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India Speaks Daily > Blog > समाचार > मुद्दा > योगगुरु रामदेव और ममता बनर्जी की ‘सादगीपूर्ण’ जुगलबंदी का सच!
मुद्दा

योगगुरु रामदेव और ममता बनर्जी की ‘सादगीपूर्ण’ जुगलबंदी का सच!

Vikash Preetam
Last updated: 2016/12/09 at 9:25 AM
By Vikash Preetam 453 Views 8 Min Read
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8 Min Read
India Speaks Daily - ISD News
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विकास प्रीतम। भारतीय संस्कृति और उसके मूल में ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के महत्व को रेखांकित किया गया है। जहाँ एक स्त्री अथवा पुरुष से आडम्बर रहित और विचारवान जीवन जीने की अपेक्षा की जाती है। ऐसा जीवन जहाँ हमारा व्यवहार यथार्थ के निकट तथा मानवता के हित में हो ताकि हम मानव जीवन के उद्देश्यों से भटकें नहीं,ताकि किसी वैभव का बोलबाला न हो और न ही कोई गरीबी किसी की कुंठा का सबब बने। यह एक आचरण है जिसे अंत:करण से निर्वाह किया जाता है। यह छद्म नहीं हो सकता, बनावटी और किन्हीं स्वार्थों की पूर्ति के लिए भी नहीं हो सकता और अगर कोई ऐसा करता भी है तो वह न केवल एक पवित्र विचार का अपराधी है बल्कि समाज का भी अपराधी है। और जब हम इस कसौटी पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी की ‘सादगी’ जिसकी वजह से योगगुरु बाबा रामदेव ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लायक बताया है, को कसते हैं तब वह सादगी छद्म और अस्वाभाविक ही प्रतीत होती है।

बाबा रामदेव कहते हैं कि ममता बनर्जी चूँकि 200 रूपये की साड़ी पहनती हैं और साधारण हवाई चप्पलें इसलिए वे सादगी की प्रतिमूर्ति हैं और उनकी यही आला सादगी उनको प्रधानमंत्री जैसे पद की अर्हता प्रदान करवा देती है । जबकि बाबा रामदेव के ममता बनर्जी के विषय में आंकलन, विश्लेषण और राजनीतिक समझ के परे कुछ सवाल खड़े होते हैं जिनका जवाब आज की राजनीतिक परिस्थितियों में खोजा जाना आवश्यक है। किसी भी राजनीति का केंद्र उसकी विचारधारा है और इस विचारधारा के पथ पर आगे बढ़कर अधिकतम सत्ता की प्राप्ति उस राजनीति का लक्ष्य होता है ताकि उसे हासिल कर अपने विचारों और नीति-रीतियों का प्रचार प्रसार किया जा सके, अपनी विचारधारा का सत्ता के माध्यम से अनुपालन करवा कर उसे लोकप्रिय भी बनाया जा सके।

इस उद्देश्य के लिए अमुक दल को जनता द्वारा निर्वाचन प्रक्रिया से गुजरना होता है जहाँ सफल दल और उसके नेता को सत्ता की बागडोर प्राप्त होती है। व्यवस्था जनता द्वारा चुने गए उसके प्रतिनिधियों को अपने कर्तव्यों के श्रेष्ठ निर्वहन के लिए यथाश्रेष्ठ सुविधाएँ मसलन आवास, वाहन, सहायक और अच्छा रहन सहन प्रदान करती है। जनता भी चाहती है कि उसका नेता अपने ओहदे पर ज्यादा से ज्यादा जनहित में और ईमानदारी से काम करे। इस निमित्त किसी मंत्री या मुख्यमंत्री की अच्छी पोशाक शायद ही किसी को खटकती होगी जबकि वह अपने काम को निष्ठा और लगन के साथ अंजाम दे रहा हो। पदों की मर्यादा की भी दरकार रहती है कि उच्च पदों पर विराजमान लोग अपने पद की गरिमानुसार न केवल आचरण करें बल्कि दिखें भी।

