श्वेता पुरोहित। आज के युग में मृत्यु के समय यमदूत अथवा देवदूत आने की बातका शिक्षित लोग मजाक उड़ाया करते हैं। किंतु नीचे एक ऐसी सच्ची घटनाका वर्णन किया जा रहा है, जिसको पढ़कर भौतिकवादी शिक्षित वर्ग भी आश्चर्यान्वित होगा।
यह घटना आज से १५-२० वर्ष पुरानी है। मेरे पिताजीके लघुभ्राता के श्वसुर के एक निकट सम्बन्धी भगवद्भक्त, कर्मकाण्डी एवं कथावाचक ब्राह्मण थे। वे सात्त्विक प्रकृति के थे। संस्कृत के वे अच्छे ज्ञाता थे। श्रीमद्भागवतपुराण और महाभारत ग्रन्थों के वे अच्छे वाचक थे। जब वे वृद्ध हो गये और उनका शरीर दिन-प्रति-दिन क्षीण होने लगा, तब उन्होंने एक दिन घरवालों को अपनी मृत्यु का निश्चित दिन बता दिया। उन्होंने अब अपना इलाज कराने से भी इनकार कर दिया।
मृत्युके छह-सात दिन पूर्व उनकी तबियत ठीक थी और निकट भविष्यमें मृत्यु होने की कोई सम्भावना नहीं थी। किंतु उनके कथनानुसार निश्चित दिन (एकादशी का दिन था) प्रातःकाल चार बजे उनकी तबियत कुछ खराब हुई। एक जगह भूमि धोकर और लीप-पोतकर स्वच्छ कर दी गयी एवं शय्यापर उनको लिटा दिया गया। विप्र समूह द्वारा गीतापाठ एवं भजनादि हो रहा था। नौ बजे के लगभग उन्होंने कहा, ‘एक घड़ी बाद मेरी मृत्यु हो जायगी; मृत्युके बाद कोई शोक न मनावें। आज तो मेरे लिये शुभ दिन है; क्योंकि श्री कृष्ण मुरारि मुझे बुला रहे हैं।’ इस प्रकार बात करते-करते ही वे बोले- ‘देखो, वह आसमान से विमान उतर रहा है, जिसपर पीतवर्ण की ध्वजा लगी हुई है। उसपर दो भगवान्के पार्षद (देवदूत) पीताम्बरधारी चॅवर लिये बैठे हैं।’ यह बात सुनकर सबको बड़ा कौतूहल हुआ। विमान तो सिवा उनके और किसी को नहीं दिख रहा था। उपर्युक्त वाक्य कहते ही उनका स्वर्गवास हो गया। सबको एक भीनी-सी अद्भुत सुगन्धका अनुभव हुआ और सबके नेत्र एक क्षण के लिये अज्ञात शक्तिके वशीभूत हो बंद हो गये। नेत्र खोलने पर सबने देखा कि कुछ क्षणों पूर्व का वातावरण गायब हो चुका है। पण्डितजी का निर्जीव स्थूल शरीर पड़ा है। तदनन्तर लौकिक अन्त्येष्टि क्रियादि की गयी।
यह घटना राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के एक ग्राम की है।
- श्याममनोहर व्यास
(कल्याण वर्ष ३६, पृष्ठ १०८८)