सेम
मानव सभ्यता के अनुसार प्राचीन काल से लेकर आजतक के काल में भी भारत भूमि दो भागों में बंटी हुई है जिसमें से एक भाग जो भारतवर्ष सिन्धु नदी से पूर्व की ओर दर्शाया गया है, वेद एवम पुराणों में इसे “ऐन्द्र” कहा गया है। यानी इंद्र के अनुयायियों की भूमि। इंद्र के अनुयायी से अभिप्राय है देवताओं की पूजा करने वालों की भूमि। इसी भूमि पर आज का भारत, पाकिस्तान बांग्लादेश आदि हैं।
भारतवर्ष का दूसरा भाग है “वारुण”। वारुण भाग की भूमि सिन्धु नदी से पश्चिम दिशा का भारतवर्ष है, यह भूमि वेदों और पुराणों में वारुण कहलाती है। यह भी भारत भूमि ही है। इस भूमि का भूभाग भूमध्य सागर से पूर्व, सिन्धु नदी से पश्चिम, दक्षिण समुद्र से उत्तर और आराल पर्वत तथा काश्यपीयन समुद्र से दक्षिण तक का भाग है। इसी वारुण भाग को म्लेच्छ लोग “ओरियंस” कहते हैं, परन्तु वास्तव में तो यही प्राचीन काल में भारतवर्ष का भाग था।
- अजय चौहान
आर्यावर्त और भारत खण्ड का सच
सिंधु नदी के पश्चिम से लाल सागर तक का जो क्षेत्रफल है वहां तक की भूमि भारत भूमि हुआ करती थी क्योंकि पुराणों में यही भूमि आर्य देश होने का प्रमाण है। जिस प्रकार आज नर्मदा नदी उत्तर और दक्षिण भारत को दर्शाती है उसी प्रकार से सिंधु नदी भी भारत को दो भागों में बांटती थी, पूर्वी और पश्चिमी।
जबकि आधुनिक इतिहास में सिंधु नदी को भारत की सीमा बताने का मतलब है मात्र भारत खण्ड। यानी उस सम्पूर्ण आर्यावर्त देश का भारत खण्ड। यह आर्यावर्त और भारत खण्ड हिमालय से दक्षिण में कन्याकुमारी तक है।
आज जिन्हें हम ईरान, इराक, मेसोपोटामिया, बलूचिस्तान और अफगानिस्तान कहते हैं और अरब में यवन और उसके पीछे का लाल सागर है वहां तक का संपूर्ण क्षेत्रफल आर्यावर्त हुआ करता था।