अगस्त महीना जब आता है तब जनसामान्य के मन में केवल एक तिथि ही विशेष महत्व की रहती है। वह तिथि है 15 अगस्त। और यह तिथि हमारे मनों में घूमें भी क्यों न? आखिर लाखों बलिदान देकर इस दिन देश को स्वतंत्रता जो मिली थी। लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कुछ ऐसा अप्रत्यक्ष घटित हुआ कि अगस्त महीने में एक तिथि और है जो बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है। वह तिथि है ‘5 अगस्त’ यानी आज की तिथि। आने वाले समय में 5 अगस्त का दिन भारतीय इतिहास में स्वतंत्रता के बाद स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
भारत के लिए 5 अगस्त क्यों ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण हो गया है? इस प्रश्न का उत्तर है : ‘5 अगस्त 2019 जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति’ और ‘5 अगस्त 2020 भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज के आराध्य भगवान श्री राम मंदिर के निर्माण कार्य के लिए भूमिपूजन’।
वैश्विक स्तर पर देखें तो 5 अगस्त 1921 को अमेरिका और जर्मनी ने बर्लिन शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 5 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था। 5 अगस्त 1960 को अफ़्रीक़ी देश बुर्किना फासो ने स्वतंत्रता की घोषणा की थी और 5 अगस्त 1963 को रुस, ब्रिटेन और अमेरिका ने मॉस्को में परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि की थी।
भारत के परिप्रेक्ष्य में 5 अगस्त वास्तव में ऐतिहासिक, अद्भुत और अविस्मरीणय तिथि बन गयी है। ‘जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है’ यह वक्तव्य राजनीतिक दलों के नेता देते जरूर थे, लेकिन सत्य यह था कि जम्मू-कश्मीर अनुच्छेद 370 के नागपाश में बंधा हुआ था और भारत से कटा हुआ था। यह अनुच्छेद भारत सरकार के किसी भी निर्णय को सीधे तौर पर जम्मू-कश्मीर में लागू होने से रोकता था। इसलिए ‘जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है’ यह बात 5 अगस्त 2019 से पहले केवल कहने भर के लिए ही थी। भारत माता के शीश मुकुट जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 एक जहरीले कांटे की तरह था। इसके कारण कश्मीर घाटी के चंद परिवार मालामाल हो रहे थे। विशेषकर कश्मीर घाटी में अलगाव की आग धधक रही थी। घाटी के युवा पत्थरबाज़ बने हुए थे। सेना को अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। कश्मीर घाटी के नेता जो अनुच्छेद 370 को अपने लाभ के लिए पत्थर की लकीर समझते थे, उनमें से नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारुख़ अब्दुला दंभ के साथ कहते थे,”धरती पर कोई भी ताकत अनुच्छेद 370 को छू नहीं सकती।” वहीं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती कहती थी,”370 को कोई छू भी नहीं सकता। इससे एक कदम आगे बढ़कर उन्होंने धमकी दी थी “ना समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दुस्तान वालो, तुम्हारी दास्तान तक भी ना होगी दास्तानों में”
अनुच्छेद 370 के नाम पर चाँदी काटने वाले इन कश्मीर घाटी के नेताओं को लद्दाख के सांसद जमयांग सेरिंग नामग्याल ने संसद में यह कहते हुए मुहतोड़ उत्तर दिया था,”इस फ़ैसले से केवल दो परिवारों की रोज़ी-रोटी बंद होगी।” इस विषय पर कांग्रेस का अपना ही राग था। लेकिन 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने सभी को चौंकाते हुए अनुच्छेद 370 हटा दिया और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में एक नए युग की शुरुआत हुई। देशवासियों ने खुशियां मनाई। 5 अगस्त 2019 का दिन कश्मीर घाटी में बढ़ रहे अलगाववाद पर बहुत शक्तिशाली प्रहार था। इस प्रहार की चोट इतनी गहरी थी कि पाकिस्तान भी कुकुर की तरह बिलबिला रहा था। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर के ‘भारत का अभिन्न अंग’ होने की राह में कांग्रेस द्वारा स्थापित गुप्त बाधा अर्थात अनुच्छेद 370 की समाप्ति होना एक ऐतिहासिक दिन था। आज 5 अगस्त के दिन उस घटनाक्रम का स्मरण करना अपरिहार्य है।
पिछले 500 वर्षों के इतिहास में 5 अगस्त 2020 के दिन एक और ऐतिहासिक घटना घटी। इस शुभ क्षण की प्रतीक्षा में हिन्दू समाज पिछले 491 वर्ष से संघर्ष कर रहा था। 21 मार्च 1528 को मुगल आक्रांता बाबर के आदेश पर उसके सिपहसलार मीर बाकी ने राममंदिर को ध्वस्त किया था और फिर उसके स्थान पर एक ढांचा खड़ा कर दिया था। उस ढांचे को हिन्दू समाज ने 6 दिसंबर 1992 को उखाड़ फेंका था। इसके बाद न्यायलय में प्रकरण चला और हिन्दू समाज की विजय हुई। हिन्दू संस्कृति की अस्मिता को कलंकित करने वाला यह ऐतिहासिक कलंक 5 अगस्त 2020 को धुला था। 5 अगस्त 2020 को राममंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन के ‘दिव्य क्षण’ की प्रतीक्षा और संघर्ष में रामभक्तों की कई पीढ़ियां अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का मंदिर बनाने की अधूरी कामना के साथ उनके श्री चरणों में लीन हो गईं थीं। लेकिन 5 अगस्त 2020 को वह शुभ क्षण आया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों द्वारा असंख्य सनातनी रामभक्त हिन्दुओं के संघर्ष, त्याग और तप की पूर्णाहुति हुई। उस दिन सम्पूर्ण हिन्दू समाज के आनंद की कोई सीमा नही थी। इसलिए हिन्दू समाज के लिए 5 अगस्त का दिन आधुनिक ‘दीपावली’ त्यौहार के समान है।
5 अगस्त वर्ष 2019 और 2020 की दोनों ही घटनायें भारत के इतिहास की सुखद और स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होने वाली घटनायें हैं। दोनों ही घटनायें देश और धर्म भक्तों का मनोबल बढ़ाने वाली हैं और देश और धर्म विरोधियों की छाती पर मूँग दलने वाली हैं।