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India Speak Daily > Blog > मीडिया > फिफ्थ कॉलम > The Wire की आरफा खानम शेरवानी ने जर्मनी में मिले फेलोशिप का शुक्रिया वहीं की एक पत्रिका में हिंदुओं को गाली देकर अदा किया!
फिफ्थ कॉलम

The Wire की आरफा खानम शेरवानी ने जर्मनी में मिले फेलोशिप का शुक्रिया वहीं की एक पत्रिका में हिंदुओं को गाली देकर अदा किया!

Awadhesh Mishra
Last updated: 2018/05/28 at 9:28 AM
By Awadhesh Mishra 2.2k Views 12 Min Read
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12 Min Read
Arfa Khanum Sherwani
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हारने के बाद एक सांसद को ढेर जूते पड़े.. आत्मग्लानि से भरा वह सांसद आत्महत्या करने के लिए जा रहा था। रास्ते में एक कवि ने उसे बचा लिया। परेशान सांसद ने कवि से पूछा कि वोट और जूते में क्या फर्क है। कवि ने कहा जो पड़ने के बाद गिने जाते हैं उसे वोट कहते हैं, और जो नहीं गिने जाते उसे …। सांसद समझ गया लेकिन हमारा परंपरागत मीडिया और एक खास तबके का ‘पत्रकार गैंग’ समझने को तैयार नहीं। वे जूते गिनने पर आमादा हैं..

हमारे देश का ‘पत्रकार गैंग’ उसी जमाने में जी रहा है जब उनसे कोई सवाल करने वाला न था। वो जो चाहते थे लिख या बोलकर अपने आका को खुश कर ईनाम ले लिया करते थे। लेकिन जमाना बदला, सोशल मीडिया का प्रवेश हो चुका है, ऐसे में हमारी और उनकी हर बात न केवल पढ़ी और सुनी जाती है, बल्कि त्वरित प्रतिक्रिया भी मिल जाती है कि हम कितने पानी में हैं। ‘पत्रकार गैंग’ इससे खुद को प्रताड़ित और पीड़ित होने का राग तो आलापता है, लेकिन अपने गिरेवान में नहीं झांकता कि वे किस प्रकार साजिश के तहत संस्थागत हमला करते हैं। कई बार मुंह की खाने के बावजूद नक्सलियों और गुरिल्लाओं की तरह देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं का मान-मर्दन करने पर तुले हैं। सरकार और देश में फर्क तक भूल गए हैं। सरकार के नाम पर देश को बदनाम कर रहे हैं। देश और उसके बहुसंख्यक समुदाय को अपमानित करने का एक भी मौका नहीं छोड़ते। द वायर में कार्यरत महिला पत्रकार आरफा खानम शेरवानी ने तो जर्मनी में मिले फेलोशिप का शुक्रिया देश के हिंदुओं के खिलाफ लेख लिखकर अदा कर दिया।

आरफा खानम शेरवानी ने जर्मनी की एक वेबसाइट के लिए अपने आलेख में लिखा है किस प्रकार बगैर एतिहाक तथ्य के सरकार या भाजपा द्वारा भुगतान किए जाने वाले हिंदू उनलोगों को ट्रोल करते हैं जो सरकार के खिलाफ लिखते हैं। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार पर हिंदुत्व और उसमें भी अगड़ी जातियों की सर्वोच्चता स्थापित करने के प्रयास का आरोप लगाया है। उन्होंने अपने आलेख में मुसलमानों को उपेक्षित और प्रताड़ित करने की बात कही है। इसके अलावा उन्होंने गौरी लंकेश की हत्या करने में अतिवादी हिंदुओं का हाथ होने की बात कही है। शेरवानी ने जितनी भी बातें लिखी हैं उसका न तो कोई साक्ष्य दिया है ना ही ठोस तर्क।

