अर्चना कुमारी। मुसलमानों की खतना प्रथा को बंद करने की फरियाद की गई है। वैसे भी खतना प्रथा को लेकर लेकर आए दिन विवाद होता रहता है। इसको लेकर कई बार सवाल भी उठ चुके हैं लेकिन प्रथा जारी है।
फिलहाल खतना को प्रतिबंध किए जाने को लेकर केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई , जिसमें मांग की गई है कि बच्चों का गैर-चिकित्सीय खतना कराने को अवैध और गैर जमानती अपराध घोषित किया जाए। याचिका ‘नॉन-रिलीजस सिटिजंस’ नामक संगठन की ओर से दायर की गई ।
इसमें कोर्ट से आग्रह किया गया है कि खतना की प्रथा को रोकने के लिए केंद्र सरकार को कानून बनाने पर विचार करने का निर्देश दिया जाए। कहा गया कि खतना करना बच्चों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। खतना की वजह से कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। यह प्रथा बच्चे पर उनके माता-पिता द्वारा थोपा गया एकतरफा फैसला है।
इसमें बच्चों की मर्जी शामिल नहीं होती है, जो कि अंतरराष्ट्रीय संधियों के प्रावधानों का उल्लंघन है। दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि खतना की प्रथा क्रूर, अमानवीय और बर्बर है, जो कि संविधान में निहित बच्चों के मौलिक अधिकारों, जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में दावा किया गया है कि खतना की वजह से कई नवजातों की मौत की घटनाएं हुई हैं।
गौरतलब है कि खतना मुसलमानों में एक मजहबी प्रथा होती है, जिसमें लड़का पैदा होने के कुछ समय बाद उसके लिंग की आगे की चमड़ी को काटकर निकाल दिया जाता है। इस्लाम में इसे सुन्नत यानी पैगंबर का तरीका बताया गया है। वहीं, मुस्लिम जानकारों का कहना है कि खतना करने से जनन अंग में साफ सफाई रहती है और वहां पेशाब या वीर्य नहीं फंसता, जिसकी वजह से दूसरी बीमारियां नहीं होती हैं।