संदीप देव :-
मंदिर भगवान का घर और भक्तों का संबल होता है। इसीलिए यहां की व्यवस्था शुचिता संपन्न और ज्ञानवान ब्राह्मणों के हाथ में होता था। स्वतंत्रता के बाद सरकारों ने मंदिर पर कब्जा कर लिया और देखो हिंदुओं को भगवान के प्रसाद में खाने के लिए बीफ परोसा जाने लगा!
मंदिर कोई प्रयोग की वस्तु नहीं, लेकिन भारत के नेताओं ने अब्राहमिकों की गुलामी करते हुए ब्राह्मणों और मंदीरों के विरुद्ध इतना घृणा फैलाया कि आज ब्राह्मणों के बच्चे भी पुरोहिताई छोड़कर सुलभ शौचालय में ‘सिक्का गिनने’ की नौकरी कर रहे हैं! यही अब्राहमिक चाहते थे, यही हुआ।
आज हिंदू समाज भगवान प्रसाद में बीफ मिलने की खबर से जरा भी दुखी नहीं है! वह ‘इससे मुझे क्या?’ कि मानसिकता लिए किसी न किसी पार्टी, नेता की गुलामी में बैल की तरह जुत रहा है! खाया-पीया – अघाया हिंदू अपने लिए पूरी दुनिया में जब एक देश तक बचा नहीं पाया तो वह धर्म क्या बचाएगा?