पुस्तक का नाम: भारतवर्ष के आक्रांताओं की कलंक कथाएं
लेखक: मेजर (डॉ.) परशुराम गुप्त
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ: 176
मूल्य : रू. 250 (प्रिंट)
साहित्य का मनुष्य जीवन में बड़ा महत्व है। यह बात अब जाकर भारत को भारत की दृष्टि से देखने वाले लोगों को समझ आने लगी है। परिणामस्वरूप आजकल भारत केंद्रित साहित्य प्रचुर मात्रा में प्रकाशित होने लगा है। ये बहुत अच्छी बात है, नहीं तो भारत विरोधियों ने भारत के इतिहास को विकृत करके लिखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हाल ही में एक पुस्तक हाथ लगी जिसका शीर्षक है ‘भारतवर्ष के आक्रांताओं की कलंक कथाएं’। इस पुस्तक के लेखक है मेजर (डॉ.) परशुराम गुप्त और प्रकाशक हैं भारत के सुप्रसिद्ध प्रभात प्रकाशन।
17 अध्यायों वाली इस पुस्तक में 176 पृष्ठ हैं। इस पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ भारत पर आक्रमण करने वाली आक्रांताओं के कुकर्मों का काला चिट्ठा खोलता है।
जैसा कि इस पुस्तक के शीर्षक से पता चल रहा है इसमें भारत पर आक्रमण करने वाली आक्रांताओं की कलंक भरी कथाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। यह पुस्तक सिकंदर जैसे ‘चूहे’ से लेकर बॉलीवुड और वामपंथियों के प्रिय तैमूर और औरंगजेब की कब्र अच्छे से खोदती है। इसमें मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, बाबर और ईस्ट इंडिया कम्पनी के कुकर्मों पर प्रकाश डालने का उत्कृष्ट प्रयास भी किया गया है।
पुस्तक का प्रथम अध्याय अब्राहमिक आक्रांता सिकंदर पर है। इस अध्याय की शुरुआत लेखक ने एक पंक्ति से की है जिसके शुरूआती भाग से मैं सहमत नहीं हूँ। वह पंक्ति है,”सोने की चिड़िया कहा जाने वाला भारतवर्ष……”। भारतवर्ष को सोने की चिड़िया क्यों कहा गया, इस प्रश्न का उत्तर जब मिल जाएगा तब लेखक और इस लेख के पाठक ये समझ जाएंगे कि मेरी असहमति का कारण क्या है। मैं एक हिंट देने के लिए एक प्रश्न पूछता हूँ,”भारत को सोने की चिड़िया ही क्यों कहा गया? सोने का शेर क्यों नहीं?
प्रथम अध्याय झूठे सिकंदर का ग्रेट जैसे लुटेरे के बारे में बताता है जिसमें उसकी भारत-विजय की योजना और भारत पर उसके आक्रमण के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डाला गया है। इसके साथ ही सिकन्दर का पुरु से युद्ध और झेलम के युद्ध का वर्णन भी है। अंत में सिकन्दर की सेना के वापस लौटने की इच्छा और 33 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु बताई गयी है। पुस्तक का दूसरा अध्याय मुहम्मद बिन कासिम, तीसरा अध्याय महमूद गजनवी, चौथा अध्याय सैयद सालार मसूद ‘गाजी’, पर है वहीँ पांचवा अध्याय भारत पर 17 बार आक्रमण करने वाले मुगल लुटेरे मुहम्मद गोरी पर है। इसके बाद कुतुबद्दीन ऐबक, अलाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद बिन तुगलक, चंगेज खां, बख्तियार खिलजी के कुकर्मों का चिट्ठा दिया गया है।
पुस्तक का ग्यारवां अध्याय है क्रूर आक्रांता तैमूर लंग पर। जिसको अपना आदर्श मानते हुए हुए उर्दूवुड (बॉलीबुड) के भांडों ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा है। मीडिया जिसके उठने-बैठने, खाने-पीने और न जाने किस किस गतिविधि पर छापता रहता है। इस मुगल लुटेरे तैमूर को लेकर लेखक ने जो लिखा है उस हेतु ये पंक्ति पढ़कर पाठक स्वयं समझ जायेगा कि वो कितना निर्दयी और दुष्ट था। वह पंक्ति है,”सम्भवतः किसी अन्य आक्रमणकारी ने भारत में न तो इतना क़त्लेआम किया था और न ही इतनी क्षति पहुंचाई थी, जितनी की उसने।” यह भारत देश में एक विडंबना है कि ऐसे दुष्ट आक्रांता पर लोग अपने बच्चों के नाम रखते हैं। और इससे भी अधिक दुःखद यह है कि लोग इनको स्टार मानते हैं और फॉलो करते हैं। वास्तव में ऐसे आक्रांता प्रेमियों का सार्वजनिक बहिष्कार होना चाहिए।
अगले अध्याय में आक्रांता फ़िरोज शाह तुग़लक़ जिसके नाम पर तुग़लकाबाद नामक स्थान भारत में है, लेखक ने विस्तारपूर्वक लिखा है। जिसका हल्का सा संकेत इस पंक्ति में है,”बंगाल में हार के बदले के लिए फिरोजशाह ने आदेश दिया कि असुरक्षित बंगाली हिंदुओं का अंग-भंग करके वध कर दिया जाए। अंग- भंग किए गए प्रत्येक हिंदू के ऊपर पुरस्कारस्वरूप एक चाँदी का टका दिया जाता था। हिंदू मृतकों के कटे अंगों की गिनती की गई, जो 1,80,000 थी। ….. “सुल्तान ने ज्वालामुखी मंदिर की मूर्तियों को तोड़ डाला तथा उसके टुकड़ों को वध की गई गऊवों के मांस में मिला दिया तथा इस मिश्रण को बड़ों में भरवाकर ब्राह्मणों की गरदनों में बंधवा दिया और प्रमुख मूर्ति को मदीना भेज दिया।” ऐसे आक्रांता का महिमंडन करने के लिए आज भी किसी जगह का नाम भारत में होना शर्मनाक है।
पुस्तक के अगले दो अध्याय आक्रांताओं बाबर और औरंगजेब की कलंक कथाओं से भरे हुए हैं, जिन्हे पाठकों को बहुत ध्यान से पढ़ना चाहिए। ताकि भारत में आज भी रहने वाली बाबर और औरंगजेब की औलादों को मुंहतोड़ उत्तर दिया जा सके और भारत प्रेमियों के सामने इनको लेकर सत्य का अनावरण किया जा सके। पुस्तक के अगले तीन अध्याय नादिर शाह, अहमद शाह अब्दाली और ईस्ट इंडिया कम्पनी के कुकर्मों का काला चिट्ठा है।
कुल मिलकर 176 पृष्ठों वाली यह पुस्तक कम शब्दों में अधिक बताने का एक उत्कृष्ट प्रयास है। यह पुस्तक पाठक को मुस्लिम परस्तों और वामपंथी लेखकों के झूठे इतिहास के प्रपंच से दूर ले जायेगी। उनके झूठ का पर्दाफ़ाश करेगी। इसलिए यह पुस्तक हर भारत प्रेमी को पढ़नी चाहिए और सामर्थ्यानुसार इसका प्रचार करना चाहिए।
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