आश्विन कृष्ण द्वितीया :-
*भगवान् तिरुपति के प्रसाद में अपवित्र घटक मिलाना समस्त हिन्दू जन-समुदाय के प्रति अपराध*
-ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामिश्रीः
अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती ‘1008’ समाचार रिपोर्टों के अनुसार, आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमन्त्री एन चन्द्रबाबू नायडू ने खुलासा किया है कि 2019-2024 की अवधि के दौरान, “तिरुमाला लड्डू घटिया सामग्री से बनाए गए थे। उन्होंने घी के बजाय पशु वसा का इस्तेमाल किया।” पशु वसा में गोमांस वसा, मछली का तेल और चर्बी शामिल थे। उनके द्वारा इस अवधि में मन्दिर के धन के लूट का भी आरोप लगाया गया है। इस समाचार के आते ही करोड़ों हिन्दुओं की आस्था पर कड़ी चोट लगी है। यह हिन्दुओं को धर्मभ्रष्ट करने की बड़ी चाल लगती है जो समस्त हिन्दू समुदाय के विरूद्ध एक योजनाबद्ध षड्यंत्र हो सकता है। यह तो है ही कि उपरोक्त सभी आरोप जांच के योग्य हैं और हमारे संविधान और कानून के अनुसार दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
*दोषियों को तत्काल गिरफ्तार करें और न्यायालय अभियोग का त्वरित निस्तारण करते हुए दण्डित करे*
हम सनातनी हिन्दुओं की ओर से सरकार और न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि वे इसे अभियोग के रूप में पञ्जीकृत कर फास्ट ट्रैक सुनवाई करते हुए दोषियों को शीघ्र दण्डित करें।
*सनातनधर्म के सभी मन्दिर सरकारी नियन्त्रण से मुक्त हों*
तात्कालिक कार्यवाही के अलावा आवश्यकता समस्या की जड़ पर प्रहार करने की है जो धर्मनिरपेक्ष सरकार द्वारा हिन्दू मन्दिरों पर नियंत्रण है। आजादी के 77 साल बाद भी हिन्दुओं का अपने मंदिरों पर नियन्त्रण नहीं है. इसके कारण, हिन्दू समाज का अपने प्रशासन, अपनी भूमि और संसाधनों, मंदिर में धन के प्रवाह या यहाँ तक कि हमारे मंदिरों में पालन किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। हमारा संविधान, जो अल्पसंख्यकों को धार्मिक मामलों में पूर्ण स्वतंत्रता का वादा करता है, उसने हिन्दू पूजा स्थलों को यह अधिकार नहीं दिया है। छद्म-धर्मनिरपेक्षता के परिणामस्वरूप हमारे मन्दिरों पर गैर-हिन्दुओं का शासन हो गया है और इसने ज़बरदस्त ईशनिन्दा और अपवित्र कृत्यों को जन्म दिया है। शङ्कराचार्य पीठ हिन्दुओं के साथ होने वाले इस घोर छल और भेदभाव का कड़ा विरोध करती है और मांग करती है कि हिन्दू समाज को बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप या नियन्त्रण के अपने सभी मंदिरों की सुरक्षा, प्रशासन और सञ्चालन की शक्ति वापस दी जाए। कम से कम मन्दिर का धार्मिक प्रबन्धन तो किसी दशा में धार्मिकों के ही हाथ में रहने चाहिए।
*मन्दिरों का प्रबन्धन धर्माचार्यों के हाथ में दिये जायें*
