सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर देश भर के तमाम धार्मिक स्थलों के मैनेजमेंट के लिए एक समान कानून बनाने की गुहार लगाई गई है। अर्जी में कहा गया है कि हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन कम्युनिटी को धार्मिक स्थलों के रखरखाव और मैनेजमेंट का वैसा ही अधिकार मिलना चाहिए जैसा कि मुस्लिम, पारसी और क्रिश्चियन को मिला हुआ है। याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक संस्थानों और स्थलों के रखरखाव और मैनजमेंट राज्य सरकार के हाथों में है और इसके लिए जो कानून बनाया गया है उसे खारिज किया जाए क्योंकि ये कानून संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है।
हिंदूओ, जैन, सिख और बौद्ध के धार्मिक स्थल सरकार के कंट्रोल में
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर दाखिल अर्जी में केंद्र सरकार के होम मिनिस्ट्री, लॉ मिनिस्ट्री और देश भर के तमाम राज्यों को प्रतिवादी बनाया गया है। अर्जी में कहा गया है कि अभी के कानून के मुताबिक राज्य सरकारें हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक स्थलों को कंट्रोल करता है। इसके लिए सबसे पहले अंग्रेज ने 1863 में कानून बनाया था और इसके तहत मंदिर, मठ सहित हिंदुओं, सिख, जैन व बौद्ध के धार्मिक स्थलों के कंट्रोल को सरकार के हाथ में दे दिया था।
इसके बाद से दर्जनों कानून और भी बने जिसके तहत हिंदुओं, सिख, बौद्ध और जैन के धार्मिक स्थल व संस्थानों के मैनेजमेंट और रखरखाव सरकार के हाथ में है। मौजूदा कानून के तहत राज्य सरकार के अधिकार में तमाम मंदिर, गुरुद्वारा आदि का कंट्रोल है लेकिन मुस्लिम, पारसी और क्रिश्चियन के धार्मिक स्थल का कंट्रोल सरकार के हाथों में नहीं है। सरकारी कंट्रोल के कारण मंदिर, गुरुद्वारा आदि की स्थिति कई जगह खराब है। दरअसल हिंदू रिलिजियस चैरिटेबल एनडोमेंट्स एक्ट के तहत राज्य सरकार को इस बात की इजाजत है कि वह मंदिर आदि का वित्तीय और अन्य मैनेजमेंट अपने पास रखे। इसके लिए राज्य सरकार का डिपार्टमेंट है और मंदिर आदि का मैनेजमेंट अपने पास रखते हैं।
‘सरकार का कानून संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन’
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-14 समानता की बात करता है और अनुच्छेद-15 कानून के सामने भेदभाव को रोकता है। लिंग, जाति, धर्म और जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नहीं हो सकता। वही अनुच्छेद-25 धार्मिक स्वतंत्रता की बात करता है और अनुच्छेद-26 गारंटी देता है कि तमाम समुदाय के लोग अपने संस्थान का रखरखाव और मैनेजमेंट करेंगे। लेकिन राज्य के कानून के कारण हिंदू, सिख, जैन और बौध इस संवैधानिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं।
याचिका में गुहार लगाई गई है कि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध को धार्मिक स्थल के रखरखाव और मैनेजमेंट का वैसा ही अधिकार मिले जैसा कि मुस्लिम आदि को मिला हुआ है। साथ ही हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध को धार्मिक स्थल के लिए चल व अचल संपत्ति बनाने का भी अधिकार मिले। यह भी गुहार लगाई गई है कि अभी मंदिर आदि को कंट्रोल करने के लिए जो कानून है उसे खारिज किया जाए। साथ ही केंद्र व लॉ कमिशन को निर्देश दिया जाए कि वह कॉमन चार्टर फॉर रिलिजियस एंड चैरिटेबल इंस्टीट्यूट के लिए ड्राफ्ट तैयार करे और एक यूनिफॉर्म कानून बनाए।