श्वेता पुरोहित। श्रीकृष्ण-बलराम अब चलना-फिरना सीख चुके थे। नन्दबाबा के आँगन से बाहर निकलकर अब वे गोकुल की गलियों में घूमने लगे थे। ग्वाल-बालों के साथ खेलना-कूदना और ऊधम मचाना उनकी दिनचर्या बन गयी थी। भगवान् श्रीकृष्ण की शैतानियाँ गोकुल वासियों के मनोरंजन का साधन बनी हुई थीं। प्रभु माखन-प्रेमी थे। घर में माखन की कमी थी भी नहीं; किंतु प्रभु को तो अपनी लीलाओं से भक्तजनों को सुख पहुँचाना ही चिर इष्ट रहा है। अतः वे माखन-चोर बन बैठे। साथी ग्वाल- बालों को लेकर वे किसी भी गोपके घर जा धमकते। खुद माखन खाते, साथियों को खिलाते और बचे हुए माखन को इधर-उधर बिखेर भी देते।
गोपियाँ मन-ही-मन यही चाहती भी थीं कि नटखट श्याम किसी भी बहाने उनके यहाँ आया करें; किंतु दिखावे के लिये वे उनको डाँटतीं-धमकातीं तथा उलाहना लेकर मैया यशोदा के पास भी पहुँच जातीं। यह बात अलग थी कि जब कभी मैया यशोदा श्रीकृष्ण को दण्ड देनेके लिये उद्यत होतीं तो तत्काल वे उनका निहोरा करने लगतीं। वस्तुतः मनसे तो वे श्यामसुन्दर की भक्त ही थीं।
एक दिन नटखट श्रीकृष्ण की शरारतों से तंग आकर माता यशोदा ने उन्हें ऊखल में रस्सी लेकर बाँध दिया। प्रभुको तो इसी बहाने किसी का उद्धार करना था। ऊखल को आड़ा करके उन्होंने गिरा लिया और उसे घसीटते हुए उधर चले जिधर अर्जुन के दो वृक्ष आपस में सटे खड़े थे। प्रभुने स्वयं उन वृक्षों के बीच से निकलकर जैसे ही ऊखल को खींचा, दोनों वृक्ष अरराकर धरती पर आ गिरे। वस्तुतः वे दोनों यक्षराज कुबेर के पुत्र नलकूबर और मणिग्रीव थे जो देवर्षि नारदके शापवश वृक्ष बन गये थे। प्रभुकी स्तुति कर के दोनों अपने लोक चले गये। माता यशोदा तो यह दृश्य देखकर स्तब्ध रह गयीं। उन्होंने दौड़कर अपने लाल को गले लगा लिया।
हाथी घोड़ा पाल्की, जय कन्हैयालाल की 🙏