जिससे उनकी जीत और आसान हो गई। कहा जा रहा है कि मुस्लिमों को यह अंदेशा था कि तृणमूल और भाजपा के बीच सांठगांठ है!
अर्थात ‘पासमांदाकरण’ अभियान के बावजूद मुस्लिम भाजपा को छूने तक को तैयार नहीं हैं, यदि किसी से भाजपा की सांठगांठ की अफवाह भी उड़ती है तो उसको वो वोट नहीं देते। ओवैसी के बाद दिल्ली निगम में आपा और अब बंगाल में तृणमूल इसका उदाहरण बन गया है। तृप्तीकरण कहीं भाजपा को माया मिली न राम वाली कहावत ने 2024 में याद दिला दे!
वहीं महाराष्ट्र के कस्बापेठ में NOTA के कारण 27 साल पुरानी सीट भाजपा को गंवानी पड़ी है! इस सीट पर 1995 से लगातार भाजपा भी जीत रही थी। यहां ब्राह्मणों के विरोध के कारण भाजपा को हारना पड़ा है। चुनाव से पूर्व क्षेत्र में ब्राह्मण विरोध के पोस्टर तक लगाए गये थे! अन्य जातियों के लिए सवर्ण विरोध का दांव यहां नहीं चला है।
नार्थ ईस्ट में त्रिपुरा के बंगाली व वनवासी वोटरों का भरपूर सहयोग भाजपा को मिला है, जिससे 33 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से वह अपनी सत्ता को बरकार रखने में सफल रही है। वहीं ईसाई बहुल मेघालय में ईसाइयों ने भाजपा की अपेक्षा NCP पर भरोसा किया है। यहां भाजपा को केवल 8% वोट मिला है। वहीं नागालैंड के ईसाइयों, वनवासियों आदि का करीब 18% वोट भाजपा को मिला है, जिस कारण वहां भी 37 सीटों के साथ उसकी गठबंधन सबसे आगे रही।
नार्थ-ईस्ट में अपना जलवा बरकरार रखने वाली भाजपा को पांच राज्यों की छह सीटों पर हुए उपचुनाव में सबसे बड़ा झटका लगा है। उसे तीन सीट गंवानी पड़ी है, जो 2024 को देखते हुए उचित नहीं कही जा सकती है।
देखा जाए तो हिंदू भाजपा को छोटे-छोटे झटके देकर चेता रहा है कि ‘तृप्तीकरण’ छोड़ो और कोर वोटर की सुनो, लेकिन ये सुनें तब न?