मैं भी राजनीति से उदासीन एक युवा था। राजनीति को अछूत समझता था। कोई रुचि नहीं थी मेरी राजनीति में। तब पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी जी का भाषण सुना था। 1996 में वह 13 दिन की सरकार के प्रधानमंत्री थे। उनके भाषण ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी सरकार का गिरना मुझे अच्छा नहीं लगा था। 1990 के उस जातिवादी दौर में वह ठंढी हवा की झोंके की तरह महसूस हुए थे।
1998 में दूसरी बार वह 13 महीने के लिए प्रधानमंत्री बने। पोखरण परमाणु विस्फोट और कारगिल युद्ध में हमारी जीत ने मेरे मन में यह पक्का कर दिया कि यही वो व्यक्ति हैं, जिनके हाथ में भारत सुरक्षित है। पहली बार और आजतक केवल एक बार ही मैं एक दर्शक के रूप में किसी नेता का भाषण सुनने किसी सभा में गया, और वह वाजपेयी जी थे।
कारगिल युद्ध के बाद चुनाव प्रचार के सिलसिले में वह पटना के गांधी मैदान में भाषण देने आए थे। प्रत्यक्ष उनका भाषण सुनकर कितना खुश हुआ था मैं, और मैंने तय कर लिया कि जीवन में जब कभी वोट दूंगा तो इन्हीं की पार्टी को दूंगा। तब तक मैंने जीवन में एक बार भी वोट नहीं डाला था, इतना उदासीन था मैं राजनीति के प्रति। जीवन मे पहली बार वोट ही मैंने इसके भी करीब डेढ़ दशक बाद 2014 डाला।
वाजपेयी जी के पांच साल के कार्यकाल ने मेरा राजनीतिक मानस बनाया। नदियों को जोड़ने की योजना और स्वर्ण चतुर्भुज योजना ने मुझे बेहद प्रभावित किया था। मुझे ऐहसास हुआ कि अटलजी भारत की मूल समस्या को जमीनी स्तर पर समझते हैं।
2004 में जब वाजपेयी जी की सरकार चुनाव हार गयी तो मैं बेहद दुखी हुआ था। तब तो पत्रकारिता में भी आ चुका था। लेकिन मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनते ही मेरी राजनीतिक उदासीनता और घनी हो गयी। यही कारण है कि मुझे अपने जीवन का पहला वोट देने के लिए नौकरी छोड़कर एक क्रांतिकारी रुख अख्तियार करना पड़ा कि फिर से 2014 में मनमोहन न आ जाएं। वैसे अटलजी के बाद 2010 से नरेंद्र मोदी ने प्रभावित करना शुरू कर दिया था, और यह उसका भी असर था।
आडवाणी मुझे अच्छे लगते थे, लेकिन जिन्ना के मजार वाली घटना ने मुझे उनके प्रति भी उदासीन बना दिया था। इसीलिए 2009 में जब वह प्रधानमंत्री के उम्मीदवार बने तो एक पत्रकार के नाते मैंने दिल्ली में उनकी एक सभा को कवर भी किया था, लेकिन उन्हें वोट नहीं कर सका था।
कह सकता हूं कि एकलव्य की भांति अटलजी को सुनकर, उनको पढ़कर और उनकी पूरी राजनीति को देखकर मेरी राजनीतिक समझ विकसित हुई और इसकी पराकाष्ठा नरेंद्र मोदी की राजनीति को नजदीक से जानकर हुई।
मेरे पिताजी कमल के फूल वाला बटन,बैज, झंडा 1984 के चुनाव में घर लेकर आए थे, और मैं तब केवल 8 साल का था। वह बटन लगाकर और झंडा लेकर गांव में दौड़ कर खेला करता था। मेरे गोतिया चाचा ने मुझे बुलाया और कहा, तुम्हारे पिताजी गद्दार हैं। सब जब कांग्रेस को वोट कर रहे हैं तो तुम्हारे यहां भाजपा का झंडा वो लेकर आए हैं।
मुझे ठीक-ठीक याद है। यह 1984 ही था, जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी। पूरे गांव क्या, आसपास के गांव में भी केवल हमारे यहां टेलीविजन था। लोगों का हुजूम मेरे दरवाजे पर रात दिन इंदिराजी की अंतिम क्रिया को देखने के लिए जमा रहता था। लोग ट्रैक्टर पर लद-लद कर दूसरे गांव से आते थे। भीड़ को देखकर चारों तरफ बड़े-बड़े शीशे लगाए गये थे ताकि लोग हर तरफ से देख सकें। एक शीशा मेरे सिर पर गिर गया था और सिर फट गया था।
ऐसे इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद मेरे घर में कमल निशान वाला बैज, बटन, झंडा देखकर मेरे पिताजी को सबने गद्दार कहा, और मुझसे कहा। मैं तब न गद्दार का मतलब समझता था, न कमल के निशान का मतलब, न इंदिराजी की मौत का मतलब। बस सुनकर मम्मी को कह आया था। मम्मी भी कुछ नहीं समझती थी तो हंसकर टाल दिया था।
लेकिन कांग्रेस के साथ मेरे पिता की गद्दारी और कमल का निशान कहीं न कहीं मेरी याद में टंक गया था, और जब पहली बार वाजपेयी जी को सुना तो अवचेतन से वह कमल एकाएक प्रकट हो आया। इसलिए कहूंगा कि मेरा पोलिटिकल सोशलाइजेशन अटलजी के कारण हुआ!
एक बात और! एकलव्य के साथ मेरे अंदर अभिमन्यु का गुण भी विकसित हुआ। मैं आपातकाल के समय पूरे समय मां के गर्भ में रहा और मेरा जन्म भी आपातकाल में हुआ!
कहीं न कहीं कांग्रेस के प्रति मेरे अंदर जो गुस्सा है, उसकी एक बड़ी वजह यह है, ऐसा मैं मानता हूं। दूसरी वजह एक कांग्रेसी द्वारा मेरे पिताजी को गद्दार कहना रहा, और तीसरी वजह अटलजी रहे, जिन्होंने कांग्रेस के चक्रव्यूह को ध्वस्त कर पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार सफलतापूर्वक चलाई। सबका मनोविश्लेषण करता हूं, तो यह मेरा कांग्रेस से क्रोध और भाजपा से लगाव का मनोविश्लेषण है।
और हां, मेरे गोतिया चाचा आज भी कांग्रेसी गुलाम हैं, और आज वह देश के विकास के साथ गद्दारी कर रहे हैं। और मैं और मेरे पिताजी देश हित की राजनीति में सक्रिय योगदान कर रहे हैं। धन्यवाद अटलजी मेरे अंदर के उथल-पुथल को एक राह देने के लिए!
URL: Atal Bihari Vajpayee, Former Prime Minister Critical, On Life Support
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