लेकिन जो लोग प्रत्यक्ष रूप से सत्ता की दौड़ में हैं अथवा सत्ता के शीर्ष पर हैं जब वो अपनी सादगी बल्कि उससे भी बढ़कर दरिद्रता को प्रमोट करते हैं तो उनके इरादों पर शक होना जायज है। अगर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पांच हज़ार के साड़ी पहनें या उतने ही अच्छे सैंडिल या चप्पलें पहनने लगें तो किसे आपत्ति होगी? क्या उनके ऐसा करने से जनता में विद्रोह हो जाएगा या राज्य की अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी? हम सब जानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होगा बावजूद इसके जो लोग सत्ता के शिखर पर बैठकर सादगी के लिए दरिद्र दिखने का सहारा लेते हैं वे असल में जनता की आखों में धूल झोंक रहे हैं। ऐसे लोगों की मंशा होती है कि जनता का सारा ध्यान केवल उनकी इस तथाकथित सादगी और उनकी जयजयकार पर रहे ताकि उनसे किसी जवाबदेही की उम्मीद न रहे।

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इसलिए चाहे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी हों या दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल। ये लोग अपनी सादगी, सस्ती साड़ी, चप्पलों, सैंडिल और मफलर के जरिये न केवल निकृष्ट किस्म की राजनीति को अंजाम दे रहे हैं बल्कि उसकी आड़ में अपने ओछे राजनीतिक मकसद भी साध रहे हैं। ऐसी सादगी भला किस काम की जिसमें एक मुख्यमंत्री अपने देश की सेना पर उसकी सरकार गिराने का घिनौना आरोप लगाये! क्या उनकी इस सादगी भरी राजनीति का यही हासिल है कि पश्चिम बंगाल आज अवैध हथियारों और नकली नोटों का गढ़ बन गया है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में भारत में 80 प्रतिशत नकली नोट पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिले मालदा के जरिये देश में पहुंचे।

सादगी पसंद ममता बनर्जी के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल अवैध घुसपैठ का भी अड्डा बन गया है। किसी ज़माने में वे स्वयं इन अवैध घुसपैठियों का खूब विरोध करतीं थीं जबकि ये लोग माकपा का राजनीतिक हथियार हुआ करते थे लेकिन आज जब ये घुसपैठिये वही भूमिका ममता बनर्जी की सत्ता के लिए निभा रहे हैं तो उन्हें यह घुसपैठ भी अनुचित नहीं लगती। सादगी के साथ सरलता और न्यायप्रियता का भी गुण आता है लेकिन ममता बनर्जी के साथ ऐसा नहीं है। उनकी इस सादगी में सेकुलरिस्म और तुष्टिकरण की प्रचुर मिलावट है इसलिए उन्होंने बीते दुर्गा पूजा के अवसर पर मुहर्रम के कारण दुर्गा विसर्जन पर रोक लगा दी थी। जिसे बाद में कलकत्ता न्यायालय ने हटाया और राज्य सरकार के इस फैसले को मनमाना तथा खतरनाक करार दिया।

अपनी सादगी पसंद जिन्दगी के माध्यम से गरीबों के साथ हमदर्दी का दिखावा करने वाली ममता बनर्जी की पार्टी के लोग शारदा चिट फंड के जरिये गरीब और मजदूर की मेहनत के हजारों करोड़ रुपयों डकार गए। जिसकी सीबीआई जांच चल रही है लेकिन उनके सिपहसालार अभी भी सही सलामत हैं। ममता बनर्जी के शासन में उनकी इस सादगी के परदे के पीछे के कारनामों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। जिसमें एक यह भी है कि वे पश्चिम बंगाल में अपने पूर्ववर्ती शासक वामपंथियों की तर्ज पर आंतक और हिंसक कैडर की दम पर अपनी सत्ता चला रही हैं। कल तक जो उपद्रवी वामपंथियों की पालकी ढोते थे आज दीदी के पाले में महफूज़ खड़े हैं।

ऐसे में बाबा रामदेव की ममता बनर्जी के ऊपर यह सदाशयता और तारीफ़ चौंकाती है। वे राजनीति के मर्म को समझते हैं और इस नाते वे सुश्री बनर्जी के असल व्यक्तित्व और सोच से नावाकिफ होंगे यकीन नहीं होता। बाबा रामदेव का योग और स्वदेशी उत्पादों के प्रचार प्रसार में योगदान अतुलनीय है। वे भारतीय संस्कृति और विचारों के प्रबल समर्थक माने जाते हैं। उनके बयानों और आह्वानों का अपना एक महत्व और विश्वसनीयता है । जिसे अगर वे ममता बनर्जी जैसी नेत्री की तारीफ़ में खर्च करेंगे तो वाकई दुर्भाग्यपूर्ण होगा जबकि वे स्वयं सादगी के एक और ब्रांड एम्बेसडर अरविन्द केजरीवाल के भुक्त भोगी हैं।

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Vikash Preetam December 7, 2016
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