कई भारतीय रेलवे स्टेशन अपने शहर का लघुरूप होता है। वहां फैली गंदगी पूरे शहर के परिदृश्य को प्रभावित करता है। लेकिन अब यह सबकुछ बदलने जा रहा है। क्योंकि रेल मंत्रालय ने कई भारतीय रेलवे स्टेशनों की रंगत को बदलने के लिए महा अभियान चला रखा है। इसके तहत रेलवे स्टेशनों को प्रकृति के अनुकूल सजाने का काम किया जा रहा है।
मुख्य बिंदु
* छोटी सी कूची चलाने में माहिर कलाकारों ने कूड़ा फेंके जाने वाली जगह को बना डाला खुला म्यूजियम
* रेलवे अधिकारियों से मिलकर वाल्मीकि थापर ने विश्व वन्यजीव कोष की मदद से शुरू किया यह काम
भारत में आज भी 23 मिलियन लोग प्रतिदिन रेलवे से यात्रा करते हैं और रेलवे स्टेशन हमेशा जीवंत रहता है। इसलिए नहीं कि हमारे देश रेल परिचालन बहुत अच्छा है, बल्कि इसलिए कि परिचालन अच्छा नहीं है। स्टेशन से यात्री महज गुजरते ही नहीं हैं बल्कि कइयों का डेरा-बसेरा ही स्टेशन हो जाता है। ट्रेनों की लेटलतीफी के कारण कई बार यात्रियों को स्टोव पर भोजन बनाना पड़ता है और यहीं सोना भी पड़ता है। यात्रियों के अधिक देर तक रुकने की वजह से देश के कई रेलवे स्टेशन गंदगी में तब्दील हो जाता है। जिसका बुरा असर पूरे शहर के परिदृश्य पर भी पड़ता है। रेलवे स्टेशनों को भी विभाग और सरकार ने भगवान भरोसे ही छोड रखा था।
लेकिन अब ऐसा नहीं रहने वाला है। मोदी सरकार और रेलवे मंत्रालय ने इस पर संज्ञान लेना शुरू कर दिया है। देश के कई रेलवे स्टेशनों में सुधार भी हुआ है। देश के ऐसे 80 रेलवे स्टेशन और मेट्रो स्टेशन ऐसे हैं जिनका आमूलचूल परिवर्तन किया गया है। न केवल स्वच्छता की दृष्टि से बल्कि सुंदरता की दृष्टि से भी। इन रेलवे स्टेशनों पर जो चित्र उकेरे गए हैं वे सब स्थानीय कलाकारों की मदद से की गई है। इन स्टेशनों पर चित्र बनाने वाले शायद कभी आर्ट गैलरी का दर्शन भी न किया हो। लेकिन स्थानीय कलाकारों ने अपनी हुनर की बदौलत न केवल रेलवे स्टेशनों की सुंदरता में चार चांद लगाएं हैं वहीं स्टेशनों का कायाकल्प कर दिया है।
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रेलवे स्टेशनों के कायाकल्प करने का अभियान 2014 में तब शुरू हुआ जब संरक्षण समर्थक तथा बाघ विशेषज्ञ वाल्मीक थापर ने आश्चर्य जताया कि आखिर क्यों नहीं सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन को बाघ के चित्रो से सजाया जा सकता? मालूम हो कि सवाई माधोपुर रेलवे स्टेश रणथंबौर राष्ट्रीय उद्यान से नजदीक है और यह शहर बाघों के उ्दयान के लिए जाना जाता है। उन्होंने कहा कि आखिर भरतपुर आने वालों के लिए भरतपुर रेलवे स्टेशन को भरतपुर पक्षी उद्यान के चिडि़यो की तस्वीर से सजाया जा सकता है। ताकि यहां आने वालों को लगे कि भरतपुर बर्ड सेंक्चुरी ही उसका स्वागत कर रहा है। आखरि अभि तक क्यों नहीं भुवनेश्वर में वहां के प्रसिद्ध मगरमच्छ और बुद्ध प्रतिमा से वहां के रेलवे स्टेशन को जसाया गया है? वाल्मीकि की प्रेरणा लेकर ही सरकार ने स्थानीय कलाकारों की मदद से वहां के रेलवे स्टेशन को संवारने का काम किया जाएगा।
इस संदर्भ में थापर ने रेलवे के अधिकारियों से संपर्क किया और विश्व वन्यजीव कोष की मदद से रेलवे स्टेशनों को बदलना शुरू कर दिया। अब आप जब तक सवाई माधोपुर स्टेशन से बाहर निकल नहीं जाते वहां के बाघ की आंखें आपको पीछा करती रहेंगी। छोटी सी कूची की मेहनत से वह जगह जो कभी कूड़ा फेंकने वाल जगह बनी हुई थी आज लोगों के लिए वह खुला म्यूजियम बन गया है।
रेलवे का यह योजना स्ट्रीट आर्ट क्रांति का ही एक भाग है। यह अभियान मुंबई के एक समूह ” St+art” इंडिया फाउंडेशन ने शुरू किया। सबसे पहले उन्होंने मुंबई के पुराने स्टेशनों को बदलने का काम किया फिर उसके बाद दिल्ली स्थित लोधी कॉलोनी के पड़ोस में देश के पहले पब्लिक आर्ट जिले को बदलने का काम किया। इसके बाद तो यह अभियान आगे बढ़ा और अब देश के कई स्टेशन इस अभियान का हिस्सा बन गया है।
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URL: big campaign to transform railway stations of country
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