अभिजीत सिंह। महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात् जब युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था तब ये सब देखकर अपने पुत्रों को खो चुकी गांधारी व्यथित थी और उसने अपने कुल के विनाश का कारण श्रीकृष्ण को समझा और उन्हें ही महाभारत युद्ध के लिए दोषी ठहराते हुए शाप दे दिया कि जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार आपके यदुवंश का भी नाश होगा।
समय आने पर गांधारी का शाप फलीभूत हुआ और धीरे-धीरे समस्त यदुवंश नष्ट हो गया और द्वारिका नगरी समुद्र में डूब गई। कहतें हैं कि जब यदुवंश नष्ट हो रहा था तो द्वारिका नगरी से एक बड़ा विस्थापन भी हुआ था और समुद्री रास्ते से कई लोग पश्चिम के ओर भागे थे और वहाँ जाकर वो शाम (सीरिया), अरब, फिलीस्तीन और मिश्र के इलाके में आबाद हो गये थे। कालान्तर में वहाँ प्रचलित मत-मजहब के प्रचार से वो अपने मूल सनातन धर्म से विमुख होते चले गये पर कृष्ण और दाऊ भैया की कथा किसी न किसी रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही।
इसका सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि मध्यपूर्व से निकले सेमेटिक परिवार के तीनों ही मजहब इस कथा को जीते हैं अलबत्ता उन्होंने पात्रों के नाम अपने देश-काल के हिसाब से बदल लिये हैं।
कृष्ण और बलदाऊ की कथा आज भी वहाँ मूसा और हारुन की कथा के रूप में जीवित है जिसमें कई आश्चर्यजनक समानताएं हैं।
* कृष्ण के जन्म के पहले कंस के अत्याचार की कथा मिलती है, मूसा के जन्म से पहले भी मिश्र के राजाओं के अत्याचार की कहानी है।
* कंस को भी एक आकाशवाणी के माध्यम से बताया गया था कि देवकी और वसुदेव के आठवें पुत्र के हाथों तेरा वध होगा; उधर वैसे ही मिश्र के राजा फ़िरऔन को किसी ज्योतिष ने बताया था कि तेरा अंत बनी-इस्रायल में जन्मने वाले एक बच्चे के हाथों होगा।
* भविष्यवाणी सुनने के बाद कंस ने जैसे छोटे-छोटे बच्चों को मारने का हुक्म दे दिया था उसी तरह मिस्र के बादशाह ने भी बनी-इस्रायल के तमाम उन बच्चों को मारने का आदेश दिया था जो एक साल से कम उम्र के थे।
* कंस के उस आदेश के बाद नवजात बालक कृष्ण को नदी के रास्ते बचा लिया गया था और उन्हें उनके पिता ने टोकरी में रखकर नदी के रास्ते निकाला था; उधर मूसा को भी उसकी माँ ने मिस्र के जालिम बादशाह से बचाने के लिए टोकरी में डाल कर नदी में छोड़ दिया था।
* इस तरह कृष्ण बचाये गये और माँ यशोदा के यहाँ पाले गये; उधर उसी तरह मूसा भी मिस्र के बादशाह फ़िरऔन के घर में पाले गये।
* कृष्ण और मूसा दोनों की ही कथाओं में इनके द्वारा जालिम राजाओं के अंत करने की बात आती है।
* बलराम कृष्ण के बड़े भाई थे पर प्रमुखता श्रीकृष्ण की थी, इसी तरह हारून मूसा के बड़े भाई थे पर कथाओं में प्रमुखता मूसा को दी गई है।
* कृष्ण के मुख से गीता वाणी निःसृत हुई तो बनी-इस्रायल को मूसा के जरिये से किताब मिलने का किस्सा आता है।
* कृष्ण जिस तरह अपने लोगों के साथ मथुरा से निकल कर द्वारका चले गये थे उसी तरह मूसा भी अपने लोगों के साथ मिस्र से अपने मूल देश की ओर निकल गये थे।
* कृष्ण के आखिरी दिनों में यदुवंशियों ने उनकी अवहेलना शुरू कर दी थी; ऐसे ही मूसा की कथा में भी आता है कि बनी-इस्रायल के लोगों ने बाद में मूसा के आदेश को मानने से इंकार कर दिया था और उनकी अवहेलना करने लगे थे।
ऐसी ही कई समानताएं हैं जो साबित करती है कि मूसा और हारून की कथा और कुछ नहीं बल्कि कृष्ण और बलराम की ही कथा है जो द्वारिका से विस्थापित हुए लोगों में पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही पर समय के साथ पात्रों के नाम बदल गये।
मूसा जिस यहूदी जाति से हैं उस यहूदी जाति का नाम का नाम “यदु” शब्द से निःसृत होना भी स्पष्ट ही दिखता है और तो और कृष्ण के द्वारिका के जलमग्न होने और मूसा का कालखंड भी लगभग एक ही है।
अरब के करीब बसे सीरिया का नाम “शाम” है जो कृष्ण के श्याम नाम का ही अपभ्रंश है। कुरान में ‘आद’ नाम की जाति का वर्णन आया है जिनके बारे में भी नई खोजों से पता चल रहा है कि ये भी वही लोग थे जो द्वारिका के जलमग्न होने के बाद वहाँ आबाद हुये थे। अब तो अरबी भाषा में अनुवादित भागवत पुराण भी मिला है जो इस्लाम के काफी पूर्व का है और इस्लाम पूर्व अरब के लोग कृष्ण को जानते थे; इसके प्रमाण भी मिलने लगे हैं। अरब के एक काव्य संग्रह में (जिसके अरब के कई मशहूर कवियों और शायरों की रचनाये संकलित है) ‘नकल मलकूलात हजरत मौला अली अलैहिस्सलाम’ शीर्षक से एक गजल है जिसमें 11 शेर हैं। उसमें दुनिया की हर मशहूर कौमों में गुजरे वलियों और अवतारों का ज़िक्र है। इसमें श्रीकृष्ण का भी वर्णन आता है। वो शेर है-
‘अबुल हसन मयखवा नादानम बुलअशर अजमादेरम् पसमनमई नामेमन ई नस्तगुफतम् मरतो रा।
हिंदयानम् किशने खानंदगिरजे यानम् इतकिया, दर फरंगम शबते आओ दरखता बाबुलिया।।’
अर्थात्, मुझे अबुल हसन कहतें हैं मेरा मादरी नाम रबअलअशर है। इसलिये ये मैं ही हूँ और ये मेरा ही नाम है । इनमें से खासतौर पर तुम्हें बतलाता हूँ। हिंदू जिसे कृष्ण कहतें हैं, गिरिजा वाले उसे मुत्तकी कहतें हैं। फिरंगी उसे शबतिया कहतें हैं और खताला देश के लोग उसे बाबुलिया कहतें हैं।
इन समानताओं को ढूंढते हुये ऐसे कई रोचक प्रसंग हैं जो दुनिया के हर भूभाग में भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म की व्यापकता का प्रमाण देती है।
फिलहाल कृष्ण-कथा की व्यापकता को सुनाते हुये आप सबको श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
साभार- अभिजीत सिंह के फेसबुक वाल से
URL: Arabic religion is woven from the story of Shri Krishna and Balram
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