सरकारें सत्ता की लालची , राष्ट्र के धन को लुटवातीं ;
मुफ्त मदरसे , मुफ्त वजीफा , तरह-तरह जजिया देतीं ।
तैंतालीस योजना है गुंडों को , वोट – बैंक को बना रहीं ;
तरह – तरह से राष्ट्र तोड़तीं , अलगाववाद को बढ़ा रहीं ।
तुष्टीकरण राष्ट्र का दुश्मन , अल्पसंख्यकवाद भी लानत है ;
वामी ,कामी ,जिम्मी ,सरकारें , लानत और मलानत हैं ।
नैतिकता सब भुला चुकी हैं , बस केवल आडम्बर है ;
राष्ट्रभक्ति तो नहीं है बिल्कुल , उसको जीरो – नंबर है ।
देशभक्ति व राष्ट्रभक्ति से , कुछ भी नहीं इन्हें मतलब ;
फिर क्यों आखिर सत्ता चाहिये ? जब ये सब है बेमतलब ।
क्या लूटमार के लिए चाहिये या गजवायेहिंद कराना है ?
हजार बरस में हो न सका जो , क्या अब उसे कराना है ?
कमजोर हाथ में देश की सत्ता , केवल रोना आता है ;
कालिदास सा जिस डाल पे बैठा , उसे काटना भाता है ।
राष्ट्र ने इनको दिया है सब कुछ,सब का सब ही भुला दिया;
राष्ट्र के दुश्मन गले लगाते , शाहीन बाग तक करा दिया ।
रोड बनाकर जाम कराते , कानूनों को वापस लेते ;
गुंडागर्दी की खुली छूट है , संत – महात्मा जेल में जाते ।
हाईजैक हो गया है नेता , गुंडे ब्लैकमेल करते हैं ;
ता ता – थैया करके गुंडे , मनचाहा नचवाते हैं ।
राष्ट्र हो चुका पूरा शापित , जिम्मी की भरमार है ;
राजनीति भी खत्म हो चुकी , केवल लूटमार है ।
गुंडे हरदम आंख दिखाते , नेता सर को झुकाते हैं ;
केवल भले लोग डरते हैं , कानून के हत्थे चढ़ते हैं ।
इतना भ्रष्टाचार बढ़ा है , राष्ट्र टूटने की नौबत ;
राष्ट्र टूटते भाग जायेंगे , नेता की विदेश में दौलत ।
राष्ट्र का मूल – निवासी हिंदू , राष्ट्र की चिंता करनी है ;
बाकी कब्जा किये हैं उस पर , उनसे रक्षा करनी है ।
इन सबका है अवैध कब्जा , राष्ट्र को क्षति पहुंचाते हैं ;
कुछ भी नहीं राष्ट्र को देते , उल्टे जजिया लेते हैं ।
पूरा है अन्याय राष्ट्र में , गजवायेहिन्द की छूट है ;
राजनीति बन गई नपुंसक , शेष बची अब लूट है ।
करो – मरो की स्थिति आयी , अब तो अपना राष्ट्र बचाओ ;
धर्म – सनातन हमें बचाना , देश को हिंदू – राष्ट्र बनाओ ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”