Pak L. Huide। जो देश अपने इतिहास पर गर्व नहीं कर सकता वह कभी तरक्की नहीं कर सकता। चीनी मूल के कनाडा में रहने वाले टोरंटो विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर पाक एल ह्यूडी(Pak L. Huide) का यही मानना है। तभी तो उन्होंने भारत के प्राचीन इतिहास के बारे में कहा है कि भारतीय प्राचीन इतिहास को कमतर आंका गया है, शायद भारत के प्राचीन इतिहास का सही से मूल्यांकन नहीं किया गया है। इस अर्थ में कहें तो भारत के पुराने इतिहासकार आत्मग्लानि बोध से ग्रसित दिखते हैं। भारत के प्राचीन इतिहास पर ह्यूडी ने दो विस्तृत शोधपरक आलेख लिखे हैं। पहले आलेख में उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास के योगदान का जिक्र किया था! उस पर आई असंख्य प्रतिक्रियाएं से प्रेरित होकर उन्होंने दूसरा आलेख लिखा है। अपने इस आलेख में उन्होंने भारतीय प्राचीन इतिहास का विश्लेषण किया है।
मुख्य बिंदु
* टोरंटो विश्वविद्यालय में शिक्षण से संबद्द चीनी प्रोफेसर ने भारत के प्राचीन इतिहास का कमाल का विश्लेषण किया है
* भारतीय इतिहासकारों को आत्मग्लानि बोध से ग्रसित तथा पश्चिम के इतिहास से आह्लादित बताया है
उन्होंने अपने आलेख की शुरुआत प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में एक सवाल उठाते हुए किया है। उन्होंने लिखा है कि ‘क्या प्राचीन भारत अतिरंजित है?’ अपने सवाल का खुद जवाब देते हुए वे आगे लिखते हैं कि अगर गंभीरता से कहें तो प्राचीन भारत के इतिहास को कमतर आंका गया। दूसरे शब्दों में कहें तो भारतीय प्राचीन इतिहास का सही से मूल्यांकन ही नहीं किया गया। पीएल ह्यूडी चीनी मूल के हैं लेकिन कनाडा में रहते हैं। वे टोरंटो विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि जब वह कनाडा में पढ़ रहे थे तभी से वे भारत की तासीर के बारे में जानते थे। उन्होंने अपने आलेख में लिखा है कि कनाडा के लोगों में चीनी इतिहास के बारे में बहुत अस्पष्ट जानकारी है, लेकिन भारतीय इतिहास के बारे में तो कोई जानकारी ही नहीं है।
उदाहरण के रूप में यहां के अधिकांश लोगो मध्यकालीन साम्राज्य के बारे में उतना ही जानते हैं जो चीन ने अपने बारे में बताया है। लेकिन भारत के बारे में कितने लोग जानते हैं? यहां तक कि गुप्त काल के बारे में कितने लोग जानते हैं? यह के लोग जानते हैं कि चीन मिट्टी के बर्तन और चाय के लिए प्रसिद्ध रहा है। लकिन कितने लोग प्राचीन भारत के धातुकर्म की उपलब्धियों के बारे में जानते हैं। लोग ‘चीन की महान दीवार’ के बारे में तो जानते हैं लेकिन कितने लोग भारत के दक्षिणी राज्य स्थित पौराणिक मंदिरों के बारे में जानते हैं?
