महापातकी सरकारें हैं , मंदिर पर कब्जा करती हैं ;
भरे हुये सब नर- पिशाच हैं , जिनसे सरकारें चलती हैं ।
हिंदू – धर्म का खून ये पीते , मजहब की विष्ठा खाते हैं ;
ऐसे ही ये गिद्ध बने हैं , राष्ट्र नोंचकर खाते हैं ।
मंदिर को कब्जाने वाले , अधम , राक्षस , दानव हैं ;
चरित्रहीनता के दास हैं सारे , कहीं नहीं ये मानव हैं ।
गंदी शिक्षा ये लेकर आये , झूठे इतिहास को पढ़कर आये ;
तनिक भी राष्ट्र से प्रेम नहीं है , गद्दारी में पलकर आये ।
धर्म – सनातन के कलंक है , पाखंडी मक्कार हैं ;
वामी , कामी , जिम्मी , सेक्युलर , ये पूरे गद्दार हैं ।
कुंभीपाक नर्क जायेंगें , जहां इन्हें जल जाना है ;
मर कर भी ये चैन न पायें , जीते जी थू-थू होना है ।
मंदिर को कब्जाने वाली , पूरी सरकार निकम्मी है ;
इनको सत्ता से उखाड़ फेंको , सब के सब ये जिम्मी हैं ।
पाखंडी हैं ऐसे नेता , हिंदू – धर्म के दुश्मन हैं ;
जगह-जगह मंदिर कब्जाते , कितना गंदा इनका मन है ?
अंतिम समय चल रहा इनका , अब न सत्ता पायेंगे ;
जागरूक हो रहा है हिंदू , अब न झांसे में आयेंगे ।
इनकी पार्टी न सुधरेगी , एक नया दल लाना है ;
परम – साहसी चरित्रवान ही , ऐसी सरकार बनाना है ।
तब हिंदू को न्याय मिलेगा , मंदिर को बच जाना है ;
सारा तुष्टीकरण मिटेगा , सड़ांध सभी हट जाना है ।
इतनी गंदी राजनीति है , सड़ी हुई गंदी नाली है ;
कीड़े हैं वे गंदे नेता , मंदिर का कोष करते खाली हैं ।
अब हर हिंदू ठान चुका है , वो सच्चाई जान चुका है ;
गंदी राजनीति को छोड़ा , उससे पल्ला झाड़ चुका है ।
हिंदू की मजबूरी ये है , अच्छा कोई विकल्प नहीं है ;
एक नया हिंदू – दल लाना , अब सबका संकल्प यही है ।
एकजुट-जम्मू का विस्तार करो या हिंदू-महासभा को लाओ
या फिर कोई नया बनाओ या हर दल से अच्छे लाओ ।
हर दल के जो अच्छे नेता , उनको एक मंच पर लाओ ;
यूपी या आसाम के जैसे , परम-साहसी लेकर आओ ।
जो कुछ संभव हो सकता है , उसे धरातल पर ले आओ ;
तब ही हिंदू बच पायेगा , देश को हिंदू – राष्ट्र बनाओ ।
“जय हिंदू-राष्ट्र”
रचनाकार : ब्रजेश सिंह सेंगर “विधिज्ञ”