Sonali Misra. नवनियुक्त स्वास्थ्य मंत्री श्री मनसुख मंडाविया की अंग्रेजी का मज़ाक उड़ाने के साथ ही एक बार फिर से वह औपनिवेशिक सोच नज़र आई है, जिसे कथित लिबरल लोग नकारने की कोशिश करते हैं। गरीबों और पिछड़ों के लिए नकली रोना करने वाले लोगों का नकलीपन तब सामने आ जाता है, जब किसी साधारण परिवार का व्यक्ति किसी मंत्रीपद पर पहुँचता है, और तब यह वोक (woke) छद्म प्रगतिशील अपनी गुलाम मानसिकता का प्रदर्शन पूरे ढोल नगाड़े के साथ करते हैं।
पूरी दुनिया में धार्मिक स्वतंत्रता की बात करने वाले यह वोक लोग, जैसे ही किसी हिन्दू को अपनी परम्पराओं का पालन करते हुए देखते हैं या फिर किसी धर्मपरायण युवा को किसी उच्च स्थान पर बैठा हुआ देखता है, तो वह ऐसी घृणा में भर जाता है, जिसका कोई ओर छोर नहीं होता और उन्हें नीचा दिखाने के लिए वह हर हद पार कर जाता है।
पहले आते हैं स्वास्थ्य मंत्री श्री मनसुख मंडाविया की अंग्रेजी पर। जैसे ही मनसुख मंडाविया को स्वास्थ्य मंत्री का पद दिया गया, वैसे ही कुछ वोक भड़क गए। वैसे भडके हुए तो यह लोग हिन्दू धर्म से ही हैं, परन्तु भाजपा के मंत्रियों से और उन मंत्रियों से अधिक घृणा करते हैं, जो या तो अपनी भाषा से जुड़े हैं, जो या तो अपनी जड़ों से जुड़े हैं या फिर किसी माफिया की गिरफ्त में नहीं हैं।
इनके हैंडल भी भाजपा के विरोध वाले ही होते हैं, जैसे एक यूजर था bhakt’s nightmare, उसने लिखा:
तो कई यूजर्स को समस्या थी कि वह आयुर्वेद और होम्योपैथ का समर्थन कर रहे हैं: जैसे इन कथित प्रगतिशील जोयदास को!
altnews के प्रतीक सिन्हा को यह समस्या थी कि स्वास्थ्य मंत्री होम्योपैथी का समर्थन क्यों कर रहे हैं:
उसने लिखा कि नए स्वास्थ्य मंत्री का विश्वास अल्टीमेट प्लेसबो पर है। प्लेसबो का अर्थ क्या होता है? प्लेसबो का अर्थ होता है, रोगियों को मनोवैज्ञानिक रूप से दिलासा देने के लिए नकली मीठी गोलियां!
क्या आयुर्वेद और होम्योपैथी ऐसी पद्धतियाँ हैं, जिनके प्रयोग के कारण किसी को अपमानित किया जाना चाहिए। आज जब यह बार बार प्रमाणित हो रहा है कि महामारियों से निबटने में आयुर्वेद और होम्योपैथ भी कारगर हैं, आयुर्वेद के पालन से एक स्वस्थ जीवनशैली का पालन किया जा सकता है और रोगों से दूर रहा जा सकता है, तो क्या उनका प्रचार प्रसार मात्र इसलिए नहीं होना चाहिए कि वह एक एजेंडे से बाहर है?
