विपुल रेगे। विगत कुछ वर्षों में फिल्म निर्देशक अनुभव सिन्हा दर्शकों को मनोरंजन देने के बजाय विवादित विषयों वाली फ़िल्में परोस रहे हैं। उनकी नई फिल्म अनेक के शीर्षक को अंग्रेज़ी में देखा जाए तो ANEK के N और E को वे नार्थ ईस्ट से जोड़ते हैं। इस फिल्म के अनुसार पूर्वोत्तर वाले शेष भारत से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हैं। वे नार्थ ईस्ट को अत्यंत पीड़ित बताते हुए भारतीय सिस्टम पर आघात करते हैं। फिल्म के संवाद सुनकर लगता है कि भारतीय सेंसर बोर्ड ने अपना काम ठीक से नहीं किया है।
यदि विवादित फिल्मों से अनुभव सिन्हा का नाता है तो अभिनेता आयुष्यमान खुराना भी मनोरंजक फ़िल्में छोड़कर कथित सामाजिक संदेश देने वाली फिल्मे करके अपना ट्रेक रिकार्ड खराब कर रहे हैं। अनेक पूर्वोत्तर की एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो भारत की ओर से क्रिकेट में प्रतिनिधित्व करना चाहती है। जोशुआ भारत सरकार का स्पेशल एजेंट है। वह पूर्वोत्तर के कई समूहों को निशाने पर लेना चाहता है।
विशेष रुप से टाइगर सांघा नामक एक विद्रोही उनके निशाने पर है। टाइगर भारत सरकार से सुलह नहीं करना चाहता। वह भारत को अपना देश ही नहीं मानता है। इस फिल्म की पटकथा विद्रूपता की सीमा पार कर जाती है। फिल्म ऐसी होनी चाहिए, जो दो राज्यों को सुलह के लिए करीब ले आए लेकिन अनुभव सिन्हा का सिनेमा तोड़फोड़ का सिनेमा है। वे अलगाववाद का सिनेमा रचते हैं।
उन्होंने भारत की सरकारों को खलनायक की भांति प्रस्तुत किया है और नार्थ ईस्ट के लोगों को पीड़ित बताया है। क्या भारत सरकार के कैबिनेट मंत्री किरण रिजिजू नार्थ ईस्ट से नहीं आते ? क्या प्रसिद्ध मुक्केबाज़ मैरी कॉम नार्थ ईस्ट से नहीं आती, लेफ्टिनेंट बेला देवी, अंगराग महंत, पी.ए.संगमा, बाइचुंग भूटिया, अर्नब गोस्वामी कहाँ से आते हैं भला ? यदि भारत की सरकार अत्याचार और भेदभाव करती तो क्या अर्नब गोस्वामी इतना बड़ा नाम बन पाते?
आज पूर्वोत्तर राज्य अपनी समस्याओं से मुक्त होकर भविष्य की तस्वीर रच रहे हैं। वहां के लोग भारत का ही प्रतिनिधित्व करते हैं अनुभव सिन्हा जी, चीन का नहीं। एकाध वर्ग को छोड़ दिया जाए तो भारत उन्हें मन से अपनाता दिखाई देता है। फिल्म अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। एक फिल्मकार होने के नाते अनुभव सिन्हा को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान ने दिया है।
लेकिन जब आप काल्पनिक कथाओं के माध्यम से भारत के सिस्टम पर चोट करते हैं तो ये बेईमानी होती है। आप सत्य कथा पर दस्तावेजों के साथ फिल्म बनाकर सिस्टम पर प्रहार कीजिये। किसने रोका है आपको। लेकिन फिल्म मेकिंग के नाम पर ऐसा छल क्यों ? भारतीय सेंसर बोर्ड ने फिल्म को प्रदर्शन की अनुमति देकर भारत सरकार का सिरदर्द बढ़ाने का काम कर दिया है।
अब इस फिल्म को विदेश में प्रचारित किया जाएगा और भारत की बदनामी की जाएगी। फिल्म समीक्षक तो एक दिन में कहने लगे हैं कि इस फिल्म को ऑस्कर भेजना चाहिए। क्यों भेजना चाहिए ? क्योंकि वह भारत की संवैधानिक संस्थाओं पर प्रहार करती है, इसलिए ? आयुष्यमान खुराना ने गलत लाइन पकड़ ली है। उनकी पिछली फिल्म बहुत विवादित विषय पर बनी थी और बुरी तरह पिटी।
इस फिल्म ने पहले दिन दो करोड़ से भी कम का कलेक्शन किया है। ऑफबीट फ़िल्में करना अच्छा है लेकिन इसमें अति कर देना कॅरियर को ढहा सकता है। रणबीर कपूर का उदाहरण सामने है। उन्होंने कॅरियर के प्रारम्भ में बहुत सी ऑफबीट फ़िल्में कर डाली और अब उसका परिणाम भोग रहे हैं। अनेक को आप हैदर की श्रेणी में रख सकते हैं। मीडिया अब इस फिल्म के नाम का बहुत ढोल बजाने वाला है। काश कि हमारा सेंसर बोर्ड विवेकशील होता।