अगर दुनिया के लोग आज भारत के प्राचीन इतिहास की उपलब्धियों या विरासत से अनभिज्ञ है तो इसके पीछे सबसे बड़ा कारण जहां ऐतिहासिक साक्ष्यों को सहेजने की गति मंद होना है वहीं आधुनिक भारतीयों का नजरिया भी जिम्मेदार है। आधुनिक भारतीयों में अपनी प्राचीन विरासत को हीन भावना से देखने तथा पश्चिमी विचारों और आदर्शों को बेहतर मानने की प्रवृत्ति भी इसके लिए जिम्मेदार है। वैसे चीन भी इस समस्या से ग्रसित है लेकिन उतना नहीं जितना भारत है।
पृथ्वी के गोल होने की खोज का श्रेय ग्रीक दार्शनिक अरस्तु को दिया जाता है, जिनका जन्म 384 बीसीई में हुआ था। यह तथ्य दुनिया जानती है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘गोल पृथ्वी’ का सिद्धांत सबसे पहले 8वी-9वीं बीसीई में प्रतिपादित हो चुका है। गोल पृथ्वी के सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाला कोई और नहीं बल्कि प्राचीन भारत के ही एक ऋषि थे, जिनका नाम याज्ञवल्क्य था। याज्ञवल्क्य ने ही सबसे पहले इस सिद्धांत को स्थापित किया था कि पृथ्वी गोल है। इतना ही नहीं उन्होंने ही सबसे पहले सूर्य केंद्रित सौर्यमंडल की व्यवस्था का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने अपने ग्रंथ सत्पथ ब्राह्मण में यह प्रस्तावित किया था कि पृथ्वी समेत सारे अन्य ग्रह सूर्य की चारों ओर चक्कर लगाते हैं। उन्होंने ही एक वर्ष में 365.24675 दिन होने की गणना की थी जो वर्तमान गणना 365.24220 से महज छह मिनट ज्यादा था।
आप कुंग फू का भी उदाहरण ले सकते हैं, जिसे पूरी दुनिया मार्शल आर्ट के नाम से जानती है, लेकिन कम ही लोगों को पता है कि मार्शल आर्ट का जन्मदाता कोई और नहीं बल्कि प्राचीन भारत के तमिलनाडु स्थित कांचिपुरम के पल्लव वंश के राजकुमार ने किया था। उन्होंने 5वी शताब्दी में चीन की यात्रा की थी। बाद में वही बौद्ध धर्म के 28वां सरंक्षक बने तथा उन्होंने शाओलिन मंदिर के साथ मार्शल आर्ट की स्थापना की। इसलिए मार्शल आर्ट भारतीय उत्पत्ति है जो आज दुनिया भर में प्रसिद्ध है। जिस राजकुमार ने मार्श आर्ट को जन्म दिया उनका नाम बोधिधर्म था। सवाल यह नहीं है कि किसने जन्म दिया सवाल यह है कि आज वह किसके नाम से जाना जाता है? आज दुनिया में कितने लोग जानते हैं कि मार्शल आर्ट की जन्मभूमि भारत है और उसके जनक प्राचीन भारत के पल्लव वंश के राजकुमार बोधिधर्म है? संक्षेप में कहें अगर भारतीय ही अपनी विरासत से अनभिज्ञ हैं तो फिर उन्हें दूसरों से क्यों अपेक्षा करनी चाहिए कि वे उनके इतिहास और उपलब्धियों के बारे में जानेंगे?
प्राचीन भारतीयो की उपलब्धि कहीं गुमनामी के अंधेरों में गुम हो गई है। भारतीयों के पूर्वज ऐसी कितनी चीजों के आविष्कार कर चुके हैं जो आम जनों के जीवन को आसान बनाने में सहायक साबित हुए हैं। भले ही आज के समय में पूर्व में किए गए अनुसंधान आदिम जान पड़ते हों लेकिन हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि यही अनुसंधान अपने समय में (उस युग मे) क्रांतिकारी उपलब्धियां साबित हुईं थीं। सिंधु घाटी की सभ्यता के बारे में पूरी दुनिया जानती है। इसकी स्वच्छ जल निकासी व्यवस्था के बारे में लोग जानते हैं कि उस प्राचीन समय में यह व्यवस्था किसी अचंभे से कम नहीं थी। ये सारे तथ्य पूरी दुनिया जानती है, लेकिन कितने लोग ये जानते हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता के प्राचीन भारतीय ही थे जिन्होंने सबसे पहसे फ्लश टॉयलेट की खोज की थी।
प्राचीन भारतीय की ऐसी कई उपलब्धियां जिसके बारे में दुनिया तो क्या आधुनिक भारतीय ही अनभिज्ञ हैं। न वे अपने प्राचीन या मध्यकालीन इतिहास के बारे में जानते हैं न ही जानने की इच्छा रखते हैं। कई लोग तो पश्चिमी चमक-दमक से चकाचौंध होकर अपने ही देश को प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास के आधार पर अपमानित करने का ठेका तक ले रखा है।
भारत के प्राचीन इतिहास या फिर प्राचीन भारतीयों की उपलब्धियों के बारे में जानने को उत्सुक हैं तो हम आपलोगों को तथ्यात्मक और तर्कआधारित सामग्री उपलब्ध करने का वादा करते हैं। आप इस वेबसाइट को पढ़ते रहिए, हम आप तक ऐतिहासिक जानकारी पहुंचाते रहेंगे। भारतीय प्राचीन इतिहास के कई और उपलब्धियों वाला अगला आलेख भी जल्द ही…
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