अर्चना कुमारी। करीब ढाई साल पहले देश की राजधानी में भीषण दंगे हुए थे । हिंदुओं को टारगेट करते हुए मुस्लिमों ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में सुनियोजित साजिश के तहत हिंसा का नंगा नाच किया था । नागरिक संहिता कानून के विरोध में पूरी प्लानिंग के साथ हिंसा की साजिश रची गई , इसके लिए कई दौर बैठकों का चला और दंगे भड़काने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप तक बनाए गए थे।
इसका खुलासा पुलिस की जांच में भी हुआ है जबकि यह दीगर बात है कि साल 2020 फरवरी में, दिल्ली में भड़के हिंसक दंगों में 53 लोगों की जान गई थी। इनमें से 40 मुसलमान और 13 हिंदू समाज से थे। मुस्लिमों ने सड़क जाम करके दंगा शुरू किया और इल्जाम भाजपा नेता कपिल मिश्रा पर मढ़ा गया लेकिन जब आरोपों की पुष्टि नहीं हुई तब कथित सेकुलर लोगों ने केंद्र सरकार और पुलिस पर दबाव बनाकर अपनी जान बचा कर खुद को महफूज रखने वाले हिंदुओं को सजा दिलाने और उन्हें जेल में सड़ाने का खेल शुरू किया।
इसी के तहत दंगे में मारे गए दिलबर नेगी के हत्यारों सहित सफूरा जरगर जैसों को जमानत दिलाई गई। ताहिर हुसैन, खालिद सैफी और आसिफ इकबाल तन्हा जैसे दंगाइयों के रिहाई के लिए महंगे वकील रखे गए। इस दौरान कथित सेकुलर वर्ग मीडिया में उनके लिए सहानुभूति तलाशता हुआ केंद्र सरकार और पुलिस को भला बुरा कहना शुरू किया ताकि दंगे में शामिल रहे दंगाई मुस्लिमों को क्लीन चिट दी जा सके। सूत्र बताते हैं कि देश के विभाजन के समय से जो भारत में दंगे का प्रादुर्भाव शुरू हुआ वह दिल्ली दंगे तक जारी है और आज भी हिंदू ही अपना मकान तथा कारोबार छोड़कर इलाके से पलायन हो जाने को मजबूर है। यही वजह है कि मुजफ्फरनगर दंगे से लेकर दिल्ली दंगा तक हिंदुओं के मकान पर ही सिर्फ बिक्री का बोर्ड लगा है।
दिल्ली दंगे के दौरान अंकित शर्मा ,दिलबर नेगी तथा हवलदार रतनलाल जैसे लोगों ने खुद को महफूज रखने के लिए जब दंगाइयों से लोहा लेना चाहा तब उन्हें निर्ममता पूर्वक मौत के आगोश में सुला दिया गया। रतनलाल की विधवा पूनम बताती है कि वह किस तरह दंगे के पीड़ा को झेली है और आज तक वह इस घटना को नहीं भूल पाई है। वह बताती है कि अब दिल्ली में नहीं रहती हैं. जिस घर को उन्होंने और पति रतनलाल ने एक-एक पाई जोड़कर बनाया था, अब वो घर बंद पड़ा है ।
उसका कहना था कि दिल्ली में वहाँ अकेले सब कुछ संभाल पाना बहुत मुश्किल हो रहा था। मेरे तीन छोटे बच्चे हैं और उन्हें अकेले संभाल पाना नहीं हो पा रहा था। यह तो एक हिंदू विधवा का दर्द है इसी तरह दिलबर नेगी और अंकित शर्मा जैसे अन्य हिंदू जो इस दंगे में मारे गए थे उनके परिवार जनों का भी कुछ ऐसा ही हाल है जो अब तक दंगे को लेकर डरे हुए हैं। जानकारों का कहना है कि दिल्ली दंगे में हिंदुओं ने ना केवल जान गवाई बल्कि उन्हें अपने संपत्तियों से भी हाथ धोना पड़ा था लेकिन दिल्ली सरकार मुस्लिमों के लिए तो पर्याप्त मुआवजा की व्यवस्था की लेकिन हिंदुओं को सिर्फ लॉलीपॉप दिखाए गए।
हिंदू दंगा पीड़ित बताते हैं कि इस घटना के बाद भी उन लोगों को ना तो अब तक पर्याप्त सुरक्षा मिल पाई है और ना ही सरकार से कोई खास मदद, जिसके चलते वह पलायन को मजबूर है। सवाल तब उठता है जब लोग कहते हैं कि दंगे के दौरान हिंदू घर से नहीं निकलते, जबकि हिंदू जब निकलते हैं तो लड़ाई का रुख मोड़ देते हैं, यही वजह है कि दिल्ली दंगे में हिंदू कम मरे लेकिन ऐसे लोगों को दर्द ज्यादा तब होती है जब उनकी ही वोट से बनी तथाकथित हिंदूवादी सरकार उन्हें ही कुचल देती है और दूसरे समुदाय के बचाव में खुलकर उतर जाती है। गुजरात दंगे में करीब 275 हिंदू केवल पुलिस की गोली से मरे थे और जेल में सड़ाया भी हिंदुओं को ही गया था और कुछ इसी तरह का बर्ताव देश की राजधानी में प्रताड़ित दंगा पीड़ित हिंदू समुदाय का भी है।