लम्बे समय के बाद कल्पना और यथार्थ की चाशनी में बखूबी डूबे हुए कुछेक उपन्यास ऐसे आते हैं जो पाठकों के दिलो-दिमाग पर अपनी गहरी छाप छोड़ते हैं। सौरभ कुदेशिया द्वारा लिखित “आह्वान” ऐसा ही उपन्यास है जिसके पहले पन्ने से उत्पन्न सिहरन उपन्यास पूरा पढ़ने के बाद भी कई दिनों तक आपको झकझोरती रहती है। कहानी रोहन और उसकी मौत के बाद अजीब तरीके से मिली उसकी वसीयत से शुरू होती है जो धीरे-धीरे उसके बीते जीवन को कुछ ऐसी डरावनी कल्पनातीत घटनाओं से जोड़ने लगती है। रहस्य की परतें कुरेदने की कोशिश उसके परिवार को एक ऐसे पुरातन डर के सामने खड़ा कर देती है जो उन अजीब और डरावनी घटनाओं को जनक था- इतिहास के पन्नों में छुपे कुछ ऐसे अनकहे सच जिसके हर हिस्से पर मौत हावी थी।
पाठकों के हर अनुमानों को कदम-कदम पर तगड़ी पटखनी देने वाला यह उपन्यास कई मायनों में विलक्षण प्रयोग है। उत्कृष्ट लेखन शैली और कहानी की तेज गति पाठकों को बड़ी चतुराई से बांधते हुए उनके रोंगटे खड़े करती है। अपराध, जासूसी, धर्म, अध्यात्म, इतिहास, पुराण, रहस्य और रोमांच के साथ कल्पना और तथ्यों के अद्वितीय समावेश में पिरोई रहस्य की गुत्थियां आरंभ होती है, एक-दूसरे से जुड़ती है और फिर पाठकों को उलझाकर अपनी अमिट छाप उनके मन पर छोड़कर कहानी आगे बढ़ाती रहती है। जैसे ही लगता है कि रहस्य पकड़ में आने लगा है, कहानी एक अनपेक्षित मोड़ लेकर सभी अनुमानों की धज्जियां उड़ाकर कल्पना और भय को नए आयाम पर ले जाती है।
सौरभ जी की कलम पर गहरी पकड़ कहानी की रफ्तार कहीं भी कम नहीं होने देती है। लेखक की कल्पना शक्ति और कल्पना को शब्दों में उतारने की उनकी क्षमता अभूतपूर्व है। हर शब्द बखूबी पिरोया गया है। यह उपन्यास उदाहरण है कि किस प्रकार साधारण शब्दों से रहस्य और रोमांच का असाधारण साम्राज्य खड़ा होता है। घटनाओं के रोंगटे खड़े करने वाले जीवंत वर्णन आपको झकझोरते हुए आपको कहानी का हिस्सा बना देते हैं। साधारण सी दिखने वाली कहानी जाने कब मर्डर मिस्ट्री से इतिहास, पुराण, धर्म और अध्यात्म के आयामों से जुड़कर कल्पना के पंखों पर सवार होकर एक अकल्पनीय विराट रूप धारण कर लेती है। शुरुआत में तनिक कमजोर लगने वाले हिस्से कहानी के आगे बढ़ने के साथ जब अपना रंग दिखाते हैं तो दांतों तले उंगली दब जाती है। यह प्रयोग पाठकों को कहानी की गहराई में उतारता जाता है। सौरभ जी की लेखनी की तारीफ़ करनी होगी कि पूरी कहानी आपकी आँखों में सामने घटित होती लगती है और आप कब उसका हिस्सा बन जाते है आपको पता ही नहीं चलता है।
आजकल तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर जैसे-तैसे कल्पना का छौंका लगाकर उसे पौराणिक कथाओं के नाम पर पाठकों को परोसने का ट्रेंड चल पड़ा है। ‘आह्वान’ इस ट्रेंड को तोड़कर तथ्यों के आधार पर कल्पनाओं को मजबूती प्रदान करने का एक बेहतरीन प्रयोग है। यदि आप थ्रिलर, रहस्य, रोमांच में कुछ अलग हटकर पढ़ने की इच्छा रखते है तो ‘आह्वान’ आपको अवश्य पढ़नी चाहिए। यदि नहीं तो उनमें रुचि उत्पन्न करने के लिए आपको इससे अच्छी पुस्तक मिलना मुश्किल है।