मनसुख मंडाविया की अंग्रेजी समस्या थी, या फिर आयुर्वेद या होम्योपैथी से प्रेम यह नहीं पता चला, परन्तु एक बात स्पष्ट थी कि विरोध करने वाले दो-तीन प्रकार के थे! एक तो वह वोक लोग, जिन्हें भाजपा के अस्तित्व से ही समस्या है, उनका वश चले तो भाजपा और भगवा रंग को तुरंत ही समाप्त कर दें। और जिनके फॉलोअर्स भी अधिक नहीं है और जो फैशन फैशन में या तो किसान आन्दोलन या किसी और कारण अपने आकाओं के चलते भाजपा का विरोध कर रहे हैं, इनके पास शून्य जानकारी है और यह अपने प्रोफेसरों या आन्दोलनकारियों के चलते लालू प्रसाद यादव के नौवीं फेल बच्चों को अपना नेता मान सकते हैं, उनका आदर कर सकते हैं परन्तु हिन्दू धर्म का पालन करने वाले उस नेता का नहीं, जो आत्मसम्मान दे रहा है।
एक दो हैंडल हैं:
और फिर दूसरे थे, आम आदमी पार्टी के सदस्य प्रकार के लोग:
और तीसरे ऐसे कथित पत्रकार या निष्पक्ष लोग, जिन्हें भाजपा से नफरत है, जैसे प्रतीक सिन्हा। इस अवसर पर प्रतीक सिन्हा के राबरी देवी के समर्थन वाले ट्वीट साझा करते हुए, लोगों ने इस बात को इंगित किया:
इसी के साथ कई और लोग जो कभी कुछ तो कभी कुछ कहते हैं, उनके भी दोगले चेहरे को यूजर्स ने अपने तथ्यों के साथ उजागर किया। इतना ही नहीं हिन्दुओं से हद तक नफरत करने वाले joydas ने सहकारिता मंत्रालय और अमित शाह पर भी आपत्तिजनक ट्वीट किया:
जबकि मनसुख मंडाविया ने इस विषय में कुछ कहने से इंकार किया और उन्होंने पद सम्हालते ही पैकेज की घोषणा की, जिसमें था
₹23,000,00,00,000 पैकेज, दूसरी वेव की समस्याओं का हल करने के लिए,
736 जिलों में शिशु/बाल देखभाल केंद्र
और कोविड रिलीफ फंड में 20,000 आईसीयूबेड
यह और कुछ नहीं बल्कि हिन्दूफोबिया या कहें हिंदी और हिन्दू के प्रति घृणा से भरी हुए औपनिवेशिक सोच है, यद्यपि इसे कई कथित बुद्धिजीवी लोग हंसी में उड़ा देते हैं, और कहते हैं ऐसा कुछ नहीं है। परन्तु यह बात पूर्णतया सत्य है कि 15 अगस्त 1947 को इंडिया तो इंडिपेंडेंट हुआ कथित रूप से, मगर भारत हार गया। भारत और भी अधिक परतंत्र हो गया। लिखा गया, “इंडिया दैट इस भारत!” और देशी भाषा, देशी रहन सहन वाला भारत उस इंडिया के सामने पराजित हो गया, जिसके हाथों में सत्ता आई। अंग्रेजी के माध्यम से वही कथित कुलीनता बढ़ती गयी और देशी भाषा पिछड़ेपन का प्रतीक होती गईं।
एक ऐसा वर्ग उभर कर आया, जिसके भीतर अपनी भाषा, अपने धर्म और अपने देश को लेकर आत्महीनता का बोध था। वह आत्महीनता इतनी थी कि वह खुद को ही मिटाने से नहीं चूका। जब अवसर प्राप्त हुआ, अपनी पहचान को अपने ही हाथों से नष्ट करना आरम्भ कर दिया। और अब तो वह वर्ग इतना मानसिक संतुलन खो चुका है, कि नासा में चुनी गई हिन्दू इंटर्न की उस तस्वीर पर एजेंडा चलाना शुरू कर दिया, जिसने अपनी मेज पर भगवान की मूर्ति लगा रखी थी।
इस tweet में जैसे ही चौथी तस्वीर पर इन वोक्स की नज़र गयी, वैसे ही उन्हें मिर्ची लगनी शुरू हो गयी।
अशोक स्वेन ने ट्वीट किया
कि हिन्दू लड़की हिन्दू देवी देवताओं के साथ क्यों है?
हालांकि बाद में आलोचना के बाद अपना ट्वीट डिलीट कर दिया। परन्तु नासा की इस पोस्ट पर हिन्दुफोबिया देखा जा सकता है और यह पाया जा सकता है कि यह एकदम वास्तविक है और पूरी दुनिया में है।
भारत के आंबेडकरवादी और वामपंथी, हिन्दुओं के इतिहास से नफरत करने वाले जैसे पागल हो गए और हिन्दुफोबिया का भयानक रूप इस पोस्ट पर दिखाई दिया।
अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब ऑक्सफ़ोर्ड में रश्मि सामंत को ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में छात्र संघ का अपना पद छोड़ना पड़ा था और वह भी इसी हिन्दूफोबिया के कारण। रश्मि सामंत ने जब इस तस्वीर की प्रशंसा की तो वह भी प्राउड आंबेडकरवादियों की जलन का शिकार हुईं:
उन्होंने लिखा:
कितनी सुन्दर तस्वीरें हैं। उनमें से सभी को ताकत मिले और अपनी संस्कृति को दिखाने वाली खूबसूरत हिन्दू लड़की को प्यार
तो रश्मि सामंत से कहा गया
आपके धर्म में सती हुआ जाता है, क्या आप होंगी?
