भागवत जी ने अपने कल के भाषण में साफ कहा है, ‘हम अपने प्रकृति के विरुद्ध राम मंदिर आंदोलन में शामिल हुए।’ यह सच है। यदि श्रद्धेय अशोक सिंघल जी का दबाव नहीं होता तो संघ-भाजपा मथुरा और काशी की ही तरह राम मंदिर से भी दूरी बनाकर चलती। स्वतंत्रता के बाद राम मंदिर आंदोलन गोरक्षपीठ ने संभाल रखा था। मूर्तियों के प्रकटीकरण (महंत दिग्विजयनाथ) से लेकर सभी संतों को एक साथ लाने (महंत अवेद्यनाथ) का सारा जतन गोरक्षपीठ ने किया था, जिसके महंत अभी योगी आदित्यनाथ हैं।
महंत दिग्विजय नाथ और महंत अवेद्यनाथ को जनसंघ-भाजपा पर कभी भरोसा नहीं था, यह उनके लेखन और वक्तव्य से स्पष्ट है। यही कारण है कि दोनों हमेशा हिंदू महासभा से चुनाव लड़े। एक बार भाजपा गठबंधन ने राम मंदिर के नाम पर चुनाव लड़ रहे महंत अवेद्यनाथ के विरुद्ध प्रत्याशी तक उतार दिया था। मेरी पुस्तक ‘राजयोगी’ में इसका संपूर्ण संदर्भ मैंने दिया है।
यह माननीय अशोक सिंघल जी थे, जिन्होंने एक सेतु का काम किया, जिससे न चाहते हुए भी संघ और भाजपा इस आंदोलन से जुड़ी और आडवाणी जी ‘राजनीतिक लाभ’ के लिए रथ लेकर भारत भ्रमण पर निकल पड़े! ‘राजनीति लाभ’ इसलिए कि बाद में सेक्यूलर थॉट के तहत मंदिर-मस्जिद को एक ही जगह बनवाने का प्रयास अटल-आडवाणी की सरकार ने भी किया था, जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली थी।
लिब्राहन आयोग के समक्ष सबकी गवाही हर हिंदुओं को बढ़नी चाहिए, तब पता चलेगा कि बाबरी विध्वंस के पीछे महंत अवेद्यनाथ का दिमाग था, जबकि ‘संघ परिवार’ के नेता उस ध्वंश को कलंक बता कर अपना पल्ला झाड़ रहे थे। तो भागवत जी जो आज कह रहे हैं, वह नयी बात नहीं है कि ‘संघ परिवार’ अपनी प्रकृति के विरुद्ध राम मंदिर आंदोलन में सम्मिलित हुआ था।’
संघ भाजपा को समझने के लिए महंत दिग्विजय नाथ जी के अलावा आप करपात्री जी महाराज की संघ पर लिखी पुस्तक पढ़िए, फिर बार-बार होने वाला यह क्षणिक आक्रोश समाप्त हो जाएगा। फिर आप समझ जाएंगे कि वर्तमान में मंदिर, मूर्तियों और मुसलमानों को लेकर जो कहा और किया जा रहा है, उसमें भागवत जी या मोदी जी का दोष नहीं, यह उनकी मातृसंस्था की मूल विचारधारा है!
गुरु गोलवलकर जी की जीवनी लिखने के दौरान मैंने काफी शोध किया था और यह पाया कि संघ ने अपना सेक्यूलर चेहरा स्थापित करने के लिए गुरुजी की लिखी पुस्तक- we Our Nationhood Defined’ तक को गायब किया, फिर मंदिर-मूर्ति के प्रति उनकी अवधारणा तो आरंभ से ही स्पष्ट है- एक मंदिर बस भारत माता, एक गुरु बस भगवा ध्वज! तो संघ की प्रकृति वही है जो भागवत जी कह रहे हैं। उसमें कुछ भी नया नहीं है!
बहुत सुंदर लेख।
सँघ की विचारधारा को स्पष्ट करता हुआ।
साधुवाद