सुभाष चन्द्र। दिल्ली में अटल जी के लिए आयोजित शोक सभा में महबूबा मुफ़्ती और फारूख अब्दुल्ला ने अटल जी के लिए बड़ी बड़ी बातें बोलीं। अच्छी बात है मगर जो उन्होंने कहा उसने उन पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए फारूख अब्दुल्ला ने कहा अटल जी सबको साथ ले कर चले और उनकी याद में भारत माता की जय का नारा भी लगा दिया। उन्होंने अटल जी के “इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत” के सिद्धांत की तारीफ की।
उधर महबूबा ने कहा अटल जी पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने कश्मीरियों पर भरोसा किया। उन्होंने कश्मीर के सभी लोगों को एक किया उनके समय में आतंकी हमलों में भी कमी आयी थी। अटल जी 1998 से 2004 तक प्रधान मंत्री रहे और ये “इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत” की बात भी उन्होंने तब ही की थी। 1996 से 2002 तक फारूख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे और तब भाजपा नेतृत्व के एनडीए से उन्हें कोई समस्या नहीं थी। 1999 में अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस एनडीए में शामिल हो गई और बेटा उमर अब्दुल्ला अटल जी के मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री बन गया।
सबको एक करने की महबूबा की बात पर याद आया कि उनके पिता मुफ़्ती मोहम्मद सईद ने 1999 में कांग्रेस से अलग हो कर अपनी अलग पार्टी PDP बना ली। जिसने उसी कांग्रेस से मिल कर 2002 में सरकार बनाई जो 2005 तक चली और फिर समझौते के अनुसार गुलाम नबी आज़ाद मुख्य मंत्री बना। मुफ़्ती की PDP का गठबंधन कांग्रेस के साथ 2002 से 2008 तक चला तो एक नहीं हुए बल्कि मुफ़्ती और कांग्रेस पहले अलग हुए और फिर सत्ता के लिए साथ हुए। ये बात महबूबा की गलत है कि अटल जी के समय में आतंकी हमले कम हुए!
अटल जी को तो बहुत धोखे दिए गए कश्मीर में
21वीं सदी में पहुंचने से पहले 24 दिसंबर 1999 को 162 यात्रियों से भरा हवाई जहाज कंधार ले जाया गया। जिस पर कश्मीर खुश था 1999 में ही कांग्रेस के पक्षधर जनरल मुशर्रफ ने लाहौर बस यात्रा की एवज में अटल जी को कारगिल रिटर्न गिफ्ट के तौर पर दिया। 1/10/2001 को जम्मू कश्मीर विधान सभा को कार में लदे विस्फोटक से उड़ाने का प्रयास किया गया, जिसमे 38 लोग और 3 फिदायीन मारे गए। उसी वर्ष 13 दिसंबर, 2001 को भारत की संसद पर आतंकी हमला किया गया।
इसके अलावा 11 सितम्बर 2001 में अलकायदा का अमेरिका पर सबसे भीषण आतंकी हमला भी हुआ था। ये रिकॉर्ड बताता है कि अटल जी के कार्यकाल में पाकिस्तान और कश्मीरी आतंकियों ने कश्मीर में आतंक का भयंकर तांडव खेला था मगर अटल सरकार ने भी उन्हें तबियत से जहन्नुम भेजा था। अगर महबूबा मुफ़्ती का कहना सही है कि अटल जी ने कश्मीरियों पर भरोसा किया था तो वो भरोसा 2004 तो कायम रहा ही होगा (जो सही मायने में नहीं रहा) लेकिन उसके बाद वो भरोसा अगर टूटा तो कांग्रेस की सरकारों ने ही तोडा होगा क्यूंकि 2004 से 2013 तक तो वो सत्ता में थे।
मोदी जी को तो कांग्रेस ने बिगड़ी हुई कश्मीर की तस्वीर दी थी, वो भरोसा तोड़ने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। वैसे भी महबूबा कल तक जब तक मुख्य मंत्री थी, कहती थी कि कश्मीर समस्या को केवल मोदी जी ही सुलझा सकते हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और PDP जब तक सत्ता में रहते हैं, इन्हे कोई समस्या नहीं होती चाहे केंद्र में भाजपा ही क्यों ना हो? जैसे ही सत्ता से हटे, सारे कलेश की जड़ भाजपा को बताना शुरू कर देते हैं।
सच तो ये है कि फारूख और महबूबा कह जरूर रहे हैं कि अटल जी के बताये मार्ग पर चलना चाहिए मगर ये खुद चलना ही नहीं चाहते क्यूंकि उसके लिए इन्हे पाकिस्तान की गुलामी छोड़नी पड़ेगी जो ये कर नहीं सकते।
URL: Atal ji trusted Kashmiris, then who broke the trust? Tell Mehbooba and Farooq
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