कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए इतना बेचैन क्यों है? उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने महाभियोग लाने के कांग्रेस के प्रस्ताव को रद्द कर दिया है, जिससे बौखला कर कांग्रेस उन पर भी हमलावर है। सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस हर संवैधानिक संस्था को ध्वस्त क्यों कर देना चाहती है? इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट में आगामी कुछ दिनों में होने वाली सुनवाई की सूची को देखने से मिल जाता है!
जमानती मां-बेटे का असली डर
मुख्य न्यायाधीश की अदालत में लगे एडवोकेट एक्टिविस्ट अश्विनी उपाध्याय के PIL के कारण न केवल कांग्रेस, बल्कि उनकी राजमाता सोनिया गांधी व अध्यक्ष राहुल गांधी का करियर भी दांव पर लगा है! अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिकाओं से कुछ राजनीतिक सुधार हुएं हैं और कई होने वाले हैं। अगर आरोप पत्र दाखिल होने के बाद राजनीतिक दल बनाने अैर उसकी अध्यक्षता करने से वंचित होने वाली जनहित याचिकाएं पास हो जाती है तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा। क्योंकि इस याचिका के पास होते ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रह पाएंगे और सोनिया गांधी यूपीए की चेयरपर्सन नहीं रह पाएंगी!
नेशनल हेराल्ड मामले में दोनों मां-बेटे जमानत पर चल रहे हैं। उन पर अदालत जुर्माना लगा चुकी है। यदि आरोप सिद्ध हो गया तो दोनों मां-बेटे को सजा भी हो सकती है। यही सबसे बड़ा डर है। अश्विनी उपाध्याय के एक पीआईएल को सुनते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा इसी साल जनवरी में यह कह चुके हैं कि दोषी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ता, लेकिन वह चुनाव लड़ाता है, पार्टी बना सकता है, पार्टी का अध्यक्ष हो सकता है- यह एक तरह से लोकतंत्र से धोखा है। मां-बेटे सहित पूरी कांग्रेस इसी से डरी हुई है। यदि हेराल्ड केस में दोनों दोषी साबित हो जाते हैं, तो मां सोनिया गांधी को कांग्रेस के संरक्षक पद से और राहुल गांधी को अध्यक्ष पद से हटना पड़ेगा। वंशवादी गांधी परिवार ता-उम्र कांग्रेस को अपनी बपौती बनाए रखना चाहता है!
बता दूं कि अश्विनी उपाध्याय की एक जनहित याचिका का ही यह प्रभाव है कि देश के 12 जिलों में स्थापित विशेष अदालत एक मार्च 2018 से काम कर रही है। इस अदालत का काम किसी भी विधायकों तथा नौकरशाहों के लंबित मामले को एक साल के भीतर निपटाना है।
इतना ही नहीं इन्ही की जनहित याचिका के कारण आज लालू यादव और ओमप्रकाश चौटाला जैसे दबंग नेता चुनाव लड़ने से वंचित है। हालांकि किसी गंभीर मामले में दोषी व्यक्ति को जीवन भर के लिए चुनाव न लड़ने, राजनीतिक दल न बनाने तथा किसी राजनीतिक दल के पदाधिकारी बनने से रोकने संबंधी इनकी जनहित याचिका कोर्ट में विचाराधीन है। जिस पर आगामी दिनों में सुनवाई होने वाली है और इसकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ ही करने वाली है।
बेनामी संपत्ति रखने वालों का डर
अश्विनी उपाध्याय के एक और पीआईएल में जमीन के रिकॉर्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की अनिर्वायता पर बल दिया गया है। यह मामला भी मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की अदालत में है। इस पर यदि निर्णय आ गया तो हर संपत्ति को आधार कार्ड से जोड़ना होगा, जिससे बेनमी संपत्तिदारों की पूरी पोल-पट्टी खुल जाएगी। गांधी परिवार से लेकर पूरी कांग्रेस और कांग्रेस के पिट्ठू ‘कोर्ट फिक्सर’ इससे बेहद डरे हुए हैं। प्रशांत भूषण, इंदिरा जय सिंह आदि आधार कार्ड की अनिवार्यता और मुख्य न्यायाधीश की सुनवाई को इसीलिए तो रोकना चाहते हैं! संपत्ति को आधार कार्ड से जोड़ने का निर्णय होते ही, कांग्रेस, वामपंथी लॉबिस्ट,’पीडी पत्रकार’, धनशोधन के धंधे में लगे मीडिया हाउस और ‘कोर्ट फिक्सरों’ की पूरी पोल खुल जाएगी।
आइए एक नजर मारते हैं, उन PIL पर, जिसके कारण कांग्रेस व उसकी पाली हुई लॉबी बेहद डरी हुई है और भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित सुप्रीम कोर्ट को अपनी राजनीति का शिकार बना रही है-
* पांच जजों के पास किसी भी गंभीर मामले में आरोपपत्र दाखिल होते ही आरोपी शख्स को चुनाव लड़ने, राजनीतिक दल बनाने तथा किसी राजनीतिक दल के पदाधिकारी बनने से वंचित करने सबंधी जनहित याचिका।
* किसी भी विधायक तथा नौकरशाहों से संबंधित विचाराधीन मामले को एक साल के भीतर निपटाने के लिए सभी जिले में एक स्पेशल कोर्ट स्थापित करने के संबंध में जनहित याचिका। 12 विशेष न्यायालय एक मार्च 2018 से कार्य कर रहे हैं।
* दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने, राजनीतिक दल बनाने तथा किसी राजनीतिक दल के पदाधिकारी बनने से जीवन भर वंचित करने के लिए जनहित याचिका। अभी सिर्फ छह साल के लिए प्रतिबंधित करने का प्रावधान है।
* संसद, विधानसभा तथा निकाय चुनाव के लिए एक ही प्रकार की मतदाता सूची के उपयोग के लिए जनहित याचिका। वर्तमान में संसद, विधानसभा तथा निकाय चुनावों के लिए अलग-अलग मतदाता सूची का उपयोग होता है।
* संसद, विधानसभा तथा निकाय चुनावों में मतगणना के लिए Totalizer (इकट्ठा गिनती करने वाली मशीन) के उपयोग करने संबंधी जनहित याचिका। वर्तमान में बूथ दर बूथ मतों की गिनती होती है, इससे कुछ गड़बड़ी होने की आशंकाएं रहती हैं।
* मतदाताओं के पंजीयन के लिए डाक खाने को केंद्रीय एंजेसी के रूप में उपयोग करने संबंधी एक जनहित याचिका। वर्तमान में मतदाताओं का पंजीयन प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक करते हैं, इससे बच्चों के शिक्षा के अधिकार का हनन होता है।
* मतदान में ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं की सहभागिता के लिए रविवार को चुनाव कराने को लेकर एक जनहित याचिका लंबित। दुनिया के 48 देशों में चुनाव रविवार को ही कराए जाते हैं।
* सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की तरह ही सभी चुनाव आयुक्तों को सुरक्षा मुहैया कराने को लिए एक जनहित याचिका लंबित है।
* भारतीय चुनाव आयोग को भी एक अलग से सचिवालय उपलब्ध कराने तथा उसका खर्च सुप्रीम कोर्ट की भांति तय करने संबंधि एक जनहित याचिका लंबित है।
* कानून बनाने वाले प्राधिकरण को सुप्रीम कोर्ट में निहित करने संबंधी जनहित याचिका लंबित हैं।
URL: Ashwini Upadhyay’s PIL can change the direction of the India
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