एके वर्सेज एके के विवाद में अनिल कपूर ने माफ़ी मांग ली है। इस माफ़ी को मीडिया ने प्रचारित करना भी शुरु कर दिया है। मेनस्ट्रीम मीडिया के समाचारों को देखकर प्रतीत हो रहा है कि मानो एक झटके में पूरा विवाद समाप्त हो चुका है। अनिल कपूर की माफ़ी इतनी अधिक प्रचारित कर दी गई है कि उनकी फिल्म और उसको लेकर उठ रहे सवाल पीछे छूट गए हैं।
भारतीय वायु सेना ने कड़ी आपत्ति लेते हुए मांग की थी कि फिल्म में से आपत्तिजनक दृश्य हटा दिए जाए। अनिल कपूर की डिप्लोमेटिक माफ़ी के साथ ये नहीं बताया गया कि वे आखिर फिल्म में से कौनसे दृश्य हटाने जा रहे हैं। बड़ी चतुराई के साथ मामला माफ़ी पर लाकर टिका दिया गया है। अनिल कपूर की माफ़ी को ध्यान से सुने तो लगता है वे माफ़ी कम मांग रहे हैं, भारतीय वायुसेना के अपमान को जस्टिफाई अधिक कर रहे हैं।
अनिल कपूर ने कहा कि वे फिल्म में एक वायुसेना अधिकारी का किरदार कर रहे हैं, जिसकी बेटी किडनैप हो गई है। वे बताना चाह रहे हैं कि फिल्म में वे कुछ हरकतें कहानी की सिचुएशन के अनुसार करते हैं। सरकार की ओर से इस गंभीर मुद्दे को लेकर कोई बयान नहीं आया है, जबकि मामला सेना से संबंधित है।
अनिल कपूर खुद ही बता चुके हैं कि वे फिल्म में एक अधिकारी का किरदार निभा रहे हैं। वे किसी एकाध दृश्य में वर्दी में दिखाई देते तो दृश्य काटने में आसानी हो सकती थी लेकिन इस थ्रिलर में अनिल कपूर ने केवल वर्दी ही पहनी है। वायुसेना कह चुकी है कि अनिल कपूर ने वर्दी भी गलत ढंग से पहनी है।
इसका मतलब ये हुआ कि फिल्म के कितने भी दृश्य काट लिए जाए, सेना का अपमान तो यथावत रहेगा। इस विवाद को चलते हुए दो दिन होने आए हैं लेकिन सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है। सेना के अपमान से बचने का एक ही तरीका है कि इस फिल्म पर भारत सरकार हिम्मत कर प्रतिबंध लगा दे।
लेकिन क्या ऐसा साहस भारत सरकार के पास है? पिछले प्रकरणों का हश्र देखकर ऐसा नहीं लगता। माफीनामे के बाद नेटफ्लिक्स की ओर से स्पष्ट नहीं किया गया कि फिल्म रोकी जाएगी या फिल्म के दृश्य काट लिए जाएंगे। जब तक ये स्पष्टता न हो, ये माफ़ी भी संशय में ही रहेगी।
क्या अनिल कपूर चाहते हैं कि उनके जस्टिफिकेशन के बाद हम लोग फिल्म को उसी स्वरूप में देखे। क्योंकि अनिल कपूर ने भी वायुसेना की मांग को लेकर कुछ नहीं कहा है। माफ़ी तो इसलिए मांगी गई है कि फिल्म की रिलीज का रास्ता साफ हो जाए। एक बार फिल्म रिलीज हुई तो आप कुछ नहीं कर सकते। पिछले चार साल में हमने यही देखा है।
फिल्म रिलीज होने के बाद किसी फिल्म निर्देशक या कलाकार पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती। दरअसल ये सब तब तक चलता रहेगा, जब तक न्यायालय इसको लेकर कोई कड़ा निर्णय नहीं लेता। विडंबना है कि न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नियम को लेकर कलाकारों का ही बचाव किया है।
मैंने बार-बार लिखा है कि ऐसे प्रकरणों में दंड देने का अधिकार केंद्र के पास ही है लेकिन वह पिछले छह वर्ष से फ़िल्मी कलाकारों को लेकर अत्याधिक उदार रहा है। प्रधानमंत्री जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति से कोई फ़िल्मी कलाकार पूछे ‘सर आप आम काटकर खाते हैं या छीलकर’, तो पता चलता है कि कलाकारों के उदारीकरण में हमने सीमा ही पार कर दी थी।
आम का प्रश्न पूछने वाले वे कलाकार आज अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। एके वर्सेज एके प्रकरण में अब आगे क्या होगा। केंद्र इस पर कोई कार्रवाई करे ऐसा तो नज़र नहीं आता। फिल्म की रिलीज पर किसी रोक या प्रतिबंध की कोई खबर नहीं है।
अनिल कपूर की माफ़ी के बाद मीडिया ने भी मान लिया कि मामला ख़त्म हो गया है। अब ये मामला भारतीय वायुसेना और देश के नागरिकों के लिए खुला है। उन्हें इस फिल्म की रिलीज के बाद कुढ़ना और जलना है क्योंकि होना कुछ नहीं है।
संसद में कोई विपक्षी नेता ये प्रश्न क्यों नहीं करता कि आखिर सूचना व प्रसारण मंत्रालय किस खेत की मूली है? इस मंत्रालय के कामकाज क्या है? क्या फिल्म उद्योग इस मंत्रालय से अधिक शक्तिशाली है? इस नए प्रकरण से ये सिद्ध हो गया कि फिल्म उद्योग का एक करण जौहर केंद्र के शक्तिशाली विभाग पर भारी पड़ता है। बिना दन्त और बिना नख का मंत्रालय।
बेशर्मी की हद है