पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में बिजली की कमी कई दशकों से एक बड़ी समस्या बनी हुई है। बिजली के बिना किसी प्रदेश का विकास असम्भव है। ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ उत्तराखंड समेत देश के उन क्षेत्रों के हालातों को प्रस्तुत करती है, जहाँ बिजली के भारी भरकम बिल यमराज का निमंत्रण लेकर आते हैं। युवा उद्योगपति बिल न चुका पाने के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। फिल्म में कोर्ट रूम ड्रामे के दौरान शाहिद कपूर का वन लाइनर संवाद सम्पूर्ण फिल्म को परिभाषित कर देता है। वह कहता है ‘फ्यूज बल्ब से क्रांति नहीं लाई जा सकती मी लार्ड’।
सामाजिक मुद्दे पर बनाई गई निर्देशक श्री नारायण सिंह की पिछली फिल्म ‘टॉयलेट: एक प्रेमकथा’ देशभर में खूब सराही गई। ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ में भी एक गंभीर मुद्दा पूरी संजीदगी के साथ उठाया गया है। चौवन लाख का बिजली बिल अदा न कर पाने के कारण एक युवा उद्यमी सुंदर मोहन त्रिपाठी मौत की राह चुन लेता है। उसकी मौत पर भी बिजली कम्पनी अपना बकाया छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। सुंदर का वकील दोस्त सुशील कुमार पंत मामले को अदालत में लेकर जाता है। अदालत में रोमांचक बहस के बाद फिल्म एक सुखद सौंधे क्लाइमैक्स के साथ समाप्त होती है।
प्रतिभावान शाहिद कपूर के लिए ये फिल्म ऐसा कम बेक लेकर आई है, जिसका उन्हें अरसे से इंतज़ार था। सुशील कुमार पंत का ये किरदार उनके कॅरियर में हमेशा याद रखा जाएगा। कहने में गुरेज नहीं है कि शाहिद ने मुख्य धारा के सिनेमा में अपने कदम मजबूती से जमा लिए हैं। सिंगल थियेटर के साथ मल्टीप्लेक्स दर्शक ने उन्हें आज समान रूप से स्वीकार किया है। एक प्रेमी, दुखी दोस्त और आक्रामक वकील के विभिन्न शेड्स में उन्होंने खूब अदाकारी दिखाई है। श्रद्धा कपूर इस वक्त सफलता के रथ पर सवार हैं। उनकी पिछली फिल्म ‘स्त्री’ ब्लॉकबस्टर हो चुकी है। ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ में उन्हें बराबरी का रोल मिला है। उनकी अदायगी फिल्म दर फिल्म निखरती जा रही है। उत्तराखंडी युवती की भूमिका निभाते हुए वे बहुत सहज दिखाई देती हैं। दिव्येन्दु शर्मा, यामी गौतम ने भी अपने किरदारों को इज़्ज़त बख्शी है।
आज तक किसी फिल्म में उत्तराखंड को इतने करीब से नहीं दिखाया गया होगा। वहां की संस्कृति, वहां की गलियां और वहां की मीठी बोली दर्शक को लुभाती है। फिल्म न केवल बिजली समस्या को सामने रखती है बल्कि गहराई से उत्तराखंड के जन-जीवन की झांकी सुंदरता के साथ प्रस्तुत करती है। पहले दिन की रिपोर्ट के मुताबिक़ उत्तराखंड में फिल्म को जोरदार रिस्पॉन्स मिल रहा है। ख़ास तौर से टिहरी में इसके शो हाउसफुल जा रहे हैं।
एक गंभीर कहानी को श्री नारायण सिंह ने अपने निर्देशकीय कौशल से मनोरंजक बना दिया है। वे जानते हैं कि गंभीर विषय से जुड़े सार्थक सन्देश को दर्शक तक पहुँचाने के लिए मनोरंजन की खुराक आवश्यक है। एक संजीदा कहानी में भी दर्शकों को हंसाने के कोने उन्होंने खोज निकाले। कोर्ट में फैसला देने आई जज क्रिकेट प्रेमी हैं। आते ही कहती है ‘सलामी बल्लेबाज़’ कौन है यानि कौन पहले पैरवी शुरू करेगा। चेहरे पर मुस्कान लाने वाले ये छोटे-छोटे दृश्य ही इस फिल्म की बड़ी सफलता का कारण बनेंगे।
कोर्ट के घटनाक्रम को दिलचस्प बनाने के लिए निर्देशक ने वास्तविक रोचक तथ्यों का समावेश किया है। जैसे बिजली कम्पनी का मालिक बताता है कि मीटर में जलने वाली नन्ही सी हरी लाइट के लिए उपभोक्ता रोजाना पांच पैसा अपनी जेब से भरता है और यही राशि जुड़कर 73 करोड़ हो जाती है। श्री नारायण सिंह बिजली कंपनियों की खुली लूट और सरकारी घालमेल पर सशक्त प्रहार करते हैं। पिछली फिल्म हिट होने के बाद उन्होंने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया कि एक आम मनोरंजक फिल्म बनाकर खुद को बॉक्स ऑफिस पर सुरक्षित कर ले। उन्होंने एक गंभीर सामाजिक विषय को उठाकर जोखिम लिया है।
दर्शकों की प्रतिक्रियाओं और देश के नामचीन फिल्म समीक्षकों की राय का आपसी तालमेल देखना जरुरी होगा। आज देश के मुख्य मीडिया संस्थानों के ख्यात फिल्म समीक्षकों ने ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ को बोरिंग फिल्म करार दिया है। इस बात से मुझे एक साल पहले की बात याद आती है। इन्ही निर्देशक की पहली फिल्म ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ प्रदर्शित हुई थी। तब भी इन समीक्षकों ने उस उत्कृष्ट फिल्म को सरकारी विज्ञापन कहकर नकार दिया था। इन्हीं लेखकों की कलम ने ‘मनमर्जियां’ को बेहतरीन फिल्म बताया था जो अपनी लागत तक वसूल नहीं सकी। आज पहले शो में गिनती के दर्शक मौजूद थे लेकिन उनकी प्रतिक्रिया बता रही है कि आने वाले दिनों में फिल्म को तगड़ा रिस्पॉन्स मिलेगा।
यदि आप ‘स्माल टाउन’ फिल्मों के शौक़ीन हैं। यदि आप गंभीर विषय को मनोरंजन के साथ देखना चाहते हैं। यदि आप उत्तराखंड की वादियों में प्रेम की छुअन महसूस करना चाहते हैं। यदि आप केवल बड़े सितारों की फ़िल्में देखने के शौक़ीन नहीं है तो ये फिल्म आपके लिए ही बनाई गई है। इसकी महक अनुभव करने के लिए धैर्य के साथ फिल्म देखनी होगी। ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ का समग्र प्रभाव महसूस करना होगा, तब आप आँखों से ढलके एक मासूम मोती को अपने गाल पर महसूस कर सकेंगे।
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