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India Speaks Daily > Blog > मीडिया > सोशल मीडिया > दलित औऱ अंबेडकर विरोधी मानसिकता लिए अरुण शौरी प्रधानमंत्री की आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते।
सोशल मीडिया

दलित औऱ अंबेडकर विरोधी मानसिकता लिए अरुण शौरी प्रधानमंत्री की आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते।

Harish Chandra Burnwal
Last updated: 2017/01/14 at 4:32 AM
By Harish Chandra Burnwal 767 Views 7 Min Read
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7 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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हरीश चन्द्र बर्णवाल। अरुण शौरी आजकल चर्चा में हैं, या कहें कि जब भी उन्हें चर्चा में आना होता है तो वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने लगते हैं। इन दिनों खासकर मोदी विरोधी एजेंडा चला रहे पत्रकारों के पसंदीदा हथियार बने हुए हैं। लेकिन सच ये है कि अरुण शौरी की दलित विरोधी, अंबेडकर विरोधी सोच ही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन है, जिसकी वजह से न सिर्फ उनकी नरेंद्र मोदी के साथ वैचारिक तौर पर गहरी खाई पैदा हो गई है, बल्कि इस पूर्व केंद्रीय मंत्री की आलोचना को भी अब बुद्धिजीवी वर्ग गंभीरता से नहीं लेता। आइये सबसे पहले देखते है कि आखिर अरुण शौरी की दलितों और बाबा साहेब अंबेडकर को लेकर क्या राय है।

अरुण शौरी ने 1996 में ‘वर्शिपिंग फॉल्स गॉड’ नामक किताब लिखी। इस किताब में उन्होंने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को खारिज करते हुए झूठा देवता साबित करने की कोशिश की है। शौरी की किताब के मुताबिक डॉ अंबेडकर का चिंतन अंग्रेजों की गुलाम मानसिकता से ज्यादा कुछ नहीं है। इस किताब के आने के बाद कुछ इलाकों में डॉ अंबेडकर की प्रतिमाओं का अपमान शुरू हुआ। अरुण शौरी ने अंबेडकर पर आरोप लगाया कि उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान राष्ट्रवादियों की जगह ब्रिटेन का साथ दिया। शौरी ने अंबेडकर को ब्रिटेन की क्रूर कठपुतली करार दिया।

अरुण शौरी न सिर्फ आरक्षण का विरोध करते हैं, बल्कि दलित के अधिकारों से जुड़े अभियान का भी इशारों ही इशारों में विरोध किया। बीबीसी के मुताबिक अरुण शौरी कहते हैं कि “अंग्रेज़ों ने मुसलमानों के लिए उस दौर में चुनाव के क्षेत्र में अलग से व्यवस्था की थी, जिसका ख़ामियाजा राष्ट्रवादी आंदोलन को उठाना पड़ा था। जाति आधारित आरक्षण का भी वही नतीजा रहा है।”अरुण शौरी ने दलित आरक्षण का विरोध करते हुए इसे खत्म करने की अपनी मंशा पर भी काम शुरू कर दिया था। शौरी का कहना है कि “पहली बार वैश्विक स्तर पर हमारा देश खड़ा होना शुरू हुआ है और ऐसी स्थिति में अगर आरक्षण की और मांग करते रहेंगे तो इससे किसी को फायदा नहीं होगा बल्कि सभी को नुकसान ही होगा। आरक्षण से ज़मीनी तौर पर कोई लाभ नहीं हुआ है, बल्कि गुणवत्ता में गिरावट ही आई है।”

अरुण शौरी इस बात पर भी संदेह कर रहे हैं कि कि इतिहास में कभी दलितों का शोषण हुआ है। बीबीसी में छपे एक लेख में अरुण शौरी लिखते हैं कि “पहले तो इसी बात की पड़ताल होनी चाहिए कि पिछले हज़ार वर्षों में दलितों के शोषण के तर्क का सच क्या है मगर इसके अलावा अगर यह मान भी लें कि कोई चीज़ पिछले 1000 वर्षों से चल रही है तो उसे आप किसी भी तरीके से 20-30 साल में ही ठीक नहीं कर पाएंगे।” शौरी दलितों को समान अधिकार देने के मुद्दे की तुलना सोवियत संघ से करते हैं और खारिज करते हुए बताते हैं कि वहां समानता की स्थिति लाने से तानाशाही आ गई।

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अरुण शौरी को इस बात से भी आपत्ति है कि आजादी के बाद से दलित जातियों की सूची लंबी होती जा रही है। अरुण शौरी के इन तर्कों से साफ है कि उनकी पूरी राजनीति और सोच दलितों औऱ बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर के खिलाफ जहर बोने से चल रही है। शौरी ने जिस तरीके से अंबेडकर को ब्रिटिशर्स की कठपुतली कहा। उस पर इतिहासकार रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि, “अरुण शौरी से पलटकर यह पूछा जा सकता है कि आखिर अंबेडकर ब्रिटिश के साथ क्यों थे? ऐसा इसलिए था, क्योंकि कांग्रेस में ब्राह्मणों का वर्चस्व था, जो कि अतीत में दलितों का उत्पीड़न कर चुके थे और स्वतंत्र भारत में सत्ता में आने के बाद फिर से ऐसा कर सकते थे। इसी वजह से निचली जाति के महान सुधारक ज्योतिबा फूले और मंगू राम (पंजाब में आदि धर्म आंदोलन के नेता) भी कांग्रेस की तुलना में ब्रिटिश राज को कम नुक्सानदेह मानते थे।”

साफ है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरुण शौरी की सोच में जमीन आसमान का अंतर है। अब जरा देखिए किस तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा साहेब के सम्मान के लिए बिना किसी राजनीति की परवाह किए अपना एजेंडा सबसे ऊपर रखा। ऐसे काम किए जो पहले कभी नहीं हुआ। मध्य प्रदेश के महू में बाबा साहब की जन्म स्थली में बने स्मारक में श्रद्धांजलि देने वाले नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंदन में अंबेडकर पर एक स्मारक का उद्घाटन किया। इसी घर में अपने लंदन प्रवास के दौरान अंबेडकर रहा करते थे। नया स्मारक ‘डा. बाबा साहब अंबेडकर संग्रहालय’ के नाम से जाना जाएगा। प्रधानमंत्री ने नोटबंदी के बाद देश बदलने की जो शुरुआत भीम एप से की, उसे भी बाबा साहेब के नाम पर ही समर्पित किया है।

प्रधानमंत्री ने मुंबई में बाबासाहब भीमराव अंबेडकर मेमोरियल की आधारश‍िला रखी। ये मुद्दा पिछले कई वर्षों से अटका पड़ा था।नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र का भी शिलान्यास किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा साहेब अंबेडकर से जुड़े स्थलों को ‘पंच तीर्थ’ के रूप में भी विकसित करने का ऐलान किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के 125वीं जयन्ती वर्ष समारोह के तहत 125 रूपए और 10 रूपए के स्मारक सिक्के जारी किए।

जाहिर तौर पर दलितों और बाबा साहेब के मुद्दे पर अरुण शौरी और प्रधानमंत्री मोदी नदी के दो विपरीत छोर पर खड़े हैं। ऐसी स्थिति में जब मोदी दलितों और अंबेडकर से जुड़ी योजनाओं पर लगातार काम कर रहे हैं तो दलित विरोधी औऱ अंबेडकर विरोधी मानसिकता लिए अरुण शौरी प्रधानमंत्री की आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते।

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Harish Chandra Burnwal January 14, 2017
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