जब तथ्य और तर्क उलटे पड़ने लगते हैं तो गाली देकर अपमानित करना ही एक रास्ता बच जाता है। इन्होंने अपने लेख में दुष्प्रचार को देश की सबसे बड़ी समस्या बताई है। लेकिन क्या इन्हें पता है दुष्प्रचार कौन लोग कर रहे है? जज लोया की स्वाभाविक मौत को साजिश बताने का दुष्प्रचार किसने किया? कारवां पत्रिका के बाद द वायर के संपादक सिद्धार्थ वर्द्धराजन और रवीश कुमार सरीखे ‘पत्रकार गैंग’ ने ही तो अपने आकाओं के इशारे पर दुष्प्रचार किया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग ला कर पूरे न्यायपालिका को बदनाम करने का दुष्प्रचार किसने किया? जो विचारधारा पूरी दुनिया में दम तोड़ चुकी है उसी की पूंछ पकड़कर ये लोग वैतरणी पार करना चाहते हैं। क्या इन लोगों ने देश की भावनाओं को परखे बगैर एक विदेशी विचाराधारा को बलात नहीं लाद रखा है? और आज जब तथ्यों और तर्कों के साथ उसके खिलाफ आवाज उठ रही है तो उसे ट्रोल बताकर गाली दे रहे हैं।

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जिस अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर पत्रकारिता को बचाने की बात उठाई जा रही है क्या इन लोगों ने अपनी ही पत्रकार बिरादरी के साथ दोयम दर्जे का भेदभाव नहीं किया है? गौरी लंकेश की मौत पर चिल्लाने वाले तब कहां थे जब बिहार में दो-दो पत्रकारों की साजिश के तहत क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी गई थी? गौरी लंकेश की हत्या करने वालों का अभी तक सुराग भी नहीं मिला है। केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी को बदनाम करने के लिए अंधेरे में तीर चलाते हैं। बगैर किसी ठोस सबूत और जांच रिपोर्ट के लंकेश की हत्या में हिंदुत्व अतिवादियों का हाथ बताते हुए पूरे हिंदू समाज को हत्यारा बनाने पर तुले हैं। जबकि बिहार में किसके इशारे पर हत्या की गई उसका खुलासा जांच रिपोर्ट तक में हो गई है। यह एक खुला रहस्य है कि दोनों पत्रकारों की हत्या में राष्ट्रीय जनता दल के सजायाफ्ता नेता शहाबुद्दीन का हाथ है। क्या आरफा खानम जैसी स्वधन्यमान पत्रकार ने उन मृतक पत्रकारों की हत्या के खिलाफ कभी लिखा है ? ये लोग अपनी पत्रकार विरादरी के साथ भी दगा करने वालों में से हैं। भाजपा पर हिंदूत्व और अगरी जातीयों की सर्वश्रेष्ठता कायम करने का आरोप लगाने वाली आरफा खानम ने तो पत्रकारों को भी अगरे और पिछड़े वर्ग में बांट रखा है। इन लोगों ने तो ‘पत्रकार गैंग’ में शामिल लोगों को ही पत्रकार होने का दर्जा दे रखा है बांकी को तो ये पत्रकार ही नहीं मानते।

कुछ दिन पहले ही सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने देश में फेक न्यूज के बढ़ते बाजार पर अंकुश लगाने के लिए एक प्रस्ताव लाया था। इसके तहत फेक न्यूज लिखने वालों और उसका प्रचार और प्रसार करने वाले पत्रकारों का पीआईबी एक्रेडिएशन निलंबित या फिर निरस्त किया जाना था। मंत्रालय की सराहनीय पहल होने के बावजूद इसका विरोध हुआ। विरोध को संज्ञान में लेते हुए प्रधानमंत्री ने मंत्रालय को अपना प्रस्ताव वापस लेने का निर्देश दिया और प्रस्ताव वापस ले लिया गया। लेकिन मंत्रालय के इस कदम से सबसे अधिक मिर्ची किसको लगी थी? क्या आरफा खानम शेरवानी को बताने की जरूरत है? सवाल उठता है कि इनलोगों को फेक न्यूज पर अंकुश लगने से क्या परेशानी थी? ऊपर से दुष्प्रचार ये किया गया कि प्रधानमंत्री डर गए । दुष्प्रचार को देश की समस्या बताने वाले ‘पत्रकार गैंग’ में शामिल द वायर, द प्रिंट, द स्क्रॉल, द क्विंट, और एनडीटीवी ही सबसे अधिक दुष्प्रचार करते हैं, ताकि देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं बदनाम हों।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिंदुओं की हिमायती बताकर इनलोगों ने बदनाम करने का एक प्रकार से अभियान चला रखा है। देश के 15 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम समुदायों को भाजपा के खिलाफ भड़काने के लिए हिमायती होने का नाटक करते हैं। ये नाटक आज से नहीं बल्कि स्वतंत्रता के बाद से ही अनवरत चल रहा है। जिन मुसलिम समुदाय का गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री रहते सबसे अधिक विकास हुआ है। उसी मुसलिम समुदाय का पश्चिम बंगाल में विकास क्यों नहीं हो पाया? या पूरे देश में क्यों नहीं हो पाया? जहां सबसे ज्यादा दिनों तक कांग्रेस, कम्युनिस्ट या ममता बनर्जी का शासन रहा है?