हम तिरुमला लड्डू काण्ड में दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की भी मांग करते हैं और मानते हैं कि हिंदुओं को छल पूर्वक निषिद्ध गोमांस भक्षण करवा कर उनको धर्मच्युत कर उनके परलोक को बिगाड़ने का विधर्मियों के एक बहुत बड़े अन्तर्राष्ट्रीय दुश्चक्र का यह ज्वलंत उदाहरण है। यह हिन्दुओं के धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार का सरकारी तन्त्र की मिलीभगत से हनन का घोर निन्दनीय अपकृत्य है। यह हिन्दू धर्म पर हमला है और प्रमाण है कि जेहादियों ने अब अनैतिक छद्मयुद्ध छेड़ दिया है जिससे बचने का एक मात्र उपाय यही है कि सरकार द्वारा सभी हिन्दू मन्दिरों का प्रबन्धन हिंदुओं के कम से कम ५०० वर्ष प्राचीन प्रामाणिक पारंपरिक हिन्दू धार्मिक संस्थानों के आचार्यों के पर्यवेक्षण में दे दिया जाय।
*शङ्कराचार्य सहित देश के धर्माचार्य न्यायालय जा सकते हैं*
हम आदि शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित चारों शङ्कराचार्य परस्पर परामर्श कर धर्मरक्षा हेतु व्यापक अभियान की रूप रेखा तैयार करेंगे। हम शृंगेरी और द्वारका शङ्कराचार्यों के साथ अपने विधि विशेषज्ञों से परामर्श ले रहे हैं। सम्यक् विधि परामर्श के पश्चात् हम हिन्दुओं के मौलिक धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायालयों में भी जाएँगे। षड्यन्त्र को सामने लाने के लिए चन्द्रबाबू नायडू का अभिनन्दन हिन्दुओं के साथ हो रहे इतने बडे षड्यन्त्र का पर्दाफ़ाश करने और हो रही अनीति को रोकने के लिये हम आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमन्त्री चन्द्र बाबू नायडू का अभिनन्दन करते हैं और आशा करते हैं कि हिन्दू समाज के साथ इतना बड़ा धोखा करने वालों के विरुध्द हिन्दू समाज की लड़ाई में भी उनका साथ मिलेगा।
*शीघ्र ही प्रायश्चित्त की हम करेंगे घोषणा*
बहुत से हिन्दू हमसे सम्पर्क कर रहे हैं यह जानने के लिये कि हमने भी उस दौरान तिरुपति लड्डू खाये हैं तो क्या हम भ्रष्ट हो गये? यदि हाँ तो प्रायश्चित्त क्या है? हम सूचित करना चाहेंगे कि धोखे से या ज़बर्दस्ती से कराये गये कार्य धर्म की दृष्टि से न किये के बराबर होते हैं। तथापि भावशोधन के लिये शास्त्रानुकूल प्रायश्चित्त भी हम धर्मशास्त्रियों से परामर्श के बाद घोषित करेंगे।
बदरीनाथ मन्दिर भी जा रहा तिरुपति की राह
जिस तरह तिरुपति मन्दिर सरकारी तन्त्र में फँसकर आज इतने बडे हिन्दू विरोधी कार्य के लिये चर्चा में है ठीक उसी तर्ज़ पर बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति भी आगे बढ़ रही है। समिति ने बदरीनाथ भगवान् का भोग प्रसाद बनाने और पूजा आदि धार्मिक कृत्यों को सँभालने के लिये हज़ारों वर्षों से आदि शङ्कराचार्य द्वारा नियुक्त डिमरी समुदाय के पवित्र कुल को परे धकेलते हुये सीधी भर्ती का नियम पारित किया है जिससे यह भय उत्पन्न हो गया है कि जाने कौन नियुक्त होकर जाने क्या बनाने, भोग लगाने और प्रसाद बँटवाने लग जायेगा। आश्चर्य नहीं कि थूककर या मूत्रकर वाला भी कभी नियुक्त हो जाये! हम इस वक्तव्य के माध्यम से बदरीनाथ केदार नाथ मंदिर समिति को भी इस आशय के अपने प्रस्ताव को वापस लेने का अनुरोध कर रहे हैं जिसके विरोध में इस समय वहाँ आन्दोलन भी चल रहा है।
गौ प्रतिष्ठा आन्दोलन सही
घटना के संज्ञान में आने से हमारी परसों अयोध्या से आरम्भ होकर 36 दिनों की 36 प्रदेशों की गोप्रतिष्ठा ध्वजस्थापना भारत यात्रा का औचित्य भी सिद्ध हुआ है कि यदि गायें सुरक्षित होंगी तो हमें घी मिलेगा और मारी जायेंगी तो चर्बी मिलेगी।