कोरोना वायरस आपदा ने सभी की आजीविका पर भारी चोट पहुंचाई है. लेकिन इसका सबसे अधिक प्रभाव पडा है कलाकारों की आजीविका पर. चाहे वह नृत्य, संगीत, रंगमंच या चित्रकारी हो, इन सभी कलाओं से जुड़े कलाकारों की आजीविका ईवेंट्स, महोत्सव, प्रदर्शनी आदि से चलती है. अब सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कर के इस प्रकार के इवेंट्स का आयोजन करना लगभग असंभव है. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि डरे, सहमे से लोग मास्क पहने किसी आर्ट गैलरी में प्रदर्शनी देखने पहुंचे ? ऐसी कल्पना करना भी मुश्किल है और लोग खुद भी नहीं जाना चाहेंगे ऐसे समय पर.
ऐसे में कलाकारों की आजीविका खतरे में है. हालांकि डिजिटल माध्यम से अब वीडियो फार्मेट में, लाइव फार्मेट मे बहुत से कला से जुड़े कार्यक्रम हो रहे हैं. काव्य गोष्ठियों से लेकर चित्रकला प्रद्रशनियां भी अब डिजिटल हो गयी हैं. यह एक तरीके से तो कलाकारों के लिये एक सकरात्मक चीज़ है क्योंकि इससे उनका हुनर के प्रति जज़्बा बरकरार रहता है और वे अवसाद व चिंता से दूर रहते हैं. लेकिन अभी फिलहाल इन डिजिटल ईवेंट्स का कोई आर्थिक मांडल नही है. यानि अधिकतर कलाकारों को ये आंनलाइन प्रोग्राम फ्री में करने पड़्ते हैं. इसके लिये उन्हे एक न्यूनतम मेहनताना भी नहीं मिलता . और यह एक चिंता का विषय है. जो इंसान कला से ही खाता कमाता है, वह अगर ऐसे ही मुफ्त में अपनी कला का प्रदर्शन करता रहा, तो फिर वह तो सड़्क पर ही आ जायेगा. इसीलिये ऐसे समय में यह बहुत आवश्यक है कि आंनलाइन प्रोग्राम्स में भी कलाकारों की आजीविका को कोई साधन निकले जिससे कमसमकम उनकी गुज़र बसर हो सके.
फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कितने ही छोटे कलाकारों को अपना बोरिया बिस्तरा समेट् वापस अपने शहर या गांव जाना पड़ रहा है. कितने हे लाइव कार्यक्रमो के ज़रिये खाने कमाने वाले गायकों और इंस्ट्रूमेंट्स बजाने वालों के पास कोई काम नहीं बचा. ये एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर सरकार कोई ध्यान नही देती. और शायद कभी दे भी नही पायेगी. क्योंकि एक विकासशील देश की सरकार की फंडिग की प्राथमिकता कभी भी कला और संस्कृति नही होते. और अब आप भी कहेंगे कि ऐसा ही होना चाहिये. जहां मज़दूर अपनी आजीविका नष्ट होने पर सैंकड़ो मील पैदल चल रहे हों, वहां भला गायक और चित्रकार किसी भी सरकार की प्राथमिकता कैसे हो सकते हैं. लेकिन बात इतनी सरल नही है जितनी ऊपर से दिखती है. हमारे देश में कितने ही लोगों की आजीविका कला और संस्कृति से जुड़ी है, कितनों की आजीविका ईवेंट और इंटर्टेन्मेंट इंडस्ट्री से जुड़ी है. और इस से जुड़े आंकड़े भी हमे शायद ही कही मिले क्योंकि ये सब काम इंफार्मल सेक्टर का हिस्सा हैं. ये अधिकतर काम फार्मल यानि औपचारिक अर्थ्य्व्यवस्था के बाहर होते हैं. इसीलिये इस प्रकार के रोज़गार के आंकड़े सरकारी तौर पर दर्ज नहीं होते. यह एक विडंबना ही है कि बालीवुड और कला जगत के नामी गिरामी सितारे जिन्होने अब तक इतना धन अर्जित किया है कि उसे मिलाकर शायद एक पूरा छोटा देश स्पांसर हो जाये, वो भी ऐसे छोटे कलाकारों की मदद के लिये आगे नही आते. उलटे ऐसे समय में भी सोशल मीडिया के माध्यम से दिन रात बस इसी में लगे रहते हैं कि किसी प्रकार से अपनी विज़िबिलिटी कायम रख के हम अधिकधिक धन अर्जित करें. अब सोशल मीडिया पर भी बड़े सितारों की भरमार लग गयी है. ऐसे में छोटे कलकार अपनी आजीविका के लिये जायें तो भला कहां जायें?