ये लोग गुजरात दंगा का जिक्र हर मौके पर करेंगे। जबकि जांच के बाद सामने जो तथ्य आए उसके मुताबिक तत्कालीन मोदी सरकार ने जितनी तेज गति से दंगा रोकने के लिए कदम उठाए आज तक किसी सरकार ने नहीं उठाए। फिर भी वो एक दुखदायी घटना थी। लेकिन सवाल ‘पत्रकार गैंग’ की नियत पर है। क्योंकि कांग्रेस के शासनकाल में हुए नरसंहार का जिक्र नहीं करेंगे। चाहे वह 84′ में सिखों के खिलाफ हुआ नरसंहार हो या फिर मेरठ के हाशिमपुरा या बिहार के भागलपुर में हुए सांप्रदायिक दंगे। इन दंगों का जिक्र उस समय के सरकार के खिलाफ नहीं करेंगे, अगर करेंगे तो देश के हिंदू समुदाय के साथ सेना को अपमानित करने के लिए। उस समय की सरकार के चारित्रिक पतन या सत्ता हासिल के लिए उठाए गए सांप्रदायिक कदम के रूप में नहीं करेंगे। हिंदू समुदायों को ऐतिहासिक तथ्य पर नहीं किवदंतियों पर विश्वास करना बताया जाता है। जबकि इनका मनगढ़ंत इतिहास न तर्क आधारित है ना ही तथ्य आधारित। तभी तो सोशल मीडिया पर उनके रचे ऐतिहासिक तथ्य को लोगों ने पड़खच्चे उड़ा कर रख दिया है। इसी से इनका दोहरा चरित्र उजागर होता है।

हाल ही में दिल्ली से सटे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से देश के बंटवारे के जिम्मेदार शख्स मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर हटाने का विरोध कर रहे हैं जबकि एक वर्ग उसकी तस्वीर हटाने के पक्ष में है। इसी को लकर तस्वीर हटाने का विरोध कर रहे छात्रों की पुलिस से हुई झड़प में कई छात्र घायल हो गए। यह घटना पुलिस और छात्रों के बीच की है लेकिन ये पत्रकार गैंगे एक बार फिर इसे हिंदुओं से जोड़कर सरकार को बदनाम करने का अभियान चलाएंग।

अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी की यह एकलौती घटना नहीं है। देशविरोधी घटनाओं को लेकर कई बार यह विश्वविद्यालय प्रकाश में आ चुका है। यहां के छात्र दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के आने का विरोध कर चुके हैं। एक बार यह यूनिवर्सिटी तब प्रकाश में आई थी जब यहां का एक छात्र हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी संगठन के सदस्य के रूप में पकड़ा गया था। यहां के छात्रों ने एक बार तो इसलिए विरोध प्रदर्शन किया था क्योंकि यूपी सरकार के एक मंत्री ने भाजपा के एक नेता को वहां आने का आमंत्रण दे दिया था। सोचिए, देश के एक यूनिवर्सिटी में देश विरोधी इतने घटनाक्रम घट जाते हैं लेकिन इन पत्रकार गैंग के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जेएनयू के बारे में तो पता ही होगा कि किस प्रकार इन लोगों ने देश के टुकड़े होंगे इंसा अल्लाह इंसा अल्लाह को पचा गए, लेकिन जैसे ही उन देशद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई हुई, ये लोग अभिव्यक्ति की आजादी का ढोल पीटने लगे।

मामला गौरी लंकेश की हत्या के मामले में हिंदुओं को बदनाम करने का हो अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर हटाने का विरोध हो या फेक न्यूज के खिलाफ आवाज उठाने का मामला हो हमे ‘पत्रकार गैंग’ के कुतर्कों का जवाब देना ही होगा।

नोट: पूरी खबर विस्तार से पढ़ने के लिए https://www.dandc.eu/en पर जायें

URL: Arfa Khanam Sherwani denounced Hindutva before foreign media and paid for her fellowship

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Awadhesh Mishra May 4, 2018
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