एक बार फिर पूरे देश में अयोध्या विवाद बहस के केंद्र में आ गया है। आम जनों में रोष है कि इस बहस के लिए किसी हद तक सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली खंडपीठ का वह फैसला जिम्मेदार है जिसने सुनवाई को जनवरी तक के लिए टाल दिया। पूरा देश सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश के नेतृत्व वाली पीठ से कुछ महत्वपूर्ण फैसले की आस में था। देश की जनता को लगता था कि अगले कुछ दिनों की सुनवाई में अयोध्या में दशकों से लंबित राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो जाएगा। लेकिन जस्टिस गोगोई नेतृत्व वाली खंडपीठ ने महज तीन मिनट की सुनवाई में मसले को जनवरी तक के लिए टाल दिया। करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़े इस फैसले की भी देश भर में आलोचना हुई। अब तो एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने उनकी मनमानी सुनवाई पर आपत्ति जताई है।
मुख्य बिंदु
* एटॉर्नी जनरल केके वेनुगोपाल ने मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की सुनवाई के तरीके पर जताई आपत्ति
* देश में अयोध्या विवाद पर अनचाही गरमाई बहस के लिए किसी हद तक न्यायमूर्ति गोगोई का फैसला ही जिम्मेदार है
Attorney General KK Venugopal questions #CJI Ranjan Gogoi over the judge's style of hearing cases.
"People come here from very far..give them a hearing. My lord simply saying 'dismissed' doesn't do justice to them and the lawyers," said AG.
Gogoi J agrees to hear him at length
— Utkarsh Anand (@utkarsh_aanand) November 12, 2018
वेणुगोपाल ने एक केस की सुनवाई के दौरान ही मुख्य न्यायधीश की सुनवाई शैली पर प्रश्न खड़ा कर दिया। आज एक मामले की सुनवाई के दौरान देश के एटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई के कोर्ट में पेश हुए। लेकिन मामले को बगैर सुने ही उसे निरस्त करने लगे। तभी वेणुगोपाल इस मामले की सुनवाई पर अड़ गए। उन्होंने मुख्य न्यायधीश की सुनवाई शैली पर आपत्ति जताई। वेणुगोपाल ने जस्टिस गोगोई से कहा कि लोग हजारों मील चलकर यहां तक पहुंचते हैं और फिर बगैर उनकी बात सुने मामले को निरस्त कर देना न तो उनके साथ न्याय होता है न ही केस से संबंधित वकीलों के साथ।
मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की सुनवाई शैली पर पहले भी सवाल खड़े किए जा चुके हैं!उन पर सुनवाई के दौरान मामले पर कठोर रुख अख्तियार करने के साथ ही मामले को जल्दी में निपटाने का भी आरोप है। तभी तो वेणुगोपाल ने आज कोर्ट में उनसे कहा है कि सुनवाई का यह तरीका सही नहीं है। खासकर मामले की शुरुआती स्तर पर।
देश में अयोध्या विवाद पर चल रही बहस के लिए भले ही लोग सुप्रीम कोर्ट को जिम्मेदार नहीं माने लेकिन इसके लिए बहुत हद तक सुप्रीम कोर्ट का इस संदर्भ में आया हालिया फैसला भी जिम्मेदार है। अगर मुख्य न्यायधीश के नेतृत्व वाली खंडपीठ महज तीन मिनट की सुनवाई के दौरान अयोध्या विवाद मसले को जनवरी तक नहीं लटकाया होता तो आज इस प्रकार की बहस नहीं होती। अगर समुचित समय देकर नए मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई ने इसकी सुनवाई की होती तो लोगों को लगता कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गंभीर है। लेकिन जिस प्रकार उसे लटकाया गया उससे लगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में गंभीर है ही नहीं। ऐसे में एकमात्र रास्ता कानून बनाकर मंदिर बनाने का बचता है। तभी देश के बहुसंख्यक हिंदुओं ने सरकार पर कानून लाकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने का दबाव बढ़ाया है।
अयोध्या विवाद जैसे गंभीर मसले को आखिर मुख्य न्यायधीश वाली खंडपीठ ने क्यों लटकाया यह बात अभी तक किसी को समझ नहीं आई है? सुप्रीम कोर्ट का काम राजनीतिक लाभ या नुकसान नहीं देखना है। उसका काम मामले की गंभीरता को देखते हुए निष्पक्ष रूप से फैसला देना होता है। फैसले के परिणामस्वरूप बने माहौल को नियंत्रित करना कार्यपालिका का काम है। लेकिन जिस प्रकार अयोध्या विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामने आया है इससे तो साफ हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट ही न्यायपालिका से लेकर कार्यपालिका और विधायिका का काम करना चाहता है।
URL: Attorney General KK. Venugopal raised strong disapproval on CJI Gogoi arbitrary hearing.
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