पति सरप्राइज देने के लिए घर पहुंचा है। घर पर पत्नी अपने प्रेमी के साथ आपत्तिजनक अवस्था में मिली है। भेद बाहर न जाए इसलिए दोनों ने मिलकर पति की हत्या कर डाली है। पति का सरप्राइज ‘प्राइवेट कंसर्ट’ है जो एक अंधा प्यानो वादक प्रस्तुत करने वाला है। अब दृश्य बदल गया है। अँधा प्यानिस्ट प्यानो बजा रहा है और फर्श पर पति की लाश पड़ी है। प्यानिस्ट के चेहरे के भाव बदल गए हैं। उसकी कांपती उंगलियां आनंददायी धुन के बदले दर्द भरी धुन बजाने लगी है। क्या प्यानिस्ट अंधा नहीं है।
ये फिल्म निर्देशक श्रीराम राघवन का सिनेमा है। उनके सिनेमा में फूलों की महक नहीं होती, ज़िंदगी दो और दो चार नहीं होती। उनकी फ़िल्में तहखाने में उतरती सीढ़ियों की मानिंद होती हैं। ख़ामोशी से दर्शक को रहस्य के आगोश में खींच लेती है। शुक्रवार प्रदर्शित हुई ‘अंधाधुन’ देखकर ये सुकून मिला कि श्रीराम राघवन आज भी उतनी ही तीखी तलवार हैं, जितने ‘जॉनी गद्दार’ के समय थे या जितने ‘बदलापुर’ के समय हुआ करते थे। अंधाधुन एक सस्पेंस थ्रिलर है। ऐसा सस्पेंस थ्रिलर जिसके सम्मोहन से बच पाना दर्शक के लिए मुमकिन नहीं है। इस फिल्म को मोबाइल हाथ में लेकर नहीं देखा जा सकता। एक शॉट नज़रों से चूक जाए तो दर्शक की समझ में फेर आ जाएगा।
प्यानो वादक आकाश संगीत को गहराई से समझने के लिए प्रयोग करता है। वह ऑंखें होते हुए भी दुनिया के सामने अंधा बन जाता है। इस प्रयोग से उसका संगीत निखरने लगता है। एक दिन प्राइवेट कंसर्ट के लिए वह पुराने वक्त के हीरो प्रमोद सिन्हा के घर जाता है। यहाँ उसे पता चलता है कि प्रमोद सिन्हा की हत्या हो चुकी है। कहानी एक इंट्रेस्टिंग नोट पर शुरू होती है। इसके बाद घटनाक्रम तेज़ी से बदलने लगते हैं और दर्शक पूरी तरह इस रोचक कहानी में रम जाता है।
मर्डर मिस्ट्री पसंद करने वालों के लिए अंधाधुन एक मास्टरपीस है। जितने कलाकार नहीं बोलते उससे ज्यादा कैमरा बोलता है। फिल्म का मास्टर सीन वही है जिसका ऊपर जिक्र किया है। इस दृश्य में संवाद बहुत कम हैं लेकिन सबसे ज्यादा यही दृश्य ‘बोलता’ है। आकाश प्यानो बजा रहा है। उसकी टेबल के सामने ही सिमी और उसका प्रेमी लाश को सूटकेस में ठूंसने की कोशिश कर रहे हैं। लाश का हाथ भीतर नहीं जा पा रहा। इतने में प्रेमी हाथ तोड़कर उसे सूटकेस के भीतर घुसा देता है। वातावरण में प्यानो की धुन मानो ठहर गई है। फिल्म मेकर्स को ये दृश्य बार-बार देखना चाहिए।
जब एक माहिर निर्देशक कमान संभाल रहा हो तो कलाकार भी आशानुरूप अभिनय करते हैं। श्रीराम राघवन की हांडी के सारे चावल सौंधी महक लिए हुए हैं। आयुष्यमान खुराना, तब्बू, राधिका आप्टे, अनिल धवन, मानव विज, अश्विनी केलसकर ने बहुत उम्दा एक्टिंग की है। आयुष्यमान का तो जैसे रूपांतरण हुआ लगता है। ये उनके कॅरियर का सबसे बेहतरीन किरदार है। तब्बू यहाँ बहुत असरदार साबित होती हैं। मेरे विचार में अभिनय के मामले में वे सभी पर भारी पड़ती हैं।
निर्देशक ने रहस्य के आवरण को गहरा बनाने के लिए कैमरा वर्क का सहारा लिया है। के यू मोहन की सिनेमेटोग्राफी फिल्म का विशेष आकर्षण है। इसके अलावा पूजा लड्ढा सुरती की एडिटिंग बहुत प्रभावकारी है। ये फिल्म देखते हुए अगर दर्शक पलक भी नहीं झपकाता तो उसके श्रेय निर्देशक की तकनीकी टीम को भी मिलना चाहिए। बहुत अरसे बाद किसी फिल्म में बैकग्राउंड संगीत के लिए प्यानो का ऐसा सुंदर प्रयोग देखने को मिला है।
ये फिल्म जहाँ से शुरू होती है, वही ख़त्म भी होती है। पुणे जाने वाली एक सड़क है। जिसके किनारे लगे मील के पत्थर के सामने एक मासूम सा खरगोश आकर बैठ गया है। कुछ दूरी पर एक शिकारी बंदूक लिए खरगोश पर निशाना साध रहा है। यही तो निर्देशक की कल्पनाशीलता है कि कहानी का प्रारम्भ और अंत इसी खरगोश पर हुआ है। रहस्य जानना हो तो देख आइये ‘अंधाधुन’। यदि आप मर्डर मिस्ट्री पसंद करते हैं और मसाला रहित सस्पेंस थ्रिलर देखना चाहते हैं तो तुरंत इस फिल्म का टिकट कटाइये। वैसे अंधाधुन का मतलब यहाँ होता है ‘एक अंधे की धुन’। वह धुन संगीत की हो सकती है या किसी हत्यारे को सजा दिलाने की धुन भी हो सकती है।
URL: Andhadhun movie review- Cocktail of trill comedy and Crime
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