इस पूरे ट्वीट के थ्रेड में आंबेडकरवादी, वामपंथी आदि जमकर हिन्दुफोबिया का प्रदर्शन कर रहे हैं। मजे की बात यह है कि यही वह लोग हैं, जो हिंदी न आने पर सोनिया गांधी की प्रशंसा में लीन रहते हैं। जब वह नर्मदा को “नर मादा” कहती हैं या छत्तीसगढ़ को चतीसगढ़ कहती हैं, तो वह लहालोट हो जाते हैं।
नासा में चौथी तस्वीर यदि कुरआन हाथ में लिए हुए हिजाब पहने हुए किसी लड़की की होती तो बार बार यह कहा जा रहा होता कि अपनी धार्मिक पहचान के साथ लड़की आगे बढ़ रही है। क्या हिन्दुओं की धार्मिक पहचान नहीं होती?
आखिर वामपंथियों और वोक लिबर्ल्स को अपने धर्म का पालन करने वाले हिन्दुओं से इतनी घृणा क्यों हैं? क्यों वह इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं कि आयुर्वेद से निरोगी रहा जा सकता है, एक देशज भाषा बोलने वाला मंत्री बन सकता है और एक अपने धर्म, अपनी जड़ों पर गर्व करने वाली लड़की प्रतिमा रॉय नासा में जाकर भी अपने देवी देवताओं को गर्व से प्रदर्शित कर सकती है?
दरअसल वामपंथी और वोक लिबरल, कट्टर इस्लाम के साथ मिलकर हिन्दू धर्म को नष्ट करना चाहते हैं, और इसमें सबसे बड़ी बाधा अपनी मिट्टी, अपनी भाषा, अपने धर्म और अपनी परम्परा पर गर्व करने वाले हिन्दू ही हैं। एवं वह हर मूल्य पर अपने धर्म पर गर्व करने वाले होते हैं, जब मनसुख मंडाविया, हिंदी बोलने वाले भगवा चोले में योगी आदित्यनाथ, एवं नासा की अपनी डेस्क पर गर्व से माँ सरस्वती की प्रतिमा रखने वाली लड़की की तस्वीरें सामने आती हैं, तो वह लाखों हिन्दुओं के मन में उनकी आस्था के प्रति विश्वास जताती हैं, और वापमंथी इसी आस्था से डरते हैं, तभी वह सबसे पहले भाषा के प्रति आत्महीनता भरते हैं और फिर उसके बाद धर्म के विषय में।
और वह हिंदी को मसखरी भाषा साबित करना चाहते हैं, तभी लालू प्रसाद यादव को हिंदी का ब्रांड अम्बेसडर भी बनाने से नहीं हिचकते, और सोनिया गांधी द्वारा बोले गए टूटी फूटी हिंदी के शब्द तो उनके लिए अमृत तुल्य हैं। तभी वह इस हिंदी पर जश्न मनाते हैं, जिसमें सोनिया गांधी, नरेंद्र मोदी को “मौत का सौदागर” कहती हैं और उस हिंदी का पक्ष नहीं लेते जिसमें आत्मसम्मान की बात होती है।
समस्या अंग्रेजी न जानना नहीं है, समस्या है हिन्दू विरोधी और हिंदी विरोधी औपनिवेशिक मानसिकता, जो हर उस व्यक्ति को निशाना बनाती है जो व्यवस्था विरोधी विध्वंसक परम्परा के साथ नहीं है!और जिसके हृदय में देश, धर्म, और अपनी परम्पराओं के प्रति प्रेम है, जिसके लिए भारत का इतिहास वर्ष 1947 से आरम्भ नहीं होता, जिसके लिए भगवा गर्व का विषय है, और जो हर स्थिति में वर्ष 1947 में भारत के साथ हुए अन्याय का उत्तर अपने कर्मों से दे रहा है, भारत पर गर्व कर रहा है!